गुरुदासपुर की जीत ने बढ़ाई भाजपा की चिंता
पंजाब की गुरदासपुर संसदीय उपचुनाव में कांग्रेस को बड़ी जीत मिली है, जमीनी सच्चाई यह है कि इतनी बड़ी कामयाबी की उम्मीद खुद कांग्रेस और कैप्टन अमरिंदर सिंह की टीम को भी नहीं रही होगी।
इस सीट पर 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत हुई थी। इस पर चार बार सांसद रहे विनोद खन्ना के अप्रैल में निधन के बाद यह सीट खाली हो गई थी।
यहां से सिने अभिनेता से राजनेता बने खन्ना लगातर जीतते आ रहे थे। लेकिन इस बार भाजपा की पराजय कई सवाल खड़े करती है। गुरुदासपुर में कांग्रेस को मिली बड़ी जीत से पार्टी को एक नई उम्मीद बंधी है। इससे यह साबित हो गया है कि मोदी की सुनामी अब थम रही और कांग्रेस बुरे दौर से निकल कर अच्छे दिनों की तरफ कदम बढ़ा रही है। अब तक राहुल गांधी की चुटकी लेने वाली भाजपा की आंख खुली है।
राजनीतिक समीक्षकों के अनुसार उपचुनाव में जीत कोई बड़ी मायने नहीं रखती, क्योंकि पंजाब में भाजपा और अकाली दल पूरी तरह बिखर गया है जबकि आपको जितना बेहतर प्रदर्शन करना चाहिए वह नहीं कर पाई। वहां दो बार से अकाली दल की सरकार थी। पंजाब नशे को लेकर काफी बदनाम हुआ। विकास भी उस तरीके से नहीं हुआ, जिसका नतीजा रहा पंजाब में कांग्रेस की वापसी हुई। वहां कांग्रेस की सरकार है, इसलिए यह जीत बहुत मायने नहीं रखती है।
आम तौर पर यह देखा गया है कि जिसकी सत्ता रहती है उपचुनाव का परिणाम उसी की झोली में जाता है। लेकिन सिर्फ गुरुदासपुर के नतीजे से पूरे देश के सियासी मिजाज का अंदाज नहीं लगाया जा सकता है। हालांकि यह परिणाम चौंकाने वाले हैं, इसलिए नहीं कि वहां कांग्रेस की जीत हुई है, बल्कि जय पराजय का यह अंतर काफी रहा है। अभी तक विनोद खन्ना जी जितने वोटों के अंतराल से जीतते आए थे उससे भी अधिक मतों से कांग्रेस की जीत हुई है।
कांग्रेस उम्मीदवार सुनील जाखड़ ने 1.93 लाख वोटों से अधिक के अंतर से चुनाव जीता है। भाजपा उम्मीदवार स्वर्ण सलारिया के 3.06 लाख वोटों की तुलना में कांग्रेस प्रत्याशी को 4.99 लाख वोट मिले। आम आदमी पार्टी को करीब 24,000 वोट ही मिले। 2014 में भाजपा के विनोद खन्ना के खिलाफ कांग्रेस उम्मीदवार प्रताप सिंह बाजवा की 1.36 लाख मतों से हार हुई थी। यह जीत 1980 में सुखबंस कौर भिंडर कांग्रेस उम्मीदवार की जीत के रिकॉर्ड को भी तोड़ती है, जिन्होंने 1.51 लाख मतों से जीत दर्ज की थी। लगभग 15.22 लाख पंजीकृत मतदाताओं में से करीब 56 प्रतिशत ने इस चुनाव में अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया था। 2014 के आम चुनाव में हुए 70 प्रतिशत मतदान के मुकाबले इस बार काफी कम मतदान हुआ।
इस चुनाव परिणाम से यह साबित हो रहा है कि मोदी और भाजपा की नीतियों से लोगों का मोहभंग हो रहा है। क्योंकि यह चुनाव राज्यविधान सभा का चुनाव नहीं था। यह लोकसभा का उपचुनाव रहा जो सीधे मोदी की नीतियों से जुड़ा था। अगर कांग्रेस उम्मीदवार की जीत बेहद कम मतों के अंतराल से होती तो यह सवाल लाजमी था कि वहां कांग्रेस की सत्ता है इसलिए नतीजे चौंकाने वाले नहीं हैं। लेकिन तकरीब दो लाख मतों के अंतराल से जीत केन्द्र की नीतियों के खिलाफ जाती है। क्योंकि एक तरह से यह भाजपा की परम्परागत सीट बन गई थी। यहां से दिवंगत खन्ना चार बार सांसद रह चुके थे।
