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कावेरी जल विवाद : सर्वोच्च न्यायालय ने तमिलनाडु की हिस्सेदारी घटाई

नई दिल्ली, 16 फरवरी (आईएएनएस)| सर्वोच्च न्यायालय ने कावेरी जल विवाद पर अपने ऐतिहासिक फैसले में शुक्रवार को तमिलनाडु की जल हिस्सेदारी घटाकर 177.25 टीएमसी फुट कर दी। जबकि कावेरी न्यायाधिकरण ने 2007 में राज्य के लिए 192 टीएमसी फुट पानी आवंटित किया था। प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति अमिताव रॉय और न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर की पीठ ने कावेरी नदी से तमिलनाडु को होने वाली जल आपूर्ति को यह देखते हुए घटा दिया कि न्यायाधिकरण ने तमिलनाडु में नदी के बेसिन में उपलब्ध 20 टीएमसी फुट भूजल पर ध्यान नहीं दिया था।

न्यायालय ने अपने आदेश में कहा, कुल मिलाकर हमने कर्नाटक को 14.75 टीएमसी फुट पानी अधिक देना उपयुक्त समझा, जोकि 10 टीएमसी फुट (तमिलनाडु में मौजूद भूजल) प्लस 4.76 टीएमसी फुट (बेंगलुरू शहर की जरुरत के मुताबिक) है।

कार्नाटक की हिस्सेदारी में बढ़ोतरी करने पर न्यायालय ने कहा, कर्नाटक को अब तमिलनाडु से सटी बिल्लीगुंडुलू अंतरराज्यीय सीमा पर 177.25 टीएमसी फुट पानी छोड़ना होगा।

तमिलनाडु की हिस्सेदारी में कटौती करने पर न्यायालय ने कहा, हमने भूजल के अधिक दोहन से जुड़े जोखिमों को ध्यान में रखते हुए माना कि तमिलनाडु में मौजूद 10 टीएमसी फुट भूजल का तथ्य कावेरी नदी के पानी के बंटवारे में शामिल होना चाहिए।

इसलिए कर्नाटक को अतिरिक्त 14.75 टीएमसी फुट पानी दिया जाएगा, जिसमें पीने के उद्देश्य से बेंगलुरू को मिलने वाले पानी में बढ़ोतरी की गई है।

न्यायमूर्ति मिश्रा ने पीठ की तरफ से कहा, सभी राज्यों की कुल जनसंख्या के पीने के पानी की आवश्यकता को उच्चस्तर पर रखा जाना चाहिए, क्योंकि हम इसे न्यायसंगत वितरण के क्रमिक आधारभूत सिद्धांत के रूप में मानते हैं।

प्रधान न्यायाधीश ने बेंगलुरू को 14.75 टीएमसी फुट पानी आवंटित करते हुए कहा कि कर्नाटक इस बढ़े हुए पानी से कृषि उद्देश्यों जैसे सिंचाई और औद्योगिक कार्यो में इस्तेमाल कर सकता है।

शीर्ष अदालत ने कहा, कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरू के वैश्विक दर्जे को देखते हुए उसे कावेरी नदी से 4.75 टीएमसी फुट अधिक पानी दिया जाएगा।

शीर्ष अदालत ने न्यायाधिकरण द्वारा घरेलू और औद्योगिक उद्देश्यों के लिए कर्नाटक की हिस्सेदारी को कम करने के निर्णय को अस्थिर मानते हुए कावेरी नदी के पानी के आवंटन में शहर की हिस्सेदारी को बढ़ाया।

हालांकि, न्यायालय ने अपने फैसले में न्यायाधिकरण द्वारा केरल और पुडुचेरी के लिए आवंटित पानी को ज्यों का त्यों रखा है।

न्यायालय ने निर्देश दिया कि न्यायाधिकरण के अनुसार, केंद्र अंतरिम जल बंटवारा व्यवस्था के कार्यान्वयन के लिए कावेरी जल प्रबंधन बोर्ड की स्थापना करेगा और यह बोर्ड 15 वर्षों तक कार्य करेगा।

तमिलनाडु की हिस्सेदारी घटाने को छोड़कर बाकी न्यायाधिकरण के आदेशों से सहमति जताते हुए न्यायालय ने कहा कि सामने लाए गए सभी प्रासंगिक सामग्री पर विचार करने के बाद हम इस बात से सहमत हैं कि पानी की खपत की अर्थव्यवस्था की अनिवार्यता के संबंध में तमिलनाडु के लिए न्यायाधिकरण द्वारा अंतिम रूप से निर्धारित सिंचित क्षेत्र को गलत नहीं ठहराया जा सकता।

न्यायालय ने कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण पर राष्ट्रपति के संदर्भ के अपने जवाब का जिक्र करते हुए कहा, किसी अंतरराज्यीय नदी का जल एक राष्ट्रीय संपत्ति है और कोई भी राज्य इन नदियों पर अपना दावा नहीं कर सकता।

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