राष्ट्रीय

दिल्ली : भाजपा ने दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष का इस्तीफा मांगा

नई दिल्ली, 3 नवंबर (आईएएनएस)| भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने शुक्रवार को दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष राम निवास गोयल द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय को लिखे पत्र के लिए उन्हें आड़े हाथ लिया और पद से इस्तीफा देने की मांग की। गोयल ने उच्च न्यायालय को अपने पत्र में न्यायालय की एक पीठ पर विधायिका के विरुद्ध बिना तथ्यों की जांच किए आदेश देने का आरोप लगाया था। गोयल ने बाद में इस पत्र को वापस करने का अनुरोध किया।

दिल्ली भाजपा इकाई प्रमुख मनोज तिवारी ने यहां पत्रकारों से कहा, दिल्ली उच्च न्यायालय में दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष द्वारा कुछ ही दिनों में पत्र वापस करने का आग्रह स्पष्ट तौर पर दिखाता है कि वह जानते थे कि यह पत्र लिखना असंवैधानिक और अराजक है।

भाजपा नेता ने गोयल पर निशाना साधते हुए कहा, पत्र वापस करने या नहीं करने का निर्णय लेना न्यायालय का विशेषाधिकार है और पार्टी इसपर टिप्पणी नहीं करना चाहती है।

तिवारी ने मांग करते हुए कहा, लेकिन, इसके बाद गोयल को स्पीकर पद पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं है। उन्हें अवश्य ही इस्तीफा देना चाहिए।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा, आप सरकार को इस मुद्दे पर अपना दृष्टिकोण लोगों के समक्ष रखना चाहिए और गोयल को पद से हटाना चाहिए।

दिल्ली विधानसभा स्पीकर ने गुरुवार को दिल्ली उच्च न्यायालय से कहा कि वह कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश न्यायमूर्ति गीता मित्तल को लिखे पत्र को वापस लेना चाहते हैं। पत्र में उन्होंने मुख्य न्यायाधीश पर रोष प्रकट करते हुए ‘विधानसभा के कार्य को बाधित करने के लिए जानबूझकर प्रयास करने का’ आरोप लगाया था।

तीन पन्नों के इस पत्र की सुनवाई याचिका के रूप में होगी।

पत्र दो वरिष्ठ नौकरशाहों को निशाना बनाते हुए लिखा गया है जिसमें उनलोगों पर विधायिका को दुर्बल करने का आरोप लगाया गया है।

गोयल आम आदमी पार्टी के शहादरा से विधायक हैं और उन्होंने दोनों अधिकारियों के नाम नहीं लिए, लेकिन सूत्रों के हवाले से माना जा रहा है पत्र में लोक निर्माण विभाग के प्रधान सचिव अश्विनी कुमार और दिल्ली के मुख्य सचिव एम.एम कुट्टी की ओर इशारा किया गया है।

तिवारी ने कहा, स्पीकर की भूमिका पर लगातार प्रश्न उठते रहे हैं लेकिन दिल्ली उच्च न्यायालय को स्पीकर द्वारा पत्र लिखने की खबर स्तब्ध करने वाली है। यह लोकतंत्र के दो स्तंभ विधायिका और न्यायपालिका के संबंध पर हमला है।

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