झोपड़ी में रहने वाले किसान की बेटी ने पेश की मिसाल, बनी जेल सुपरिटेंडेंट
झाबुआ| कहा जाता है कि प्रतिभा और मेहनत पर अभाव या असुविधाएं भारी नहीं पड़ते। इसे कर दिखाया है मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के झोपड़ी में रहने वाले आदिवासी किसान राधु सिंह चौहान की बेटी रंभा ने। उसका राज्य लोक सेवा आयोग परीक्षा में सहायक जेल अधीक्षक के पद पर चयन हुआ है। रंभा के पिता राधूसिंह चौहान झाबुआ के नवापाड़ा गांव के निवासी हैं। उनका परिवार झोपड़ी में रहता है। जिला मुख्यालय से महज 18 किलोमीटर दूर स्थित है यह गांव। आदिवासी बहुल इस इलाके में आदिवासी समाज द्वारा अपनी बेटियों की कम उम्र में शादी कर देते हैं।
रंभा बताती है कि उसके माता-पिता ने पढ़ाई को महत्व दिया, उसी का नतीजा है कि उसका पीएससी परीक्षा 2017 में सहायक जेल अधीक्षक के पद पर चयन हुआ है। राधू बताते हैं कि उन्होंने बेटी को पढ़ाने का संकल्प लिया और लगातार प्रोत्साहित करते रहे। वहीं रंभा की मां श्यामा कहती हैं कि वह खुद नहीं पढ़ पाईं, इसका उन्हें हमेशा अफसोस रहता है। इसीलिए उन्होंने रंभा से कहा था, “तुम पढ़ाई पूरी करना और जब तक कोई नौकरी नहीं मिल जाए, तब तक रुकना मत।” रंभा माता-पिता की प्रेरणा से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ती रही।
रंभा बताती है कि उसकी शिक्षा की शुरुआत नवापाड़ा गांव के सरकारी स्कूल से हुई। गांव में आगे की पढ़ाई की सुविधा नहीं होने से वह 18 किलोमीटर दूर झाबुआ प्रतिदिन आना-जाना करने लगी। इसके लिए उसे रोज डेढ़ किलोमीटर तक पैदल भी चलना पड़ता था, क्योंकि गांव तक कोई बस आती नहीं थी। रंभा के पिता राधू और मां श्यामा चौहान ने कहा कि वे पढ़ाई नहीं कर पाए, इसका मलाल मन में हमेशा रहता था। मगर सोच रखा था कि बेटियों को जरूर पढ़ाएंगे। गांव में उत्सव जैसा माहौल है। गांव के लोग और रिश्तेदार बधाई देने रंभा के घर पहुंच रहे हैं और रंभा के साथ-साथ उसके माता-पिता का भी पुष्पहार से स्वागत कर रहे हैं।
रंभा माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली प्रथम महिला बछेंद्री पाल से काफी प्रभावित है। वह गांव की लड़कियों से भी कहती है, “जो मैं कर सकती हूं, वो आप क्यों नहीं कर सकतीं। मेहनत करो, सफलता जरूर मिलेगी।”