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उत्तराखंड के तालाब और झील बनेंगे मोतियों का खजाना, इस वैज्ञानिक ने खोला राज

देहरादून। अब उत्तराखंड के तालाब और झील मोती उगलेंगे और इनका प्रदूषण भी कम किया जा सकेगा। समुद्री मोतियों के विशेषज्ञ वैज्ञानिक डॉ. अजय कुमार सोनकर ने देहरादून पहुंचकर इसकी संभावनाओं को तलाशा हैं।

दून में फ्रेश वाटर पर्ल कल्चर की संभावनाएं तलाशने आए सोनकर प्रदेश के तालाब और झीलों में मोतियों के उत्पादन की बेहद लाभपरक योजना पर काम कर रहे हैं।

डॉ. सोनकर ने कहा कि फ्रेश वाटर पर्ल कल्चर (सीप से मोती बनाना) से पानी को साफ करने अलावा प्रदेश में पर्यटन को भी बढ़ावा दिया जा सकता है। विदेशों में भी इस तकनीक का इस्‍तेमाल धड़ल्‍ले से हो रहा है। जल के तल में पाए जाने वाली विभिन्न प्रजाति की सीप सारा जीवन पानी के प्रदूषण को खत्‍म करने में जुटी रहती हैं।

आपको जानकर हैरानी होगी कि मामूली सी दिखने वाली सीप क्‍या–क्‍या कर सकती है। एक सीपों की कॉलोनी 30 से 100 मिलियन गैलन पानी को प्रतिदिन प्रदूषण मुक्त करती है। फ्रेश वाटर कल्चर, पर्यटन को बढ़ावा देने में भी सहायक सिद्ध हो रहा है। डॉ. सोनकर ने बताया कि भारत का मोती बाजार चीनी बाजार से प्रभावित है।

डॉ. सोनकर ने बताया कि भारतीय मसल्स (सीप) छोटी होती हैं। जबकि, चीन की मसल्स बड़ी होती हैं और एक बार में इससे 50 मोती बनाए जा सकते हैं। भारतीय सीप से हम एक बार में केवल एक मोती ही बना सकते हैं।

सीप को कोई नुकसान न हो इसके लिए सावधानी बरतनी होती है।बता दें कि चीन के लोग जानवरों के प्रति बेहद क्रूर और हिंसक होते हैं। मोती मिलने के बाद वे सीप को जान से मारने में भी गुरेज नहीं करते हैं। लेकिन हमारी तकनीक में सीप की मौत नहीं होती, बल्कि एक सीप अपने जीवन में कई बार मोती बना सकता है।

डॉ. सोनकर के मुताबिक सबसे पहले सीप में जीन सिक्रेशन तैयार कराया जाता है। इसके बाद सीप में मोती बनने की प्रक्रिया शुरू होती है। सीप का ऑपरेशन कर फॉरेन बॉडी डालने के लिए कैल्शियम कार्बोनेट की परत बनाई जाती है। बात दें कि जिस आकार की बॉडी डाली जाती है, उसी आकार का मोती बनता है।

सीप की उम्र तीन साल होने पर उसमें से मोती तैयार हो जाता है। सीप की अधिकतम आयु 6 साल मानी गई है। सीप की खेती शुरू करने से पहले किसान को हर सीप में ऑपरेशन कर उसके अंदर छोटा सा नाभिक या ऊतक रखना होता है। फिर सीप को बंद कर दिया जाता है।

ऊतक से निकलने वाला पदार्थ नाभिक के चारों ओर जमने लगता है और अंत में मोती का रूप ले लेता है। इसके बाद सीप को खोलकर मोती निकाल लिया जाता है और उसका कुशलता से ट्रीटमेंट किया जाता है।

 

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