राष्ट्रीय

गीत ‘मिथिला घुमा दे’ मचा रहा धूम

पटना, 9 नवंबर (आईएएनएस)| गीतकार डॉ़ बीरबल झा द्वारा रचित मिथिला की लोक-संस्कृति की विलक्षणता से परिचय कराता हिंदी गीत ‘मिथिला घुमा दे’ न केवल पर्यटकों को यहां आने के लिए आमंत्रित कर रहा है, बल्कि यह गीत इन दिनों मिथिलांचल सहित पूरे बिहार में धूम मचाए हुए है। लोग सोशल मीडिया के जरिये इस गीत को खूब देख और सुन रहे हैं। इस गीत के जरिए मिथिला की संस्कृति और वहां की विरासत को प्रस्तुत किया गया है। ‘अरे भैया मिथिला घुमा दे, हमें भी पाग पहना दे’ मुखरा वाले इस गीत में गीतकार ने जहां महाकवि विद्यापति से लेकर अयाची मिश्र, उनके पुत्र शंकर और मंडन मिश्र जैसे ज्ञानी-मनीषियों की चर्चा की है वहीं, लोरिक और सल्हेश जैसे लोकगाथा नायकों का भी उल्लेख किया है। इस गीत को गायक विकास झा ने स्वर दिया है।

डॉ़ झा ने कहा कि ज्ञान-गरिमा में मिथिला अतुल्य है, जगत गुरु शंकराचार्य भी इसी धरती पर पंडित मंडन मिश्र की पत्नी भारती से शास्त्रार्थ में पराजित हुए थे। कवि शिरोमणि विद्यापति के मधुरगीतों का रसास्वादन करने के लिए स्वयं महादेव ने उगना का रूप धारण कर उनकी चाकरी भी इसी धरती पर की थी।

ब्रिटिश लिंग्वा के निदेशक डॉ़ झा ने कहा, दुनिया को आज अयाची मिश्र की धारणा से सीख लेने की जरूरत है कि मात्र सवा कट्ठा जमीन से कैसे परिवार का गुजारा किया जा सकता है।

उनका कहना है कि गलाकाट स्पर्धा के वर्तमान युग आत्मसंतोष के लिए कोई जगह नहीं रह गई है। लिहाजा, अयाची मिश्र से संतुष्टि का मंत्र लेने की जरूरत है।

गीतकार ने इस गीत में लोकगाथा के महानायक लोरिक का जिक्र किया है, जो माता दुर्गा के अनन्य भक्त थे और माता की पा से वह मलयुद्ध में अपने से दोगुना बलशाली योद्धा को पराजित करने में कामयाब रहे थे।

इस गीत में ‘मैथिली’ यानी मां सीता की भी चर्चा की गई है। मिथिला की लोक-संस्कृति में प्रति-पूजा का विशेष महत्व है, जिसकी भी चर्चा इस गीत में की गई है। गीत में ‘पाग’ का भी उल्लेख है, जिसे मिथिला की आन-बान-शान का प्रतीक माना जाता है। इसे पहनकर यहां आने वाले मेहमान भी गौरवान्वित होते हैं।

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