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डेटा नहीं आपको बेचते हैं फेसबुक-गूगल, आपके मां–बाप से ज्‍यादा जानते हैं आपको

फेसबुक डेटा लीक के बाद फेसबुक पर ही तमाम तरह के मीम्स और चुटकुले वायरल हो रहे हैं। ये जगजाहिर हो चुका है कि कैंब्रिज एनालिटिका ने फेसबुक यूजर्स का डेटा चुराया। इसी चोरी की मदद से डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्‍ट्रपति बने। व्हॉट्सऐप के संस्थापक ने कहा कि फेसबुक अकाउंट डिलीट करने का समय आ गया है. लेकिन बेखबर लोगों का तर्क है कि हमारा डेटा चुराकर कंपनियां क्या कर लेंगी।

मसलन आप अगर फेसबुक पर केवल फोटो बदलते हैं, हंसी-मजाक करते हैं तो उससे क्या फर्क पड़ता है?  एक बात समझिए कि महज आपका डेटा ही नहीं चुराया जा रहा,  बल्कि आप वो इंसान है जिसे चुराकर बेचा जा रहा है।

यहां हम आपको समझाने जा रहे हैं कि फेसबुक आपको कैसे बेचता है। आप गूगल पर कुछ भी तलाशते सकते हैं। फेसबुक पर आप तस्वीरें पोस्ट करते हैं। लोग आपके विचार पढ़कर लाइक करते हैं। आप छोटे मोटे सेलेब्रिटी बनकर खुश हो जाते हैं। ये सब सुविधाएं मुफ्त में हैं तो फिर फेसबुक और गूगल जैसी कंपनियों की कमाई कैसे होती है? इस मूल सवाल का जवाब तलाशेंगे तो पूरा मामला समझ आ जाएगा।

गूगल और फेसबुक जैसी कंपनियां अपने एंप्लॉइज़ को कई-कई करोड़ की तनख्वाह देती हैं। हर हफ्ते की दर से छोटी-मोटी कंपनियों को खरीदती हैं। ये कमाई उन विज्ञापनों से नहीं हो सकती जो आपको सर्फिंग करते वक्त दिखाई देते हैं। दरअसल आप और हम वो कच्चा माल हैं जिसे ट्विटर और फेसबुक बेचकर पैसा कमाता हैं।

अब ये होता कैसे है। आप जितना ज्यादा सोशल मीडिया पर ऐक्टिव रहते हैं उतना आप का ‘डिजिटल फुटप्रिंट’ गहरा होता जाता है। आप क्या सोचते हैं। आपकी कमाई कितनी है। आपके खर्च कितने हैं। आपके बारे में गूगल और फेसबुक आपके मां-बाप से ज्यादा जानता है। इस डेटा को अलग-अलग कंपनियों और संगठनों को बेचता है। दुनिया के बड़े-बड़े उद्योगपति कहते हैं, ‘डेटा इज़ द न्यू ऑयल.’ यानि डेटा नए जमाने का तेल का कुंआ है।

आपको सरकार की आर्थिक नीतियों से खासी परेशानी हो लेकिन आपको उसकी धर्म की राजनीति पसंद हो। आप इससे जुड़े हुए पोस्ट लाइक, शेयर करते हैं, उनपर दिल बनाते हैं। अब सरकार के ठेके पर कंपनी आपको ऐसे पोस्ट दिखाएगी कि जिससे लगेगा कि आपका धर्म या मजहब पर खतरा है, अत्याचार हो रहा है। आपको यदि बचना है तो इसी पार्टी को वोट दें। आप चाहे जितनी आलोचना करें लेकिन धर्म के मुद्दे पर वोट दे देंगे। कुछ लोग पैसे के दम पर करोड़ों लोगों को चलाएंगे. जबकि वास्तविक समस्‍या के मूल में कुछ और रहेगा और शायद आपका ध्‍यान उस ओर कभी नहीं जा पाए। ये चीजें आपको हमेशा भ्रम में रखेंगी क्‍योंकि आप ऐसे जाल में फंस चुके होंगे।

अमेरिका में ऐसा ही हुआ है। कहा गया कि अमेरिका को फिर से महान बनाना है। बंदूक रखना अमेरिका में पिता से पुत्र को ट्रांसफर की गई विरासत है। लोगों ने माना और ट्रंप को चुनाव जितवा दिया। लंबी खुमारी के बाद जब लोगों की आंख खुली तो अब इस बंदूक संस्‍कृति के खिलाफ लाखों लोगों ने अमेरिका की सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन किया।

भारत के बारे में बात करें तो ये स्थिति और खराब हो सकती है। मान लीजिए ये कंपनी डेटा के आधार पर किसी पार्टी से कहे कि अगर देश में 4-5 जगहों पर दंगे हो जाएं तो उसकी सरकार बन जाएगी। प्लांट किया हुआ दंगा भी हो सकता है और उससे जुड़ी हुई खबरें निश्चित रूप से चलेंगी। जनधारणाएं बनेंगी कि दंगा होने के कारण वाजिब है। ऐसा ही होना चाहिए। कई ऐसे मामले हैं जहां ये खेल आजमाया जा चुका है।

एक उदाहरण और लेते हैं। आपने अमेज़न पर नया मोबाइल फोन तलाशा और आपको अपने फोन में हर जगह फोन के विज्ञापन दिखने लग जाते हैं। आप पूछेंगे कि इससे नुकसान क्या है? बात इतनी भर नहीं है।

