दभोई के सामाजिक समीकरण से परेशान भाजपा ने अलापा हिंदुत्व राग
वड़ोदरा, 10 दिसम्बर (आईएएनएस)| गुजरात के 36 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां चुनाव के नतीजों पर मुस्लिम मतदाता प्रभाव डाल सकते हैं। उनमें भी एक है दभोई विधानसभा क्षेत्र, जहां भारतीय जनता पार्टी को काफी मशक्कत करनी पड़ रही है।
यहां का सामाजिक ताना-बाना और एक पार्टी का दोबारा नहीं जीतने की परंपरा कांग्रेस के पक्ष में है। लिहाजा भगवा पार्टी ने यहां मतदाओं का ध्रुवीकरण करने के इरादे से मुस्लिम विरोधी सरगर्मी को उभारने की चेष्टा की है।
भाजपा उम्मीदवार शैलेश मेहता ऊर्फ सोट्टा भाई ने कुछ दिनों पहले सांप्रदायिक बयान देकर सुर्खियां बटोरी थी।
पाटीदार, मुस्लिम और अनुसूचित जनतातीय (ज्यादातर वसावा समुदाय के लोग) मतदाताओं के समर्थन से कांग्रेस उम्मीदवार और पूर्व विधायक मजबूत स्थिति में दिखाई दे रहे हैं।
1962 से यहां एक पार्टी के उम्मीदवार को दोबारा जीत नहीं हासिल हुई है। इस परंपरा का फायदा सिद्धार्थ पटेल के पक्ष में जाता है, क्योंकि यहां 2012 में भाजपा के बालकृष्ण भाई पटेल चुनाव जीते थे। दभोई में कभी एक पार्टी या एक उम्मीदवार को लगातार दूसरी बार जीत हासिल नहीं हुई है, जिसके चलते भाजपा को अपना उम्मीदवार बदलना पड़ा है।
सिद्धार्थ पटेल पूर्व मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल के पुत्र और कांग्रेस के चुनाव अभियान टीम के प्रमुख हैं। वह इस सीट पर 2007 और 1998 में विजयी रहे थे।
दभोई विधानसभा क्षेत्र वड़ोदरा जिले और छोटा उदयपुर लोकसभा क्षेत्र में आता है। यहां पाटीदार मतदाताओं की संख्या 45,854 है। वहीं मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 22,321 है। यहां एसटी के 47,040, बक्शी पंच (ओबीसी) मतदाता 44,026, एसएसी 10,413, राजपूत 9,443 और ब्राह्मण 5,642 हैं।
पाटीदार, एसटी और मुस्लिम मतदाताओं के समर्थन से सिद्धार्थ पटेल मजबूत स्थिति में हैं, क्योंकि अधिकांश एसटी मतदाता वसावा समुदाय के हैं। जनता दल (यूनाइटेड) के पूर्व नेता व भारतीय ट्राइबल पार्टी के नेता छोटूभाई वसावा की यहां अच्छी छवि है और उन्होंने कांग्रेस से हाथ मिला लिया है।
भाजपा को यहां ऊंची जातियों के वोट के साथ-साथ 44,000 बक्शी पंच के वोट मिलने का भरोसा है। चूंकि पाटीदार भाजपा से नाराज हैं, इसलिए समुदाय के बड़े हिस्से की ओर से भाजपा को वोट मिलने की उम्मीद कम है।
कांग्रेस के पक्ष में सामाजिक ताने-बाने को देख चिंतित शैलेश सोट्टा ने प्रथम चरण के मतदान से कुछ दिन पहले एक चुनावी रैली में कहा था -‘दाढ़ी और टोपी वाले अपनी आवाज व आखें नहीं चढ़ाएं’।
बाद में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की उपस्थिति में सोट्टा ने यह कहते हुए अपने रुख को दोहराया कि इन ‘असामाजिक तत्वों’ का अवश्य दमन किया जाना चाहिए।
इस बयान से सोट्टा को कुछ शोहरत जरूर मिली होगी, लेकिन लोग उन्हें गंभीरता से नहीं ले रहे हैं।
किलनपुर गांव के ट्रांसपोर्टर विनोद भाई जायसवाल ने आईएएनस से बातचीत में कहा, ये सब चुनावी हथकंडे हैं। सोट्टा भाई ने मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने के इरादे से ऐसा कहा है, क्योंकि वह चुनाव हार रहे हैं। लोग उनको मुहतोड़ जवाब देंगे।
लेकिन ओबीसी मतदाता कनूभाई दरवाडी को उम्मीद है कि सोट्टा भाई की जीत होगी। उन्होंने कहा, वह मजबूत उम्मीदवार हैं, क्योंकि उनको मालूम है कि विषम परिस्थितियों में कैसे जीत हासिल की जाए।
ट्रक मालिक नादिर भाई पठान ने कहा, सिद्धार्थ पटेल बाहरी हो सकते हैं, लेकिन वह अक्सर आते रहते हैं। वह हमारे पारिवारिक उत्सवों में शामिल होते हैं और जरूरत पड़ने पर मदद भी करते हैं।
राजकुमार वसावा और उनके दोस्त सिद्धार्थ पटेल को वोट करने को उत्सुक हैं। वसावा ने कहा, भाजपा ने निवर्तमान विधायक बालकृष्ण भाई के प्रति एंटी इन्कंबेसी से बचने के लिए सोट्टा को लाया है। यह कामयाब नहीं होगा।
अवकाश प्राप्त शिक्षक रामा भाई हाडा ने कहा कि सोट्टा का बयान पाटीदारों और आदिवासियों का समर्थन प्राप्त करने लिए था, जोकि भाजपा से नाराज हैं।
नाई अलकेश वसावा ने कहा, चुनाव में जीत हासिल करने के बाद कोई नेता क्षेत्र में नहीं आता है। मैंने पिछली बार बालकृष्ण भाई को 2012 में देखा था। कोई हमसे वोट देने की उम्मीद कैसे कर सकता है।
उन्होंने आगे कहा, मुझे नहीं लगता कि वह (सोट्टा) जीतेंगे। अलकेश ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी यहां इसी तरह के बयान दे चुके हैं, क्योंकि इस इलाके का सामाजिक ताना-बाना भगवा पार्टी के पक्ष में नहीं है।
गुजरात विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में 14 दिसंबर को दभोई में मतदान होगा। प्रथम चरण का मतदान शनिवार को ही संपन्न हुआ।
जमालपुर-खाडिया, वेजलपुर, वागरा, वांकानेर, दरियापुर, भुज और अब्दासा प्रदेश के उन 36 विधानसभा सीटों में शामिल हैं, जहां मुस्लिम मतदाता चुनाव नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं। जमालपुर-खाडिया में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या करीब 60 फीसदी है। अन्य सीटों पर 13 से 15 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं।
भरूच और कच्छ इलाके की कुछ सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं की तादाद 20 से 25 फीसदी है।
राजनीति के जानकारों का मानना है कि इन सीटों पर कांग्रेस को फायदा मिल सकता है, जबकि भाजपा को महज सांप्रदायिक आधार पर वोटिंग से ही मदद मिल सकती है।