राष्ट्रीय

इंदौर में ‘हिंगोट युद्ध’ शुरू, छोड़े जा रहे आग के गोले

इंदौर, 20 अक्टूबर (आईएएनएस)| मध्यप्रदेश के इंदौर के गौतमपुरा क्षेत्र में वर्षो से चली आ रही परंपरा के तहत दिवाली के अगले दिन शुक्रवार को शाम होते ही ‘हिंगोट युद्ध’ शुरू हुआ। यहां के मैदान में तुर्रा और कलंगी दल ने एक-दूसरे पर हिंगोट से हमला कर परंपरा निभानी शुरू कर दी है। सूर्यास्त होते ही देवनारायण मंदिर के सामने के मैदान का नजारा ही बदल गया। यहां तुर्रा और कलंगी दल ने एक-दूसरे पर हिंगोट चलाना शुरू कर दिया। दोनों ओर से हिंगोट छोड़े जा रहे हैं। जहां एक दल दूसरे को मात देने की कोशिश कर रहा है, वहीं अपनी सुरक्षा के भी पूरे इंतजाम किए हुए है। इस युद्ध का हजारों लोग आनंद ले रहे हैं। दर्शकों की सुरक्षा के मद्देनजर मैदान के चारों ओर फेंसिंग भी की गई है।

इस युद्ध की शुरुआत कैसे और कब हुई, इसका कहीं उल्लेख नहीं मिलता, मगर माना जाता है कि यह युद्ध ताकत और कौशल प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है।

पुलिस के लिए इस युद्ध के दौरान सुरक्षा बड़ी चुनौती होती है, क्योंकि यहां हजारों की संख्या में दर्शक पहुंचते हैं, तो दूसरी ओर युद्ध में हिस्सा लेने वाले कई प्रतिभागी शराब के नशे में होते हैं।

इंदौर के पुलिस उपमहानिरीक्षक (डीआईजी) हरि नारायण चारी मिश्रा ने आईएएनएस को बताया कि गौतमपुरा में होने वाले हिंगोट युद्ध के लिए पर्याप्त सुरक्षा इंतजाम किए गए हैं। हेलमेट सहित अन्य सुरक्षा सामग्री के साथ 250 जवानों की तैनाती रहेगी, इसके अलावा एम्बुलेंस व स्वास्थ्य सेवा का भी इंतजाम रहेगा। यह परंपरा है, इसे रोका नहीं जा सकता, मगर हादसा न हो, इसके लिए लोगों को समझाया गया है।

हिंगोट एक तरह का फल होता है। हिंगोरिया नामक पेड़ पर फलने वाला यह फल ऊपर से नारियल जैसा कठोर होता है, आकार नींबू जैसा और अंदर से खोखला, यह छह से आठ इंच लंबा होता है। इस फल को यहां के लोग लगभग एक माह पहले तोड़कर रख लेते हैं। फल के ऊपरी हिस्से को साफ करने के बाद भीतर के हिस्से को बाहर निकाल देते हैं। फल के सूख जाने के बाद उस पर बड़ा सा छेद करके उसमें बारूद भरते हैं और छेद को मिट्टी से बंद कर देते हैं।

इस परंपरागत युद्ध को वर्षो से देख रहे हीरा लाल बताते हैं कि यह बड़ा रोमांचकारी होता है। इसमें हिंगोट के एक ओर के छेद में मिट्टी तो दूसरी ओर के छेद में बत्ती लगी होती है। हिंगोट को एक बांस की कमानी (पतली लकड़ी) से जोड़ा जाता है, ताकि निशाना सीधा दूसरे दल पर लगे।

इस युद्ध में एक ओर तुर्रा तो दूसरी ओर कलंगी नाम का दल होता है। इन दलों के सदस्य पूरी तैयारी से मौके पर पहुंचते हैं। उनकी कोशिश होती है कि वे जीत हासिल करें। इस युद्ध में बड़ी संख्या में लोगों का घायल होना आम बात है। युद्ध खत्म होने पर दोनों दलों के लोग गले मिलकर अपने घरों को लौट जाते हैं।

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