एक काल्पनिक सी लगने वाली स्थिति के बारे में सोचिए। आपने फेसबुक पर डाला कि आपके बेटी हुई। आप ने खुशी के मारे उसकी कई सारी तस्वीरें भी पोस्ट की। फेसबुक ने ये डेटा ऐसी कंपनी को बेचा जो बच्चों के स्वास्थ्य से जुड़ी है। अब आपकी फीड में ऐसे लेख, पोस्ट और स्पॉन्सर्ड लिंक दिखाए जाएंगे कि अपने बच्चे को एक्सवाई टाईप का 25,000 रुपए का इंजेक्शन नहीं लगवाया तो उसे एक दुर्लभ बीमारी हो सकती है। हमारे देश में जहां कई लोग व्हॉट्सऐप की खबरों पर यकीन कर लेते हैं। कमेंट में 5 लिखकर चमत्कार होने का इंतजार कर सकते हैं, वहां ऐसे लेख पर विश्वास करके आप ये वैक्सीन भी खरीद सकते हैं। इसके पीछे डर भी एक बड़ी वजह है। जिसे हथियार बनाकर ये इस्‍तेमाल करते हैं।

जिस वैक्सीन की आपके देश में कोई जरूरत न हो उसकी कृत्र‍ि‍म मांग पैदा की जा सकती है। हो सकता है कि इससे आपके बच्चे को नुक्सान हो। हो सकता है कि ये किसी बड़ी कंपनी का इंसानी बच्चों पर वैक्सीन टेस्ट करने का प्रोजेक्ट हो। अगर आपको ये कोरी कल्पना लगती है तो आरओ प्यूरिफायर का मामला देखिए।

ज्यादातर रिपोर्ट्स बताती हैं कि आरओ का पानी आपको फायदा पहुंचाने से बजाय नुकसान ज्यादा पहुंचाता है। उसके सारे मिनिरल खत्म हो जाते हैं और आपके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता खत्म हो जाती है। लगातार आरओ का पानी इस्तेमाल करने वाले सामान्य साफ पानी पीकर बीमार पड़ जाते हैं, जबकि अगर आपके पानी में फ्लोराइड और आर्सेनिक की अशुद्धि नहीं है तो आरओ की कोई जरूरत नहीं।

इसके बावजूद आप आरओ वॉटर इस्तेमाल करते हैं, क्यों? क्योंकि एक कंपनी के सेल्समैन ने आपसे इसे इस्तेमाल करने के लिए कहा है। सामान्य सेल्समैन को आप मना कर सकते हैं, जबकि आप अपनी जेब में एक चलता फिरता बिग बॉस लेकर घूम रहे हैं।

फेसबुक वही है। आप नारीवादी हैं तो आपको लगता है कि सारे पुरुष वहशी हैं। बलात्कारी हैं। आप ऐसे लेख, पोस्ट शेयर करते हैं तो फेसबुक आपको ऐसे लोगों से जोड़ेगा जिनकी ऐसी ही सोच हो। आप ऐसे लोगों पर कमेंट करेंगे और अपनी भड़ास निकालेंगे। मिलती–जुलती ऐसी ही पोस्ट आपकी फीड में भी आ आएगी।

धीरे-धीरे आपको विश्वास हो जाएगा कि दुनियाभर के पुरुष खराब हैं। फेसबुक अपने विज्ञापनों में फेमिनिस्ट छपा हुआ झोला तो बेचेगा ही साथ ही आपकी विचारधारा तय करने का काम भी करेगी। ऐसे लोग कल को टीचर या प्रोफेसर बनकर क्लास में पढ़ाएंगे और अगली पीढ़ी को यही विचारधारा विरासत में परोस देंगे। फेसबुक के लिए अगली पीढ़ी पर कब्जा करना और आसान हो जाएगा क्‍योंकि आप ही उसे पालने पोसने का काम कर रहे हैं।

क्या आपको भी लगता है कि फेसबुक पर हर कोई प्रिया प्रकाश पर लिख रहा है। क्‍या हर कोई विराट अनुष्का पर ही पोस्ट कर रहा है तो आप गलत हैं। आपकी टाइमलाइन पर ऊपर से नीचे ये सब दिखने का मतलब है कि आपकी सोच, रुचि, इसी तरह की है। आप 1 महीना अपनी विचारधारा से ठीक उल्टा कमेंट कीजिए। वैसे लिंक तलाश के देखिए और शेयर करिए। आपकी फेसबुक–गूगल की दुनिया बिलकुल दूसरी तरह से दुनिया दिखाने लग जाएगी।

फेसबुक पर कोई क्रांति कर सकता है, यह महज एक भ्रम है। हम सब (जिसमें पढ़ने और लिखने वाला दोनों शामिल हैं) अपने आपको अलग-अलग दुकानदारों को बेच रहे हैं। इसके बदले में छोटे-मोटे फायदे होते हैं, लेकिन कुल मिलाकर इसे छोड़ना भी संभव नहीं है।

इसीलिए कोशिश कर निजी सफलताओं, खुशियों और उपलब्धियों को अनजान लोगों से शेयर करने के शौक से तौबा कर लीजिए। आप 70 की उम्र में कैसे दिखेंगे, देखना छोड़िए। अगर पेंटर, फोटोग्राफर, लेखक बनना है तो पहले फेसबुक के बाहर बनिए। उससे ही आपका भला होगा। नहीं तो आप हमेशा डेटा के चाबुक से इसी तरह हांके जाते रहेंगे और उस वक्‍त ये सोच रहे होंगे कि आप भीड़ से अलग दिखते–करते हैं।

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