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प्रधान न्यायाधीश ‘मास्टर ऑफ रॉल्स’ हैं : शीर्ष अदालत

नई दिल्ली, 10 नवंबर (आईएएनएस)| प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने शुक्रवार को एक आसाधरण आदेश में रिश्वत के एक मामले में उड़ीसा उच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश की कथित संलिप्तता की जांच की मांग पर सुनवाई को लेकर पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ का गठन करने संबंधी न्यायमूर्ति चेलामेश्वर की अध्यक्षता वाली पीठ के आदेश को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि प्रधान न्यायाधीश ‘मास्टर ऑफ रॉल्स’ होते हैं जो सुनवाई के लिए मामले निर्दिष्ट करते हैं और पीठों की संरचना करते हैं।

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में पांच न्यायाधीशों की पीठ ने मामले में आदेश जारी करते हुए शीर्ष अदालत के 1998 के आदेश का उदाहरण दिया, जिसमें कहा गया था कि उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश मास्टर ऑफ रॉल्स होंगे और वह विभिन्न पीठों को मामले निर्दिष्ट करेंगे।

प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि 1998 के फैसले के विपरीत जारी कोई भी आदेश प्रभावी नहीं होगा और उसे मानने की बाध्यता नहीं होगी।

शीर्ष अदालत का यह फैसला प्रधान न्यायाधीश के बाद सबसे वरिष्ठ न्यायमूर्ति चेलामेश्वर की ओर से रिश्वत के एक मामले में उड़ीसा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश आई एम कुदुशी की संलिप्तता की जांच की मांग पर सोमवार को सुनवाई करने के लिए पांच न्यायाधीशों की पीठ का गठन करने के आदेश के एक दिन बाद आया है।

वर्ष 2004-2010 के दौरान उड़ीसा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश रहे कुदुशी पर शीर्ष अदालत की ओर से प्रतिबंध लगाए जाने के बावजूद एक निजी मेडिकल कॉलेज को एमबीबीएस कोर्स में छात्रों का प्रवेश स्वीकार करने में मदद करने का आरोप है।

मामले में न्यायाधीश कुदुशी को सितंबर में गिरफ्तार किया गया था और इस समय वह तिहाड़ जेल में बंद हैं। केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआई ने इनके ऊपर निजी मेडिकल कॉलेज का निर्देशन करने और उसके प्रबंधन को सर्वोच्च न्यायालय में चल रहे मुकदमों का पक्ष में निपटारा करने का भरोसा दिलाने का आरोप लगाया है।

सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता कामिनी जायसवाल ने गुरुवार को मामले की जांच न्यायालय की निगरानी में विशेष जांच दल यानी एसआईटी से करवाने की मांग करते हुए शीर्ष अदालत में एक याचिका दायर की थी। याचिका पर न्यायमूर्ति चेलामेश्वर की अध्यक्षता वाली पीठ में सुनवाई हुई।

उधर, न्यायमूर्ति ए.के. सीकरी की अध्यक्षता वाली पीठ में इसी जांच की मांग को लेकर एनजीओ कैंपेन फोर ज्यूडिशियल अकाउंटिबिलिटी एंड रिफॉर्म्स की ओर से दाखिल एक याचिका सुनवाई के लिए पहले से सूचीबद्ध थी।

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