चीन-अमेरिका व्यापार जंग से भारतीय रूई की निर्यात मांग बढ़ेगी!
नई दिल्ली, 5 अप्रैल (आईएएनएस)| अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक हितों के टकराव से आने वाले दिनों में भारतीय रूई की निर्यात मांग बढ़ सकती है। घरेलू रूई बाजार के जानकारों के मुताबिक, चीन अगर अमेरिकी रूई के आयात पर 25 फीसदी शुल्क लगाता है तो अमेरिका से उसका आयात महंगा हो जाएगा। ऐसे में चीन रूई के आयात के लिए भारत, आस्ट्रेलिया और पश्चिमी अफ्रीकी देशों का रुख कर सकता है।
चीन ने बुधवार को जिन 106 अमेरिकी उत्पादों के आयात पर शुल्क लगाने का निर्णय ले लिया है उनमें कई कृषि उत्पादों में रूई भी शामिल है।
कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीएआई) के प्रेसिडेंट अतुल गंतरा ने कहा कि भारत दुनिया में रूई का सबसे बड़ा उत्पादक देश है और भारतीय रूई दुनिया में सबसे सस्ता भी है। ऐसे में भारतीय कृषि उत्पादों में रूई को सबसे ज्यादा फायदा मिलेगा। उन्होंने बताया कि तीन साल पहले भारत ने 50 लाख गांठ (170 किलोग्राम प्रति गांठ) रूई चीन को निर्यात किया था।
उन्होंने बताया, हालांकि चीन के पास इस साल मिलों की खपत के लिए काफी परिमाण में सरकारी भंडार में रूई है लेकिन अगले साल उसका भंडार घट जाएगा। चूंकि चीन का घरेलू उत्पादन कम है इसलिए उसे मिलों की खपत की पूर्ति के लिए विदेशों से आयात करना पड़ेगा। अगर चीन प्रस्तावित अमेरिकी आयात पर 25 फीसदी शुल्क लगाता है तो आगे रूई की खरीद के लिए चीन भारत का रुख करेगा। ऐसे में भारतीय रूई बाजार के लिए यह लाभकारी स्थिति होगी।
वर्धमान टेक्सटाइल्स के महाप्रबंधक आई. जी. धूरिया ने कहा, चीन के पास अभी जो रूई है वह वर्ष 2011-12, 2012-13 और 2013-14 का पुराना स्टॉक है। पुराने स्टॉक में मिलों की मांग कम होने से सरकारी भंडार से रूई की बिक्री भी सुस्त है। हालांकि इस साल की खपत के लिए तो उसके पास पर्याप्त भंडार है मगर अगले साल कमी होने से उसकी निर्यात मांग बढ़ सकती है।
उन्होंने कहा, चीन अगर अमेरिका से रूई खरीद नहीं करेगा तो उसके पास पश्चिमी अफ्रीकी देशों के अलावा आस्ट्रेलिया और भारत से रूई खरीद का विकल्प होगा। जाहिर है कि भारत से अगर चीन ज्यादा रूई खरीदता है तो भारतीय रूई बाजार को सपोर्ट मिलेगा।
वर्तमान में बांग्लादेश भारतीय रूई का सबसे बड़ा खरीदार है। इसके बाद पाकिस्तान, वियतनाम और चीन को सबसे ज्यादा भारत से इस साल रूई का निर्यात हुआ है। गंतरा ने बताया कि 31 मार्च तक भारत ने करीब सात लाख गांठ रूई का निर्यात किया है। उन्होंने कहा कि आगे इस कॉटन सीजन 2017-18 (अक्टूबर-सितंबर) के दौरान 10 लाख गांठ तक रूई का निर्यात चीन को हो सकता है।
रूई बाजार के जानकार मुंबई के गिरीश काबरा ने बताया कि चीन द्वारा अमेरिकी रूई के आयात पर शुल्क लगाने की संभावनाओं से वैश्विक बाजार में बुधवार को रूई की कीमतों में भारी गिरावट आई और भाव करीब छह सप्ताह के निचले स्तर तक फिसल गया जिसके बाद भारतीय वायदा और हाजिर बाजार में भी रूई की कीमतों में मंदी का माहौल बना रहा।
उन्होंने बताया कि चूंकि चीन ने आयात शुल्क लगाने की कोई तिथि की घोषणा नहीं की है इसलिए पिछले सत्र में आई गिरावट के बाद सुधार देखा जा रहा है।
उन्होंने कहा, चूंकि भारतीय रूई बाजार अमेरिकी रूई बाजार के उतार-चढ़ाव से प्रेरित रहा है इसलिए कीमतों में गिरावट देखी गई। मगर, चीन की कार्रवाई से लंबी अवधि में भारतीय बाजार को सपोर्ट ही मिलेगा।
इंटर कांटिनेंटल एक्सचेंज (आईसीई) पर मई एक्सपायरी कॉटन (रूई) वायदा 2.9 फीसदी की गिरावट के साथ 79.64 सेंट प्रति पाउंड पर बंद हुआ। हालांकि इससे पहले वायदा 4.15 फीसदी लुढ़ककर 78.62 सेंट प्रति पाउंड का निचले स्तर तक जा पहुंचा। लेकिन गुरुवार को आईसीई पर कॉटन वायदे में सुधार देखा गया और 0435 जीएमटी पर मई एक्सपायरी सौदा 1.12 फीसदी की बढ़त के साथ 80.53 सेंट प्रति पाउंड पर बना हुआ था।
भारतीय वायदा बाजार मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) पर बुधवार को कॉटन का अप्रैल वायदा 250 रुपये फिसलकर 20,360 रुपये प्रति गांठ पर बंद हुआ, जबकि निचला स्तर 20,150 रुपये प्रति गांठ रहा। हालांकि गिरावट पर खरीदारी बढ़ने और विदेशी संकेत सकारात्मक मिलने से अप्रैल वायदा गुरुवार को दोहपर दो बजे 60 रुपये की बढ़त के साथ 20,390 रुपये प्रति गांठ पर कारोबार कर रहा था। इससे पहले वायदे में 20,420 रुपये प्रति गांठ तक का उछाल आया।
गौरतलब है कि अमेरिका द्वारा 1,300 चीनी उत्पादों पर आयात शुल्क लगाने की मंगलवार की घोषणा के बाद बाद चीन ने जवाबी कार्रवाई करते हुए बुधवार को 106 अमेरिकी उत्पादों के आयात पर शुल्क लगाने का निर्णय लिया। चीन द्वारा आयात शुल्क लगाने की सूची में सोयाबीन, मक्का, तंबाकू, गोमांस, नारंगी जूस जैसे कृषि उत्पादों के अलावा कई प्रकार के रसायन, ऑटोमोबाइल उत्पाद और 15 व 45 टन के बीच के भारवाले विमान शामिल हैं।