‘पद्मावत’ पर स्वरा को मिर्ची लगाने वाला जवाब, वजाइना की ताकत और फेमिनिज्म समझने की दी नसीहत
मुंबई। संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘पद्मावत’ को जबरदस्त विरोध का सामना करने के बावजूद फैंस और बड़ी हस्तियों का अच्छा समर्थन मिला। वहीं, एक्ट्रेस स्वरा भास्कर ने भी फिल्म के डायरेक्टर संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘पद्मावत’ देखने के बाद उन्हें आरोपों के घेरे में ले लिया। स्वरा के ओपन लेटर का जवाब रासलीला के को-राइटर ने An open letter to all Vaginas टाइटल के साथ ओपन लेटर हैड पर लिख कर दिया है।
स्वरा ने पत्र में लिखा था, ‘भंसाली जी ने सती और जौहर प्रथा का महिमामंडन किया है। स्वरा फिल्म के जरिए स्त्रियों की पेश की गई छवि से बहुत नाराज हैं।
महिलाएं चलती-फिरती वजाइना नहीं हैं। हां, महिलाओं के पास यह अंग होता है लेकिन उनके पास और भी बहुत कुछ है। इसलिए लोगों की पूरी जिंदगी वजाइना पर केंद्रित, इस पर नियंत्रण करते हुए, इसकी हिफाजत करते हुए, इसकी पवित्रता बरकरार रखते हुए नहीं बीतनी चाहिए।’
वहीं, रासलीला के को-राइटर ने अपने लेटर में जवाब देते हुए सबसे पहले फेमिनिज्म की परिभाषा स्वरा भास्कर को समझाई है। इसके बाद उन्होंने लिखा कि महिलाओं के पास वजाइना होती है। यह जीवन का रास्ता है क्योंकि वह जीवन दे सकती है। एक पुरुष लाख कोशिशों के बावजूद ऐसा नहीं कर सकता। ऐसे में दोनों जेंडर की समानता के सवाल का सही जवाब मिल जाता है।
उन्होंने आगे लिखा कि कई एक्टरों, फिल्ममेकर और कलाकारों को लगता है कि वो आधुनिक सिनेमा में फेमिनिज्म की नई परिभाषा देते हुए लोगों को रास्ता दिखाएंगे।
ऐसे में वो हाल ही के सिनेमा में दिखाए गए दृश्यों को यादकर सच और झूठ का अंतर समझ लें। फिल्म के दृश्य में दिखाया गया है कि एक महिला पति अथवा प्रेमी से धोखा खाने के बाद हाथ में शराब लिए बैकग्राउंड में पुरानी फिल्म के गाने सुनते हुए गलियों में भटक रही हैं। ये नजारा वैसा ही है, जैसा कि प्यार में धोखा खाने के बाद पुरुष करते हैं। तो क्या महिलाओं का ऐसा करने से उन्हें समानता का अधिकार मिल जाता है?
हाल ही में आई एक फिल्म में बेटी अपने पिता के साथ सिगरेट शेयर करती है। ऐसा अब तक सिर्फ लड़के ही फिल्मों में करते नजर आते हैं। फिल्म का यह सीन फेमिनिज्म को दिखाता है। अब बात करते हैं कि उन लोगों कि जो ‘पद्मावत’ के बार में सोचते हैं कि ‘पद्मावत’ ने फेमिनिज्म को चैलेंज कर दिया।
क्या उन्हें फिल्म देखकर यह नहीं लगा कि रानी पद्मावती अपने पति को राजगुरू के गलत इरादों के बाद उसे देश से निकाले जाने का फरमान सुना देती हैं। उन्हें वजाइना का एहसास तब हुआ, जब रानी पद्मावती खुद अपना चेहरा शीशे में खिलजी को दिखाने का निर्णय लेती है?
उन्हें वजाइना का एहसास तब हुआ, जब रानी पद्मावती अपने पति को खिलजी के किले से पूरे सिस्टम के खिलाफ जाकर छुड़ाती है?
उन्हें वजाइना का एहसास तब हुआ, जब रानी रेप की जगह आग को चुनती है। यह खुद वजाइना होने के बावजूद उनका खुद का निर्णय था। सही, गलत स्ट्रांग, कमजोर सब आप पर है कि अब किस तरह वजाइना और पेनिस की परिभाषा को गढ़ती हैं।
‘फेमिनिज्म’ शब्द को कई बार गलत तरह से परिभाषित किया गया। इसका गलत इस्तेमाल भी किया गया, लेकिन इस बात को मत भूलिए कि पुरुषों की बराबरी करना, उनके जैसा बनने की कोशिश करना, ये सब फेमिनिजम की परिभाषा नहीं है।
एक महिला ने खुद को गुलामी की जिंदगी देने से ज्यादा खुद को आग के हवाले कर दिया। यह उसकी अपनी इच्छा थी। इस बात को वजाइना और फेमिनिज्म के नाम पर गलत समझा जाना कहां की बहादुरी है? इस तरह तो किसी महिला के त्याग को भी आप अपनी सोच से खराब कर रहे है।
सबसे बड़ी बात यह फिल्म 13वीं सदी के दौरान हुई घटना को बता रही है, उसकी तुलना वर्तमान से कैसे की जा सकती है? 700 साल पहले महिलाएं बलात्कार झेलने के बजाय मौत को चुनती थीं। इस इतिहास को हम सभी जानते हैं। इसके बाद भी आपको आपत्ति है तो ऐतिहासिक फिल्में देखना बंद कर दें।
तथ्यों पर आधारित सबसे बड़ी बात यह है कि सती प्रथा एक ऐसी परंपरा थी, जिसमें औरतों को ज्यादातर पति के मरने के बाद जबरदस्ती खुद को चिता के हवाले करना होता था। ऐसा बहुत कम हुआ है, जब किसी महिला ने इच्छा से सती होना स्वीकार किया हो। वहीं, जौहर एक ऐसी प्रथा है जो स्वेच्छा से महिलाएं चुनती हैं। इतिहास के पन्नों में कहीं भी जौहर को जबरदस्ती कराने का जिक्र नहीं है।
इन सबके बाद और पद्मावत देखने के बाद भी लोगों को वजाइना याद रहे तो अच्छा होगा कि वो इसकी पॉवर समझें। ओपन लेटर लिखकर आपने खुद को फेमिनिज्म के रास्ते का रोड़ा बता दिया है।