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धरती की इन संरचनाओं को कहीं एलियंस ने तो नहीं बनाया

कुछ अजीबोगरीब संरचानाएं हैं जिन्हें देखकर हर कोई सोच में पड़ जाता है कि यह कैसे संभव हो सकता है। यहां तक विज्ञान भी अचम्भे में है। सदियों पुराने इन अजूबों को देखकर मन में विचार आता है कि आधुनिक तकनीक की मदद से भी इन्हें बनाना बेहद कठिन है। तो पुरातन सभ्यताओं ने इन्हें कैसे बनाया होगा? संभव है परग्रही लोगों या एलियंस ने इन्हें बनाने में हमारे पूर्वजों की मदद की हो। आइए नजर डालते हैं धरती पर मौजूद कुछ ऐसे अजूबों की जिन्हें शायद एलियंस ने बनाया था :

पेरू की रहस्यमय नाज्का रेखाएं

पेरू की रहस्यमय नाज्का रेखाएं

दक्षिणी अमेरिकी महाद्वीपीय देश पेरू के रेगिस्तानी इलाके में मिलती हैं नाज्का रेखाएं। ये लंबी सफेद रेखाएं संख्या में 800 से भी अधिक हैं। इन्हें रेगिस्तानी पठार की पथरीली जमीन पर किसी चीज से खरोंचकर उभारा गया है। अगर ये सिर्फ लाइनें होतीं तो कुछ अजीब बात नहीं थी लेकिन किसी पहाड़ की चोटी या फिर हवाई जहाज से देखा जाए तो पता चलता है कि इन रेखाओं  के जरिए अलग-अलग किस्म की विशाल आकृतियां बनाई गई हैं। इनमें 300 ज्यामितीय डिजाइन जैसे त्रिकोण, गोले, वर्ग आदि हैं और चिडि़यों, मछलियों, लामा, जगुआर, बंदर जैसे जीवों के लगभग 70 रेखाचित्र हैं। पेड़ों और फूलों की आकृतियां भी देखी जा सकती हैं। इनमें सबसे बड़ी आकृति 1200 फिट लंबी है।

ये रेखाएं लगभग 2000 हजार साल पुरानी हैं। लोग अभी तक यह नहीं समझ पाए हैं कि इन रेखाओं को किसी ने क्यों बनाया? और बनाया भी तो बिना हवाई जहाज की मदद से कैसे बनाया होगा। नाज्का रेखाओं को उनके अनोखेपन की वजह से यूनेस्को ने सांस्कृतिक धरोहर का दर्जा दिया है।

विशाल पत्थरों से बना अनोखा किला

पेरू में ही एक और अजूबा है एक पत्थरों से बना किला, जिसका नाम है सेक्सेवामन

पेरू में ही एक और अजूबा है एक पत्थरों से बना किला, जिसका नाम है सेक्सेवामन । यह पेरू के शहर क्यूस्को के बाहर स्थित है। पेरू में 13वीं शताब्दी में इंका सभ्यता का राज था। माना जाता है कि यह किला इंका साम्राज्य के लोगों ने ही बनवाया था। इस किले की खास बात यह है कि इसे भारी-भरकम पत्थरों को एक-दूसरे पर रखकर बनाया गया है। ये पत्थर 360 टन तक के वजन के हैं साथ ही एकदम चौकोर आकार के ना होकर भी एकदूसरे में ऐसे फिट हैं जैसे लगता है लेजर से काटकर जोड़े गए हों। इनकी इसी खूबी की वजह से स्थानीय लोगों की धारणा है कि दूसरे ग्रह से आए लोगों ने इंका सभ्यता की मदद की और यह किला बनवाया। यूनेस्को ने सेक्सेवामन को भी सांस्कृतिक धरोहर का दर्जा दिया है।

मिस्र के पिरामिड

मिस्र के पिरामिड

मिस्र या ईजिप्ट के पिरामिड तो दुनिया भर में मशहूर हैं। ईजिप्ट के शहर गीजा में स्थित ये पिरामिड लगभग 4,500 साल पुराने हैं। रेगिस्तान के बीचों-बीचों इन विशाल आकृतियों को देखकर लगता है कि जैसे ये धरती को फाड़ कर निकले हों। अभी तक की जानकारी के मुताबिक, ये एक किस्म के मकबरे हैं जिनमें प्राचीन मिस्र के राजा-रानियों के शव दफनाए गए थे। लेकिन जिस तकनीक से इन्हें बनाया गया होगा वह अभी तक रहस्य बनी हुई है। हर विशाल पिरामिड लाखों पत्थरों को जोड़कर बनाया गया है। एक-एक पत्थर कम से कम दो टन भारी है। आज हमारे पास विशाल क्रेनें और तमाम आधुनिक तकनीक मौजूद हैं इसके बावजूद इतनी विशाल इमारत बना पाना आज के आर्किटेक्ट के लिए भी मुश्किल है।

इंग्लैंड का स्टोनहिंज

इंग्लैंड का स्टोनहिंज, इंग्लैंड में सैलिसबरी कस्बे के पास विशाल पत्थरों का एक घेरा

इंग्लैंड में सैलिसबरी कस्बे के पास विशाल पत्थरों का एक घेरा है। इसमें पत्थरों को एक दूसरे के ऊपर रखा गया है। इनमें से कोई-कोई पत्थर तो 50 टन तक का है। इस संरचना को स्टोनहिंज नाम दिया गया है। अनुमान है कि यह लगभग 5000 साल पुरानी संरचना है। स्विट्जरलैंड के विद्वान एरिक वॉन का कहना है, यह हमारे सौर मंडल का मॉडल है जो एलियन उड़नतश्तरियों के धरती पर उतरने का लैंडिंग पैड का भी काम करता रहा होगा। हालांकि, कुछ लोगों का मानना है कि  यह सूर्य और चंद्र ग्रहण के अलावा दूसरे खगोलीय घटनाओं की और इशारा करता है। चूंकि सबसे नजदीक पत्थर की खदान यहां से सैकड़ों मील दूर है इसलिए यह बात समझ से परे है कि पांच हजार साल पहले के आदिमानव इतनी दूर से पत्थर लाए कैसे होंगे। इसी आधार पर यह माना जाता है कि इसे एलियंस ने ही बनाया होगा।

इंसानी चेहरों वाला द्वीप

इंसानी चेहरों वाला द्वीप, चिली के द्वीप ईस्टर आयलैंड पर ढेरों ऐसी संरचनाएं

ऐसा लगता है कि शायद एलियंस को दक्षिणी अमेरिकी महाद्वीप कुछ खास पसंद था। इसी क्षेत्र में स्थित एक और देश चिली के द्वीप ईस्टर आयलैंड पर ढेरों ऐसी संरचनाएं हैं जिन्हें बनाना इंसान के बस के बाहर लगता है। इस पूरे द्वीप पर 13 फिट ऊंचे और 14 टन वजनी पत्थर से बनी करीब 900 मानव आकृतियां पाई गई हैं। ये कम से कम 1000 बरस पुरानी बताई जाती हैं। माना जाता है कि यहां रहने वाले रापा नुई जनजाति के लोगों ने परग्रही तकनीक की मदद से इन्हें बनाया था ।

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