राष्ट्रीय

छग : ‘बिगड़ैल’ हाथियों को नियंत्रित करेंगे ‘कुंकी हाथी’

रायपुर, 26 जनवरी (आईएएनएस)| असामान्य व्यवहार वाले जंगली हाथियों को नियंत्रित करने के लिए प्रशिक्षित हाथियों का उपयोग किया जाता है। इन प्रशिक्षित हाथियों को कुंकी हाथी के नाम से जाना जाता है।

कर्नाटक से इस तरह प्रशिक्षित पांच कुंकी हाथियों का दल गुरुवार रात छत्तीसगढ़ पहुंचा। फिलहाल, इन हाथियों को महासमुंद वनमंडल के सिरपुर शिविर में रखा जाएगा।

वन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक, पांच कुंकी हाथियों में दो मादा और तीन नर हाथी शामिल हैं। मादा हाथियों का नाम गंगे और योगलक्ष्मी तथा नर हाथियों के नाम तीर्थराम, परशुराम और दुर्योधन है। हाथियों के साथ कर्नाटक से आठ महावत तथा कवाड़ी भी आए हुए हैं, जो यहां लगभग एक महीने अथवा हाथियों के बदले हुए परिवेश में सहज होने तक साथ रहेंगे। कुंकी हाथियों के बारे में प्रशिक्षण लेने गए छत्तीसगढ़ के हाथी मित्र दल के सभी सदस्य भी इन हाथियों के साथ वापस आ गए हैं।

गौरतलब है कि राज्य सरकार की ओर से हाथी मित्र दल के नौ सदस्य पिछले पांच माह से कर्नाटक राज्य के दुबारे एवं मतिगोडु हाथी शिविरों में रहकर कुंकी हाथियों के प्रबंधन का प्रशिक्षण प्राप्त किए हैं। सरगुजा के मुख्य वन संरक्षक के.के. बिसेन और सरगुजा हाथी रिजर्व के सीसीएफ सी.एस.तिवारी के संयुक्त नेतृत्व में वन विभाग के 36 लोगों का दल इन हाथियों को लाने कर्नाटक भेजा गया था।

इनमें वेटेरिनरी डॉक्टर श्री जडिया और डॉक्टर चन्दन, भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून के वैज्ञानिक डॉ. लक्ष्मीनारायण एवं डॉक्टर अंकित शामिल थे।

राज्य में जंगली हाथियों के प्रबंधन हेतु लिए गए निर्णय के अनुसार, महासमुंद और बलौदाबाजार जिलों को हाथीमुक्त जोन बनाने का फैसला किया गया है। कुंकी हाथियों की मदद से इन क्षेत्रों में असामान्य व्यवहार करने वाले हाथियों को पकड़कर रेडियो कॉलर किए जाने की योजना है।

इसके साथ ही ऐसे मादा हाथी, जो दल का नेतृत्व करते हैं, को भी रेडियो कॉलर करने की योजना है। भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून के सहयोग से रेडियो कॉलर लगाया जाएगा। ये रेडियो कॉलर दक्षिण अफ्रीका से खरीदे गए हैं।

उन्होंने बताया कि एक रेडियो कॉलर पर लगभग ढाई लाख का व्यय संभावित है तथा इसके बाद डेटा के उपयोग के लिए लागत लगभग एक लाख रुपये हर साल आएगा। रेडियो कॉलर से निकलने वाली तरंगें सीधे सैटेलाइट पर पहुंचेगी, जो वहां से परावर्तित होकर क्षेत्र में स्थापित रिसीवर पर प्राप्त होंगी। जिससे हाथियों के वनों में विचरण की वास्तविक स्थिति का पता चल सकेगा। इससे जान-माल को हानि पहुंचाने से रोका जा सकेगा।

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