उत्तराखंड

राष्ट्रमंडल खेलों में उत्तराखंड के लाल ने देश को नई पहचान देने का बीड़ा उठाया

राष्ट्रमंडल खेलों में उत्तराखंड को नई पहचान देने उतरेंगे मनीष रावत

नई दिल्ली। उत्तराखंड के एक गांव से संघर्षपूर्ण जीवन के पड़ावों से गुजर कर आस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में चार अप्रैल से शुरू होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों में हिस्सा लेने पहुंचे भारतीय पैदलचाल एथलीट मनीष रावत अपने राज्य को एक नई पहचान देने उतरेंगे।

मनीष की कोशिश केवल स्वयं के लिए ही नहीं, बल्कि उन सभी प्रतिभाशाली खिलाड़ियों के लिए है, जो उन्ही की तरह उत्तराखंड के किसी गांव में एक अवसर की तलाश में है। आईएएनएस के साथ एक साक्षात्कार में उन्होंने अपने उतार-चढ़ाव से भरे जीवन के बारे में बात की।

मनीष 2002 में उत्तराखंड के गोपेश्वर में एक स्कूल में पढ़ते थे, जब पिता के निधन के बाद उन्हें गांव आना पड़ा। उन्होंने गांव के स्कूल में ही पढ़ते हुए अपने करियर की शुरुआत की।

उन्होंने कहा, “जिला स्तर पर मैंने पैदलचाल में हिस्सा लिया। 2004 में राज्य स्तर पर मेरा चुनाव हुआ और मैंने काशीपुर में आयोजित प्रतियोगिता में हिस्सा लिया, जिसमें मुझे रजत पदक मिला। इसके बाद मैंने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी कोशिश शुरू की। 2006 में मैंने राज्य स्तर पर स्वर्ण पदक हासिल किया और राष्ट्रीय स्तर के लिए मुंबई गया। मुझे वहां जाकर पता चला कि इसके लिए सिंथेटिक ट्रैक भी होता है।”

मनीष अपनी तैयारी के लिए गांव के घर से हर रोज दो किलोमीटर का रास्ता तय कर स्कूल जाते थे। उन्हें अनूप बिष्ट ने प्रशिक्षण दिया और उनके सारे खर्चो की जिम्मेदारी भी संभाली।

मनीष ने अपने कोच की मेहनत को बेकार नहीं जाने दिया और ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी में 2010 में अच्छा प्रदर्शन कर पुलिस में भर्ती हुए। इसके लिए उन्होंने अपने कोच के साथ ही पिथौरागढ़ में प्रशिक्षण किया। 2012 में इंडिया पुलिस प्रतियोगिता में पैदलचाल में कांस्य पदक जीता।

उत्तराखंड में पुलिस इंस्पेक्टर के पद पर नियुक्त मनीष ने कहा, “गांव के स्कूल से निकलकर पुलिस में नौकरी पाने तक का सफर आसान नहीं था। घर में तीन भाई-बहनों की जिम्मेदारी को संभालने के लिए मैंने 12वीं के बाद दूध भी बेचा। अपने क्षेत्र में विदेशी पर्यटकों को घुमाता था। खेती भी की।”

इन जिम्मेदारियों के बीच मनीष ने अपने लक्ष्य को पीछे छूटने नहीं दिया। इसी बीच, उनके कोच ने उन्हें रियो ओलम्पिक की तैयारी के बारे में बताया। उन्होंने मनीष को पटियाला भेजा। पटियाला में एलेक्जेंडर कोच थे। 2013 में उन्होंने पटियाला में पहली राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में हिस्सा लिया, लेकिन 14 किलोमीटर में उन्हें बाहर कर दिया गया।

मनीष ने कहा, “मैंने अगले दिन 50 किलोमीटर पैदलचाल में हिस्सा लिया। मुझे दूसरा स्थान प्राप्त हुआ। 2013 में मैं राष्ट्रीय शिविर में शामिल हो गया। ”

2015 में मनीष ने विश्व चैम्पियनशिप में हिस्सा लिया। 2014 में राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में रजत पदक जीता। इसी साल चीन में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 50 किलोमीटर पैदलचाल प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और चार घंटे दो मिनट का समय लिया। इसके बावजूद उनका चयन नहीं हो सका।

मनीष ने हार नहीं मानी। 2015 में पुर्तगाल में हुए अंतर्राष्ट्रीय टूर्नामेंट में उन्हें 20 किलोमीटर पैदलचाल में हिस्सा लेने के लिए कहा गया। उन्होंने एक घंटे 22 मिनट में समय पूरा किया, जो ओलम्पिक खेलों के लिए तय किया गया था। उन्होंने 10वां स्थान हासिल किया। इसके बावजूद भी एएफआई की नजर मनीष पर नहीं पड़ी।

मनीष ने इसके बाद बीजिंग विश्व चैम्पियनशिप में 27वां स्थान हासिल किया। जयपुर में तीसरी राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में 20 किलोमीटर में पांचवां स्थान हासिल किया। 2016 जापान के लिए एशिया चैम्पियनशिफ एक घंटा 20 मिनट का समय लिया, जिसके बाद उन्हें एशियाई रैंकिंग में सातवां स्थान प्राप्त हुआ।

20 किलोमीटर में अच्छा करने की कोशिश में मनीष ने एएफआई से उन्हें 50 किलोमीटर से 20 किलोमीटर में स्थानांतरित करने का आग्रह किया। इसके तहत, उन्होंने रियो ओलम्पिक में 13वां स्थान हासिल किया।

इस साल दिल्ली में आयोजित पांचवीं राष्ट्रीय पैदलचाल चैम्पियनशिप में रजत पदक हासिल करने के साथ ही मनीष ने राष्ट्रमंडल खेलों के लिए क्वालीफाई किया। उनका लक्ष्य अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पदक हासिल करने के साथ-साथ उत्तराखंड को एक नई पहचान दिलाना है।

मनीष ने कहा, “मैं चाहता हूं कि मेरे राज्य के खिलाड़ियों को भी आगे बढ़ने का मौका मिले। इस बार खेलो इंडिया स्कूल गेम्स ने उत्तराखंड ने पांच स्वर्ण पदक जीते हैं। अगर उन्हें ऐसे ही मौके मिलते रहे, तो यहां से भी कई एथलीट निकल सकते हैं। मेरे जैसे ही खिलाड़ी बस एक मौके की तलाश में हैं।”

 

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