महिलाओं पर हज नीति सिफारिशों की आलोचना जायज नहीं : समीक्षा समिति सदस्य
नई दिल्ली| नई हज नीति पर समीक्षा समिति की कुछ सिफारिशों की आलोचना को समिति के एक मुखर सदस्य ने गलत बताया है। इन सिफारिशों में ‘महरम’ के बिना हज पर महिलाओं को जाने देने की अनुमति देने की सिफारिश भी शामिल है।
समिति के सदस्य कमाल फारूकी ने कहा कि यह आलोचना वैध नहीं है क्योंकि इस्लामिक न्यायशास्त्र के कुछ स्कूलों में महिलाएं बिना महरम के यात्रा कर सकती हैं। महरम का तात्पर्य किसी महिला के ऐसे पुरुष संबंधी से है जिससे महिला परदा करने के लिए बाध्य नहीं है। इनमें पति, पुत्र, भाई, चाचा, मामा शामिल हैं।
फारूकी ने कहा, “हनफी संप्रदाय में, महिलाओं को बिना महरम के हज या फिर कोई दूसरी यात्रा करने की अनुमति नहीं है। लेकिन, (सुन्नी समुदाय के) कुछ दूसरे स्कूलों में और शियाओं में इसकी अनुमति है। इनके हिसाब से महिला बिना महरम के भी हज यात्रा कर सकती है।” उन्होंने कहा, “जब हम एक हज नीति बना रहे हैं, तो हम न्यायशास्त्र के सभी स्कूलों के मुसलमानों के लिए बना रहे हैं, सिर्फ हनफियों के लिए नहीं।” उन्होंने कहा कि वह खुद हनफी मुस्लिम है।
उन्होंने कहा कि सबसे अहम बात यह है कि यह स्थिति किसी के लिए भी बाध्यकारी नहीं है। किसी भी महिला को अकेले यात्रा के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। ऐसा तभी संभव होगा जब महिला खुद ऐसा चाहेगी। उन्होंने कहा कि सऊदी अरब के नियमों के मुताबिक 45 वर्ष से कम उम्र की कोई महिला ‘नामहरम’ (जो महरम नहीं है) के साथ यात्रा नहीं कर सकती।
उन्होंने कहा, “यह हनफियों के पक्ष से बिल्कुल विपरीत है। वे महिलाओं को अकेले यात्रा करने की अनुमति देते हैं, लेकिन नामहरम के साथ नहीं। इसलिए मेरे विचार में सऊदी सरकार को 45 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं को चार के समूह में हज की अनुमति देने में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए।”
शिया विद्वान मौलाना कल्बे जवाद नकवी ने सिफारिश का स्वागत किया है। नकवी ने बताया, “हमारे मसलक (पंथ) के मुताबिक एक महिला अकेले हज की यात्रा कर सकती है। इसलिए सिफारिश स्वीकार हो जाती है, तो शिया महिलाएं अगर चाहती हैं तो हज की यात्रा पर अपने बूते जा सकती हैं।” उन्होंने कहा कि जो लोग बिना मेहरम के यात्रा नहीं करना चाहते हैं, उनके लिए नियम बाध्यकारी नहीं है।
अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने फरवरी में सेवानिवृत्त आईएएस अफजल अमानुल्लाह की अध्यक्षता में प्रमुख मुसलमानों की एक समिति का गठन किया था जिसे हज नीति की समीक्षा करने और तीर्थ यात्रा के समग्र अनुभव में सुधार के उपाय सुझाने के लिए कहा गया था। समिति ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट मंत्रालय को सौंप दी है।
सिफारिशों में से एक में कहा गया है कि 45 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं को चार के एक समूह में किसी महरम के बिना हज करने की अनुमति दी जानी चाहिए। हनफी मत के अधिकांश धर्मगुरु इससे सहमत नहीं हैं और सिफारिश को शरिया के खिलाफ देख रहे हैं।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के मौलाना नियाज फरुकी ने बताया, “हम इस सिफारिश के उद्देश्य को नहीं समझ पा रहे हैं क्योंकि इस्लामिक शरीयत के मुताबिक एक महिला अकेले बिना महरम के यात्रा नहीं कर सकती है।” उन्होंने कहा कि शरीयत निषेध के अलावा, यात्रा के दौरान महिलाओं की सुरक्षा और विदेश में रहना भी एक मुद्दा है।
उन्होंने कहा, “सरकार एक नीति बना सकती है, लेकिन जो शरीयत को मानती हैं, वे महरम के बिना नहीं जाएंगी।” दिल्ली के जामा मस्जिद के शाही इमाम मौलाना अहमद बुखारी ने भी सिफारिश की निंदा की है और कहा कि शरीयत के एक महत्वपूर्ण नियम को कुछ लोकप्रियता हासिल करने के लिए नजरअंदाज किया जा रहा है।
बुखारी ने कहा,”महिलाओं को अकेले यात्रा करने की इजाजत नहीं है और इसमें कोई अस्पष्टता नहीं है। अब जिन लोगों की यह सिफारिश है, उन्हें स्पष्ट करना चाहिए कि क्या शरीयत का यह नियम अब हज जैसे महत्वपूर्ण धार्मिकदायित्वों के लिए मान्य नहीं है?”
उन्होंने कहा कि सऊदी अरब सरकार को यह फैसला करना होगा कि क्या वह इस प्रस्ताव को स्वीकार करती है। समिति की अन्य सिफारिशों में खादिमुल हज्जाज (200 हजयात्रियों के समूह की देखभाल के लिए जिम्मेदार व्यक्ति) की व्यवस्था की समीक्षा करने की बात भी शामिल है। मंत्रालय ने अभी तय नहीं किया है कि वह किन सिफारिशों को स्वीकार करने जा रहा है।