इस जीत से कांग्रेस और राहुल गांधी को नई उम्मीद बंधी है। क्योंकि मोदी की सुनामी के आगे कांग्रेस और राहुल गांधी टिक नहीं पा रहे थे। कांग्रेस शासित राज्यों पर भाजपा का कब्जा जारी है। अब तक उसका प्रभाव अठारह राज्यों तक फैल चुका है जबकि देश की सबसे बड़ी पार्टी लोकसभा में 44 के आंकड़े पर पहुंच गई। पूर्वी और दक्षिणी राज्यों में भी भगवा का अभ्युदय हुआ। जहां यह माना जा रहा था कि मध्य भारत में भाजपा की जीत सम्भव है, लेकिन दक्षिण और पूर्वोत्तर में उसका फैलाव सम्भव नहीं है लेकिन भाजपा और मोदी की लहर इस भ्रम को तोड़ने में कामयाब रही है।
कांग्रेस की सबसे बड़ी अग्नि परीक्षा हिमाचल प्रदेश को बचाना होगा। क्योंकि वहां कांग्रेस की सत्ता है जबकि भाजपा अपनी वापसी के लिए पूरी कोशिश में है। इसलिए पार्टी को गुरुदासपुर की जीत पर अधिक खुश होने की जरूरत नहीं है। अगर हिमाचल को राहुल गांधी और उनकी कांग्रेस बचाने में कामयाब रहते हैं तो यह कांग्रेस के लिए बड़ी उपलब्धि होगी। इससे यह साबित होगा कि लोगों में मोदी का जादू और भाजपा की नीतियां बेअसर हो रही हैं। दूसरी सबसे बड़ी चुनौती गुजरात की जीत होगी। क्योंकि गुजरात के जिस विकास मॉडल को आगे कर मोदी ने सत्ता हासिल किया था वहां कांग्रेस की विजय के साथ यह तिलस्म टूट जाएगा।
मोदी के केंद्र में आने के बाद गुजरात में अब कोई करिश्माई नेता नहीं दिखता है। आनंदी वेन पटेल के बाद वहां दूसरे चेहरे को कमान सौंपी गई है। गुजरात भाजपा कैडर में गुटबाजी से भी नहीं किया जा सकता है। दूसरी बात आगर कांग्रेस यहां वापसी करती है तो यह मोदी और अमित शाह के लिए बड़ी चुनौती होगी। उस स्थिति में कांग्रेस के लिए 2019 की राह आसान हो जाएगी और भाजपा को कड़ी टक्कर देने में वह कामयाब होगी। क्योंकि गुजरात में पटेल आरक्षण को लेकर हार्दिक पटेल भाजपा के लिए मुसीबत बन सकते हैं। यह पटेल अगड़ी जाति में आते हैं यह पटेलों की कुल आबादी का बीस फीसदी हैं। दूसरी बात नोटबंदी और जीएसटी से गुजरात के कपड़ा उद्योग पर काफी बुरा असर पड़ा है।
जीएसटी की नीतियों के विरोध में वहाँ के व्यापरी सड़क पर उतर चुके हैं, लोगों का कारोबार नष्ट हो चला है। जिसकी वजह है लोग केंद्र कि सरकार से नराज हैं, मीडिया में जो बातें आ रहीं हैं उससे भी यह लग रहा है कि गुजरात में कांग्रेस-भाजपा को कड़ी चुनौती देने की स्थिति में है। दूसरी तरफ प्रधनमंत्री नरेंद्र मोदी लगातर गुजरात का दौरा कर रहे हैं।
भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री गौरव यात्रा में हिस्सा लेकर सरकार कि उपलब्धियों को गिनाया है। पीएम ने हजारों करोड़ की परियोजनाओं की आधारशिला रखी है। हलांकि पार्टी ने इसे चुनावी चश्मे से न देखने की बात कही है लेकिन जमीनी सच्चाई यही है कि गुजरात की स्थिति बेहद अच्छी नहीं कही जा सकती। लेकिन लोकतंत्र का चुनावी ऊंट किस तरफ करवट लेगा कहा नहीं जा सकता है। लेकिन कांग्रेस की यह जीत बड़ा संदेश देने में कामयाब रही है। भाजपा के लिए यह चिंतन का वक्त है। क्योंकि लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष का होना बेहद जरूरी है। (आईएएनएस/आईपीएन)
( यह लेखक के निजी विचार हैं।)