‘मैथिली’ भाषा को विदेशों तक पहुंचाने की तैयारी!
पटना, 25 फरवरी (आईएएनएस)| बिहार के मिथिला क्षेत्रों के लोग मैथिली भाषा की उपेक्षा को लेकर कटाक्ष करते हुए कहते हैं कि भगवान राम का वनवास तो 14 साल के बाद समाप्त हो गया था, परंतु मां सीता की जन्मस्थली सहित कई क्षेत्रों में बोली जाने वाली ‘मैथिली’ भाषा आज भी सरकारी उपेक्षा का शिकार होने के कारण वनवास झेलते नजर आ रही है। लेकिन खुशी की बात यह है कि अब कई शैक्षणिक व सामाजिक संस्थाओं ने इस भाषा को विश्वभर में फैलाने की कोशिश शुरू की है।
मैथिली भाषा का उल्लेख रामायण काल से ही मिलता है। कालांतर में कवि कोकिल विद्यापति ने मैथिली भाषा को अपना माध्यम बनाकर ‘देसिल बयना सब जन मिट्ठा’ का नारा दिया था।
मैथिली भाषा पर काम करते हुए प्रसिद्ध भाषाविद् सर जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने ‘लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया’ में इसे बिहार की प्रमुख भाषाओं में से एक माना है। उनके अनुसार सीतामढ़ी, भागलपुर, मुंगेर, सहरसा, सुपौल, दरभंगा, मधुबनी, मधेपुरा, कटिहार, किशनगंज और पूर्णियां सहित आसपास के लोग मैथिली भाषा का प्रयोग करते हैं। उन्होंने इस भाषा को दुनिया की सबसे मधुरतम भाषा बताया है।
बिहार के पूर्व शिक्षा मंत्री राम लखन राम ‘रमण’ भी स्वीकार करते हैं कि प्राचीनतम भाषाओं में से एक मानी जाने वाली भाषा मैथिली का उतना विकास नहीं हुआ, जितना होना चाहिए था। उन्होंने कहा कि बिहार के कई विश्वविद्यालयों में इसकी बजाब्ता पढ़ाई होती है। उन्होंने इस भाषा को जन-जन तक पहुंचाने के लिए क्षेत्र के ही पढ़े-लिखे व बुद्धिजीवियों को प्रयास करने की जरूरत बताई।
इन दिनों सामाजिक संस्था मिथिलालोक फाउंडेशन एवं शैक्षणिक संस्था ब्रिटिश लिंग्वा ने संयुक्त प्रयास से इस भाषा को जन-जन तक खासकर विदेशों तक पहुंचाने की बीड़ा उठाया है। इन दोनों संस्थाओं ने संयुक्त रूप से संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल मैथिली भाषा के लिए दिल्ली के लक्ष्मीनगर में नि:शुल्क मैथिली स्पीकिंग कोर्स की शुरुआत की है।
मिथिला फाउंडेशन के चेयरमैन डॉ़ बीरबल झा ने आईएएनएस को बताया कि मैथिली स्पीकिंग कोर्स के पाठ्यक्रम में प्रारंभिक व उच्च स्तर के पाठयक्रम शामिल किए गए हैं। प्रारंभिक पाठ्यक्रम में मैथिली भाषा का ज्ञान, उच्चारण तकनीक आदि की बारीकियों को शामिल किया गया है, जबकि उच्च पाठ्यक्रम में यूपीएससी, बीपीएससी आदि परीक्षाओं के लिए ऐच्छिक विषय के तौर पर मैथिली पढ़ने वालों के लिए विशेष व्यवस्था की गई है।
डॉ़ झा ने बताया, दिल्ली में करीब 60 लाख मैथिली भाषी निवास करते हैं। उनके सामने अपने बच्चों को मैथिली सिखाने की समस्या है, क्योंकि बच्चे भाषा की विपन्नता के कारण अपने दादा-दादी से जुड़ नहीं पा रहे हैं। मिथिला मीमांसा पर शोध करने की जरूरत है, जो इस भाषा ज्ञान के बिना नहीं हो सकता है।
डॉ. झा कहते हैं कि देश की लगभग 5.6 प्रतिशत आबादी लगभग सात से आठ करोड़ लोग मैथिली भाषा बोलते हैं। मैथिली की अपनी लिपि है जो एक समृद्ध भाषा की पहचान है। बतौर झा, मैथिली विश्व की सर्वाधिक समृद्ध, शालीन और मिठास पूर्ण भाषाओं में से एक मानी जाती है।
उनका कहना है कि देश के कई हिस्सों के अलावा जर्मनी, फ्रांस और इंगलैंड के करीब 12 से 15 लोगों ने इस संस्थान से मैथिली भाषा सीखने की इच्छा व्यक्त करते हुए संपर्क किया है।
जानी-मानी गायिक मैथिली ठाकुर के पिता रमेश ठाकुर भी मिथिलालोक फाउंडेशन के इस प्रयास की सराहना करते हैं। उनका कहना है कि यह सही है कि दिल्ली में रहने वाले लोगों को अपने बच्चों को मैथिली भाषा सिखाने में दिक्कत होती है। ऐसे में यह अच्छी पहल है।
सामाजिक कार्यकर्ता उमेश मिश्रा कहते हैं कि मैथिली भाषा के प्रचार प्रसार से मिथिला का आर्थिक व सामाजिक विकास होगा अन्यथा यह क्षेत्र देश के दूसरे हिस्से से कट जाएगा। उन्होंने कहा कि आज मैथिली को आगे बढ़ाने की जरूरत है।
उन्होंने माना कि आज जिस तेज गति से क्षेत्रीय भाषाओं का प्रचलन घट रहा है, ऐसे में मैथिली भाषा को सिखाने का प्रयास की सराहना होनी चाहिए।