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शरद पूर्णिमा आज, चांद की रोशनी में रखी खीर का करें सेवन तो मिलेगा पोषण

नई दिल्ली। आज शरद पूर्णिमा है। दशहरे से शरद पूर्णिमा तक चंद्रमा की चांदनी विशेष गुणकारी, श्रेष्ठ किरणों वाली और औषधि से भरपूर होती है।

शरद पूर्णिमा को कोजागिरी पूर्णिमा व्रत और रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि लंकाधिपति रावण शरद पूर्णिमा की रात किरणों को दर्पण के जरिए अपनी नाभि से पीता था। कहा जाता है कि इस प्रक्रिया से उसे पुनर्योवन शक्ति प्राप्त होती थी।

इस दिन व्रत रखकर विधिविधान से लक्ष्मीनारायण का पूजा की जाती है। खीर बनाकर उसे रात में आकाश के नीचे इस प्रकार रख दें ताकि चंद्रमा की चांदनी का प्रकाश खीर पर पड़ता रहे।

दूसरे दिन सुबह स्नान करके खीर का भोग अपने घर के मंदिर में लगाएं। कम से कम 3 ब्राह्मणों को खीर प्रसाद के रूप में दें और फिर अपने परिवार में खीर बांटें। इस प्रसाद को ग्रहण करने से अनेक प्रकार के रोगों से छुटकारा मिलता है। इसका अध्यात्मिक कारण के साथ ही एक वैज्ञानिक पक्ष भी है।

अध्ययन के अनुसार, दूध में लैक्टिक एसिड और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है।

चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और भी आसान हो जाती है। इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात में खीर को खुले आसमान के नीचे रखने और अगले दिन खाने का विधान तय किया था। यह परम्‍परा विज्ञान पर आधारित है।

बता दें कि हर किसी को कम से कम 30 मिनट तक शरद पूर्णिमा की रात में चंद्रमा के सामने रहने की कोशिश करनी चाहिए। रात 10 से 12 बजे तक का समय इसके लिए बहुत उपयोगी बताया गया है। शरद पूर्णिमा की रात दमा रोगियों के लिए वरदान बनकर आती है।

इस रात मे औषधि को खीर में मिलाकर उसे चांदनी रात में रखकर सुबह 4 बजे खाया जाता है। रोगी को रात में जगना होता है और औषधि खाने के बाद 2-3 किमी पैदल चलना फायदेमंद रहता है।

आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए दशहरे से शरद पूर्णिमा तक हर रोज रात में 15 से 20 मिनट तक चंद्रमा को देखकर त्राटक (टकटकी लगाकर देखना) करें। शरद पूर्णिमा अस्थमा के लिए वरदान की रात होती है। रात को सोना नहीं चाहिए। रातभर रखी खीर का सेवन करने से दमा खत्म होता है।

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