राष्ट्रीय

पराली दहन से मुक्ति दिलाने वाली प्रौद्योगिकी

चंडीगढ़, 18 दिसम्बर (आईएएनएस)| राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली समेत उत्तर भारत में पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण की समस्या से राहत मिलने की उम्मीद जगी है। दरअसल, आस्ट्रेलिययन सेंटर फॉर इंटरनेशनल एग्रीकल्चरल रिसर्च (एसीआईएआर) ने पराली जलाने की समस्या से निजात दिलाने के लिए प्रौद्योगिकी मुहैया कराने की पेशकश की है। एसीआईएआर की ओर से विकसित ‘हैप्पी सीडर’ प्रौद्योगिकी के जरिए बोआई करने के लिए खेतों को खाली करने व खेतों की जुताई करने की जरूरत नहीं होती है। इससे धान व गेहूं की फसलों के अवशेष (पराली) जलाने की समस्या नहीं रह जाती है।

आस्ट्रेलियाई उच्चायोग के प्रवक्ता ने सोमवार को एक बयान में कहा, हैप्पी सीडर प्रमाणित जीरो टिलेज (जुताई रहित) समाधान है, जिसके जरिए पराली में सीधे बीजों की बोआई की जा सकती है। इस तरह खेतों को खाली करने या फसलों के अवशेष को जलाने की आवश्यकता नहीं होती है।

हर साल पंजाब और हरियाणा में धान की 300 लाख टन पराली तैयार होती है, जिसको बाद में आग के हवाले कर दिया जाता है, जोकि उत्तर भारत में वायु प्रदूषण फैलाने का प्रमुख कारक है।

प्रवक्ता ने कहा कि इस नई परियोजना से पराली जलाने से पैदा होने वाली पर्यावरण संबंधी समस्या के समाधान में मदद मिल सकती है। भारत में आस्ट्रेलिया के उच्चायुक्त हरिंदर सिद्धू ने इस पहल का स्वागत किया और कहा कि हैप्पी सीडर विकसित करने में एसीआईएआर का निवेश सफल रहा है।

चंडीगढ़ में इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च की ओर से आयोजित कार्यशाला में यह परियोजना शुरू की जाएगी।

कार्यशाला में अनुसंधानकर्ता वैज्ञानिकों, विस्तार अधिकारियों, किसानों और यंत्र निर्माताओं के अलावा केंद्र व पंजाब और हरियाणा सरकार के अधिकारी हैप्पी सीडर प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल को प्रोत्साहन देने पर विचार-विमर्श करेंगे।

‘उत्तर भारत के विशाल मैदानी क्षेत्र में धान और गेहूं की खेती में जुताई रहित प्रौद्योगिकी- हैप्पी सीडर अपनाने को बढ़ावा देने के लिए मूल्य श्रंखला व नीति हस्तक्षेप’ का मकसद हैप्पी सीडर के प्रदर्शन पर प्रकाश डालना है।

प्रवक्ता ने बताया कि एसीआईएआर के सहयोग से पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) और आस्ट्रेलिया के इंजीनियरों व वैज्ञानिकों ने एक दशक पहले इसे विकसित किया था।

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