राष्ट्रीय

शकूर राइन हैं चलता-फिरता ‘सूचना केंद्र’

छतरपुर, 10 दिसंबर (आईएएनएस)| देश और दुनिया में सूचना प्रौद्योगिकी की क्रांति ने सभी सीमाओं को लांघ दिया है और सूचना भेजने का सबसे सशक्त माध्यम बन गया है, मगर इस दौर में भी ‘लाउडस्पीकर’ की अहमियत कम नहीं हुई है।

इसे मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड के छतरपुर जिले में बजाज एम80 के आगे चोंगा लगाकर हाथ में माइक थामे प्रचार करते शकूर राइन को देखकर समझा जा सकता है।

शकूर राइन अपने जीवन के छह दशक पूरे कर चुके हैं, मगर उन्हें देखकर उनकी उम्र का अंदाजा लगा पाना आसान नहीं है। वह कहते हैं कि बीते 20 सालों से उनका रोजी-रोटी का जरिया लाउडस्पीकर से प्रचार करना है। पहले रिक्शे पर सवार होकर लाउडस्पीकर लगाकर विभिन्न कंपनियों से लेकर राजनीतिक दलों और धार्मिक आयोजनों का प्रचार करते थे। अब उनके पास दुपहिया वाहन आ गया है, जिससे उनका काम और भी आसान हो गया है।

लहराती सफेद दाढ़ी, सिर पर टोपी और कुर्ता-पायजामा पहने शकूर को देखकर उसके मुस्लिम होने का आसानी से अहसास हो जाता है, मगर उसके लिए धर्म की दीवार कोई मायने नहीं रखती।

शकूर ने आईएएनएस से कहा कि वह कभी फल का ठेला लगाया करते थे, वक्त बदला तो उन्होंने रोजगार का नया रास्ता चुना, इसमें वे काफी हद तक सफल रहे। अब स्थिति यह है कि शहर में आयोजन कोई हो, हर कोई उनके जरिए अपना प्रचार कराना चाहता है।

शकूर बताते हैं कि वे समाजवादी विचारधारा से जुड़े रहे। कई आंदोलन किए, जेल भी गए, अब वैसे नेता नहीं रहे, जिनके साथ समाज की लड़ाई लड़ी जा सके। इसीलिए उन्होंने रोजगार के लिए लाउडस्पीकर को चुना है, क्योंकि इतना पैसा है नहीं कि कोई बड़ा धंधा किया जा सके।

शहर में चाहे रामलीला, रामायण, भागवत कथा, कर्मचारी आंदोलन या राजनीतिक आंदोलन हो, उसका जब तक शकूर प्रचार न कर दें, तब तक यह नहीं माना जाता कि यह सूचना घर-घर तक पहुंच गई होगी।

स्थानीय अधिवक्ता जितेंद्र मिश्र कहते हैं कि भले ही हर हाथ में मोबाइल आ गया हो, मगर छतरपुर में शकूर ही चलता-फिरता सूचना केंद्र हैं। वे सांप्रदायिक सद्भावना की मिसाल भी हैं। हैं जरूर मस्लिम, मगर हर धर्म के आयोजनों का प्रचार करते मिल जाएंगे।

शकूर अपने अनुभवों को साझा करते हुए बताते हैं कि उनके नारे लगाने का अंदाज पुराना समाजवादी है, किसी कर्मचारी संगठन या सामाजिक आंदोलनों में उनके नारे नया जोश भर देते हैं। एक बार तो एक अधिकारी ने इनाम में 500 रुपये तक दिए थे। वे एक दिन के प्रचार का 300 रुपये लेते हैं। इसी रकम से उनका काम चल जाता है।

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