राष्ट्रीय

‘बोस की अस्थियां भारत न लाना उनका अनादर’

नई दिल्ली, 6 फरवरी (आईएएनएस)| सुभाष चंद्र बोस के निधन पर आधारित एक नई किताब, जिसकी प्रस्तावना बोस की बेटी अनीता बोस ने लिखी है, के अनुसार नेताजी का निधन 18 अगस्त, 1945 में ताइपे में एक विमान दुर्घटना में हुआ था।

किताब के लेखक आशीष रे का दावा है कि टोक्यो के रेंकोजी मंदिर में रखी अस्थियां नेताजी की ही हैं और यह अनादर की बात है कि उनके देहांत के 72 साल बाद भी उनकी अस्थियां भारत नहीं लाई गईं।

किताब ‘लेड टू रेस्ट’ के लेखक आशीष रे ने लंदन से एक ईमेल साक्षात्कार में आईएएनएस को बताया, (नेताजी की मौत में) कोई रहस्य नहीं है, केवल एक व्यर्थ का विवाद इससे जुड़ा है। सुभाष बोस का निधन निस्संदेह 18 अगस्त, 1945 को ताइपे में विमान दुर्घटना में हुआ था। मेरी किताब में पहली बार 11 विभिन्न अधिकारियों और अनाधिकारिक तौर पर की गई जांच ने इसकी फिर से पुष्टि की है।

रे ने कहा, टोक्यो के रेंकोजी मंदिर में रखी अस्थियां निस्संदेह उनकी ही हैं। भारत के एक महान सपूत की याद के लिए यह बेहद तौहीन की बात है कि उनके निधन के 72 वर्षो के बाद भी उनकी अस्थियां भारत नहीं लाई गईं।

रे 40 वर्षो से विदेशी संवाददाता रहे हैं और उन्होंने प्रमुख तौर पर बीबीसी और सीएनएन के लिए ही काम किया है। उन्होंने अपनी किताब में लिखा है कि पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव को भी यकीन था कि नेताजी का निधन विमान दुर्घटना में हुआ था।

रे ने कहा, नरसिम्हा राव को लेशमात्र भी संदेह नहीं था कि विमान दुर्घटना की कहानी सच है और रेंकोजी मंदिर में रखी अस्थियां सुभाष बोस की ही हैं। वह फॉरवर्ड ब्लॉक, भाजपा और बोस के विस्तृत परिवार के एक हिस्से द्वारा उनकी अस्थियों को भारत लाए जाने के विरोध को लेकर सजग थे और विपक्ष के समर्थन पर निर्भर एक अल्पसंख्यक सरकार चलाने के बावजूद वह इस बात को लेकर सजग थे। उन्होंने तत्कालीन विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी को मंदिर का दौरा करने और जर्मनी जाकर बोस की विधवा एमिली शेंकेल से मुलाकात करने भेजा था।

हालांकि, न्यायमूर्ति मुखर्जी जांच आयोग (जेएमसीआई) की रिपोर्ट में कहा गया कि विमान दुर्घटना में बोस के निधन की कहानी और कुछ नहीं, केवल हकीकत पर पर्दा डालने की कोशिश है, जिसे तत्कालीन संप्रग सरकार ने 2006 में अस्वीकार कर दिया और कहा कि आयोग की जांच कई मायनों में अधूरी है और कई पहलुओं की पुख्ता जांच करने में नाकाम रही है।

उन्होंने कहा, मैं न्यायमूर्ति मनोज मुखर्जी की जांच से बिल्कुल सहमत नहीं हूं कि सुभाष बोस का ताइपे में विमान दुर्घटना में निधन हुआ था। उनकी रिपोर्ट पर सरकार की प्रतिक्रिया जल्दबाजी में नहीं ली गई थी। वह तात्कालिक और उचित थी।

रे ने कहा कि हालांकि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली राजग सरकार ने सुभाष बोस पर भारत सरकार की सभी फाइलों को सार्वजनिक कर दिया, लेकिन सत्तारूढ़ सरकार ने मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट पर सिंह के फैसले को नहीं पलटा।

उन्होंने कहा, यह उस बात की पुष्टि करता है जो मैं 1990 के दशक के मध्य से कहता आ रहा हूं कि सुभाष बोस का निधन 18 अगस्त, 1945 को ताइपे में एक विमान दुर्घटना में हुआ था। तथ्यों को जानने के बाद मोदी को असहास हुआ कि मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट पर मनमोहन सिंह का फैसला सही था, इसलिए उन्होंने उसे नहीं पलटा।

उन्होंने कहा, सुभाष बोस की अस्थियों को भारत लाने के मामले में भारत की सभी सरकारें अब तक डरपोक रही हैं। भाजपा ने खुद को आरटीआई के जवाब से दूर रखा। मेरी किताब में लिखे तथ्यों के अलावा और कोई नया तथ्य नहीं है, जो केवल सच्चाई की ही पुष्टि करते हैं।

रे ने कहा, सुभाष की अस्थ्यिों को भारत लाने का मामला राजनीति में फंसकर रह गया है और बोस के विस्तृत परिवार का एक हिस्सा कभी प्रोफेसर अनीता का सहायक नहीं रहा। जैसा कि मेरी किताब में लिखा गया है कि जापान सरकार को उनकी अस्थियों को भारत लाए जाने पर कोई आपत्ति होगी, इसकी कोई संभावना नहीं है।

रे की किताब ‘लेड टू रेस्ट’ रोली बुक्स द्वारा प्रकाशित की गई है और इसे 12 फरवरी को बीकानेर हाउस में लॉन्च किया जाएगा।

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