त्रिपुरा चुनाव : प्रतापगढ़ पर सटीक बैठेगा ‘चलो पालटाई’ का नारा!
नई दिल्ली, 13 फरवरी (आईएएनएस)| त्रिपुरा विधानसभा चुनाव-2018 के रण में सत्तारूढ़ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) और कांग्रेस को तीसरे नंबर पर धकेलने की कसरत में जुटी भारतीय जनता पार्टी ने मैदान मारने के लिए अपनी अपनी कमर कस ली है। पिछले 25 सालों से सत्ता संभाल रही माकपा को इस चुनाव में भाजपा से जोरदार टक्कर मिल रही है, जिसका अंदाजा प्रतापगढ़ विधानसभा क्षेत्र से लगाया जा सकता है।
त्रिपुरा विधानसभा सीट संख्या-13 यानी प्रतापगढ़ निर्वाचन क्षेत्र पश्चिमी त्रिपुरा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र का हिस्सा है, जो अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित है। क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या 52,697 है, जिसमें से 26,719 पुरुष और 25,978 महिलाएं शामिल हैं।
पश्चिमी त्रिपुरा का प्रतापगढ़ विधानसभा क्षेत्र माकपा के सबसे सुरक्षित किलों में से एक है। दरअसल, पूर्ण राज्य का दर्जा हासिल करने के बाद वर्ष 1972 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के मधुसूदन दास ने यहां से जीत हासिल की थी, लेकिन 1977 के विधानसभा चुनाव में माकपा नेता अनिल सरकार ने उन्हें हराकर यह सीट हासिल की थी।
वर्ष 1977 में जीत के बाद लगातार सात और कुल आठ चुनाव जीत कर अनिल सरकार ने राज्य की राजनीति में अपनी धाक जमा ली। शिक्षक से राजनेता बने अनिल सरकार ने 1978 के बाद से वाम मोर्चे की सात सरकारों में से छह में बतौर मंत्री के रूप में अपनी सेवाएं दी थीं।
अनिल सरकार 1956 में भाकपा में शामिल हुए थे और 1964 में माकपा की स्थापना के दौरान वह पार्टी के सदस्य बने। 1972 में उन्हें कांग्रेस शासन काल में जेल जाना पड़ा था। 1975 में आपातकाल के दौरान वह अगरतला, वेल्लोर (तमिलनाडु) और नौगांव (असम) की जेलों में रहे। इसके अलावा उन्होंने 1971 में नौ महीने के लंबे बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान त्रिपुरा में आश्रित लाखों शरणार्थियों को राहत और आश्रय प्रदान करने में एक अहम भूमिका निभाई थी।
कलकत्ता विश्वविद्यालय से 1963 में बांग्ला भाषा में परास्नातक की परीक्षा करने वाले अनिल सरकार माकपा के दिग्गज नेताओं में से एक थे। साथ ही निधन से पहले वह त्रिपुरा योजना बोर्ड के उपाध्यक्ष भी रहे। अनिल सरकार लेखक, कवि और बुद्धिजीवी के रूप में विभिन्न क्षमताओं वाले एक व्यक्ति थे।
10 फरवरी, 2015 को सरकार के निधन के बाद प्रतापगढ़ विधानसभा सीट खाली हो गई, जिस पर हुए उपचुनाव में माकपा के ही रामू दास ने अपनी भाजपा प्रतिद्वंद्वी मौसमी दास को 17 हजार से ज्यादा मतों से हराया। भाजपा ने कांग्रेस उम्मीदवार रंजीत कुमार दास को तीसरे नंबर पर धकेल दिया था। उपचुनाव में भाजपा को 10,229 मत प्राप्त हुए थे तो वहीं कांग्रेस को 5,187 मत।
उपचुनाव में मिली जीत के बाद माकपा ने प्रतापगढ़ विधानसभा चुनाव 2018 के लिए फिर से रामू दास पर भरोसा जताया है। रामू पर अनिल सरकार के करिश्मे और उनकी विरासत को आगे बढ़ाने का दबाव होगा।
उपचुनावों के नतीजों ने भाजपा को संजीवनी देने के काम किया और क्षेत्र में आधार के विस्तार में मजबूती। भाजपा ने इस बार यहां से रेवती मोहन दास को टिकट दिया है। दास भाजपा राज्य इकाई में आमंत्रित सदस्य हैं।
वहीं कांग्रेस ने यहां से अर्जुन दास को अपना उम्मीदवार घोषित किया है। 1972 में मधुसूदन को मिली जीत कांग्रेस के लिए यहां पहली और अंतिम जीत रही है। मधु के बाद से कोई भी कांग्रेसी नेता इस सीट को जीतने में नाकाम रहा है। दास पर उपचुनावों में पार्टी को मिली करारी हार से उबारने की जिम्मेदारी है।
इसके अलावा तृणमूल कांग्रेस के मिथुन दास और आम्रा बंगाली के उम्मीदवार वीरेंद्र दास चुनाव मैदान में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।
अनिल सरकार के निधन के बाद माकपा की सबसे सुरक्षित सीटों में से एक प्रतापगढ़ पर मुकाबला दिलचस्प रहने वाला है, क्योंकि भाजपा की दावेदारी से यहां जनता के बीच एक अलग सा उत्साह है। ‘चलो पालटाई’ का भाजपा का नारा यहां कितना सटीक बैठता है यहल देखनी वाली बात रहेगी।
60 सदस्यीय त्रिपुरा विधानसभा के लिए मतदान 18 फरवरी को होगा और वोटों की गिनती तीन मार्च को मेघालय और नगालैंड के साथ ही होगी।