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जानवरों के साथ ऐसी क्रूरता का व्यवहार कर रहा नगर निगम

देहरादून। वैसे अगर देखा जाए तो शहर के बीच घूमते आवारा जानवर समस्या हैं, भले ही इनके रहने से सड़क दुर्घटना की संभावनाएं हमेशा रहती हैं और चलो ये भी माना कि हम लोग इन्हें अपने आस-पास देखना पसन्द नहीं करते। अगर ऐसा है तो भी क्या हमें या प्रशासन को इनसे बदसलूखी या फिर इनको प्रताड़ित करने का अधिकार मिल जाता है?

बता दें कि राजधानी देहरादून में आज कल नगर निगम शहर से आवारा जानवरों को हटाने में लगा है। आवारा जानवरों से बाधित होते यातायात और इनसे पैदा होती वाली बिमारियों से लोगों को बचाने लिए ये अभियान चलाया जा रहा है। अभियान जिसमें निगम कर्मचारी मोटी रस्सी का जाल लेकर सड़कों पर निकलते हैं और जानवरों को गाड़ियों में कैद कर लेते हैं।

ये अभियान सराहनीय है लिहाजा लोगों की भी अक्सर ऐसे अभियानों में पूरी सहमति होती है। लेकिन जनता को आवारा जानवरों से निजात दिलाने वाला यही अभियान अगर जानवरों पर क्रूरता का एक जरिया बन जाए। तो भला आप ही बताइये क्या ये ठीक होगा? ऐसे में तो फिर खुद को आवारा जानवरों से नहीं बल्कि उन जानवरों को हमारी क्रूरता से निजात दिलाने के बारे में सोचना चाहिए।

जानवरों को पकड़कर उन्हें किस बर्बरता से गाड़ियों में लादा जाता है, जिसका आप अंदाज भी नहीं लगा सकते। कोई जानवरों को अपने पैर से दबा रहा है तो कोई निर्मम तरीके से उन्हें खींच रहा है। बता दें कि गाड़ी में डालने के लिए उनके कान और उनकी पूंछ को बेहरमी से खींचा जा रहा है। ऐसा लग रहा है मानों निगम के लिए वे जानवर नहीं बल्कि कोई खिलौना हों। बता दें ये तरीका किसी भी तरह जायज नहीं हो सकता। अब निगम को देखना होगा कि आवारा जानवरों को पकड़ने का ये तरीका क्या ऐसे ही चलता रहता है या फिर कोई इसमें सुधार होगा? ये तो अब आने वाले समय में ही देखा जायेगा।

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