नई दिल्ली, 27 सितम्बर (आईएएनएस)| अपोलो हॉस्पिटल्स ने बुधवार को ‘हेल्दी हार्ट’ प्रोग्राम की शुरुआत की। इसके तहत हृदय रोगों के जोखिम का सामना कर रहे लोगों और हृदय संबंधित रोगों से ग्रस्त मरीजों की मदद की जाएगी। हेल्दी हार्ट फीस-आधारित, वार्षिक, पर्सनलाइज्ड हार्ट डिजीज रिवर्सल प्रोग्राम है। इसमें 14 महत्वपूर्ण स्वास्थ्य मानक शामिल हैं। यह प्रोग्राम भारत में अपोलो हॉस्पिटल्स के 60 केंद्रों पर लागू होगा। विश्व हृदय दिवस (29 सितंबर) के मौके पर इस प्रोग्राम की पेशकश की गई है। इसके तहत हृदय को स्वस्थ बनाए रखने के लिए निरंतर डॉक्टर का परामर्श, साल में एक बार चार कॉर्डियोलॉजिस्ट-फिजिशियन की सलाह, डाइट एवं लाइफस्टाइल काउंसिलिंग (योग, माइक्रो न्यूट्रिएंट्स और मेडिटेशन) तथा पूरे उपचार के दौरान एक कस्टमर रिलेशन मैनेजमेंट आधारभूत संरचना द्वारा निरंतर मॉनिटरिंग की पेशकश की जाएगी।
प्रोग्राम में नामांकन कराने वाले लोगों को किसी अन्य प्रकार की सेवा (जिसकी जरूरत हो सकती है) में 15 प्रतिशत की छूट का लाभ मिलेगा। अपोलो हॉस्पिटल्स में एंजियोप्लास्टी अथवा बाइपास सर्जरी कराने वाले लोग खुद ब खुद एक साल के लिए इस प्रोग्राम से नि:शुल्क जुड़ जाएंगे।
अपोलो हॉस्पिटल्स के चेयरमैन डॉ प्रताप सी. रेड्डी ने कहा, अपोलो हॉस्पिटल्स में हृदय संबंधित रोगों के जितने भी मामले आते हैं, उनमें लगभग 20 फीसदी मरीजों की उम्र 25-35 वर्ष के बीच होती है। इन आंकड़ों को देखते हुए इस बात की गारंटी लेना मुश्किल है कि भविष्य में युवा भारत का हृदय सेहतमंद बना रहेगा। इस पहल के माध्यम से अपोलो हॉस्पिटल्स यह सुनिश्चित करना चाहता है कि भारतीयों को सर्वश्रेष्ठ परामर्श एवं उपचार प्राप्त हो। हम एक स्वस्थ हृदय वाले एक सेहतमंद भारत का निर्माण करना चाहते हैं।
अपोलो हॉस्पिटल्स की ज्वाइंट मैनेजिंग डायरेक्टर संगीता रेड्डी ने कहा, इस प्रोग्राम को मरीजों एवं साथ ही हृदय रोगों के जोखिमों का सामना कर रहे लोगों को समय से काफी पूर्व इसके बारे में जागरूक करने के लिये विकसित किया गया है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि उन्हें समग्र देखभाल मिले और इस तरह वे हार्ट अटैक की आशंकाओं से बच सकते हैं।
डब्ल्यूएचओ और वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम का अनुमान है कि वर्ष 2030 तक नॉन-कम्युनिकेबल डिजीजेज (एनसीडी) एक महामारी बन जाएगी। एनसीडी- मधुमेह, कैंसर, हृदय रोगों और संक्रमणों के कारण विकासशील और अविकसित देशों को खरबों डॉलर खर्च करना होगा। भारत में इन रोगों की संख्या काफी ज्यादा है और ऐसे में इसे काफी बोझ वहन करना पड़ेगा। भारत में हार्ट फेल्योर के 4-5 लाख मामले पाए जाते हैं।