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राजस्थान सरकार ने सदन में पेश किया आपराधिक कानून विधेयक

जयपुर, 23 अक्टूबर (आईएएनएस)| चौतरफा हमले से घिरी वसुंधरा राजे नीत भाजपा सरकार ने सोमवार को विधानसभा में आपराधिक कानून (राजस्थान संसोधन) विधेयक पेश कर दिया।

यह विधेयक क्रिमनल कोड ऑफ प्रोसड्यिूर,1973 में संशोधन करती है और जबतक राजस्थान सरकार किसी मामले की जांच करने के आदेश नहीं देती तबतक मीडिया लोकसेवकों के नाम उजागर नहीं कर सकता है।

राजस्थान के गृह मंत्री गुलाब चंद कटारिया ने इस विधेयक को संशोधन के लिए सदन के पटल पर रखा और उसके बाद कांग्रेस सदस्य विरोध करते हुए सदन से बहिर्गमन कर गए।

इस विधेयक का विरोध करते हुए वरिष्ठ भाजपा नेता घनश्याम तिवारी भी सदन से बाहर चले गए।

कांग्रेस विधायकों ने सरकार और विधेयक के विरोध में सदन में नारे लगाए।

विपक्ष के नेता और कांग्रेस नेता राइश्वेर दुदी ने कहा, हम विधेयक का विरोध करते हैं।

उन्होंने कहा, इससे भ्रष्ट अधिकारियों को बचाने में सहायता मिलेगी।

कटारिया ने कहा, सरकार ने इस विधेयक को सदन के पटल पर रखा है क्योंकि हम सदन में विपक्ष के साथ इस विधेयक पर चर्चा चाहते हैं।

उल्लेखनीय है कि राजस्थान सरकार ने आपराधिक कानून(राजस्थान संशोधन) अध्यादेश, 2017 लाकर क्रिमिनल प्रोसिड्यूर कोड,1973 और भारतीय दंड संहिता,1980 में इस वर्ष सितंबर में संसोधन किया था।

यह विधेयक मौजूदा या सेवानिवृत न्यायधीश, दंडाधिकारी और लोकसेवकों के खिलाफ उनके अधिकारिक कर्तव्यों के निर्वहन के दौरान किए गए कार्य के संबंध में न्यायालय को जांच के आदेश देने से रोकती है।

इसके अलावा कोई भी जांच एजेंसी इन लोगों के खिलाफ अभियोजन पक्ष की मंजूरी के निर्देश के बिना जांच नहीं कर सकती।

अनुमोदन पदाधिकारी को प्रस्ताव प्राप्ति की तारीख के 180 दिन के अंदर यह निर्णय लेना होगा। विधेयक में यह भी प्रावधान है कि तय समय सीमा के अंदर निर्णय नहीं लेने पर मंजूरी को स्वीकृत माना जाएगा।

विधेयक के अनुसार जबतक जांच की मंजूरी नहीं दी जाती है तबतक किसी भी न्यायधीश, दंडाधिकारी या लोकसेवकों के नाम, पता, फोटो, परिवारिक जानकारी और पहचान संबंधी कोई भी जानकारी न ही छापा सकता है और ना ही उजागर किया जा सकता है।

प्रावधानों का उल्लंघन करने वालों को दो वर्ष की कारावास और जुर्माने की सजा दी जा सकती है।

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