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पारंपरिकता को बरकरार रखे हुए दिल्ली की सबसे पुरानी दुर्गा पूजा

नई दिल्ली, 25 सितम्बर (आईएएनएस)| कोलकाता भले ही दुर्गा पूजा समारोहों के आर्कषण का केंद्र हो, लेकिन राष्ट्रीय राजधानी भी इससे कुछ कम नहीं है। दिल्ली में भी पूजा समारोह के लिए 350 से ज्यादा पंडाल लगाए जाते है। इतना ही नहीं, दिल्ली की सबसे पुरानी पूजा, कश्मीरी गेट दुर्गा पूजा पिछले 108 वर्षों से इस वार्षिक अनुष्ठान को जारी रखे हुए है।

इसका विषय हमेशा से पारंपरिक रहा है। सर्वोत्कृष्ट ‘सबेकी एक-चाला-ठाकुर’ (पारंपरिक एक मंच) देवी दुर्गा की परंपरा को बनाए रखने से लेकर ‘विसर्जन’ के लिए देवी की मूर्ति को एक बैलगाड़ी में ले जाने तक, यह पूजा अन्य सभी से अलग दिखाई देती है।

दिल्ली दुर्गा पूजा समिति के एक सदस्य समरेंद्र बोस ने आईएएनएस को बताया, बैलगाड़ी में विसर्जन का आयोजन सिर्फ हमारे द्वारा ही किया जाता है। राष्ट्रीय राजधानी में कोई अन्य पंडल ऐसे जुलूस का आयोजन नहीं करता।

उन्होंने कहा, और भोग! हमारे महोत्सव का यह भी एक आकर्षण है। हर साल दोपहर में हम लगभग पांच से छह हजार लोगों को खाना खिलाते हैं और अष्टमी के दिन यह संख्या बढ़कर 10 हजार से अधिक हो जाती है। हमारे कंधों पर यह एक बड़ी जिम्मेदारी है और हम यह सुनिश्चित करते हैं कि पूजा के दौरान सब कुछ ठीक से हो।

इस पूजा से जुड़ा एक इतिहास है। एक अज्ञात रेलवे कर्मचारी के प्रयासों के कारण, 1909 में नई सड़क के पास रोशनपुरा काली मंदिर में पहली पूजा का आयोजन किया गया था। उसके बाद 1913 से 1946 तक, फतेहपुरी मस्जिद के निकट एक धर्मशाला (सामुदायिक हॉल) में पूजा का आयोजन किया जाता रहा। बाद में इसे सिविल लाइंस के निकट अलीपुर रोड पर बंगाली सीनियर सेकेंडरी स्कूल में स्थानांतरित कर दिया गया, लेकिन इसका नाम कभी नहीं बदला गया।

बोस ने कहा, शुरुआती सालों में, मूर्ति बनारस से लाई जाती थी, लेकिन 1926 से शहर में ही मूर्ति बनाने की शुरुआत हुई और अब यह स्कूल के परिसर में ही बनाई जाती है।

पूजा के पांच दिनों तक पंडाल के भीतर एक छोटे बंगाल जैसा माहौल होता है। पारंपरिक परिधानों में सजे लोगों से लेकर सांस्कृतिक कार्यक्रमों और बंगाल का पसंदीदा व्यंजन – बिरयानी तक, यह सब एक खास आकर्षण का केंद्र होता है।

बोस ने कहा, हम सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं, जिनमें केवल स्थानीय निवासी ही भाग लेते हैं। हम कलाकारों को आमंत्रित नहीं करते (जैसा अधिकांश पंडल में होता है)। इसके अलावा, हम यह सुनिश्चित करते हैं कि कम से कम इन पांच दिनों के दौरान सभी समारोह बंगाली में आयोजित किए जाएं।

इस दुर्गा पूजा के आकर्षण से उस समय की तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी भी अछूती नहीं रह पाई थीं, जिन्होंने 1969 में पंडाल का दौरा किया था। ऐसा माना जाता है कि 1935 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस भी इस उत्सव में शामिल हुए थे।

बोस ने कहा, पुजारियों और ढोलकियों को कोलकाता से बुलाया जाता है। इसके साथ ही हम सुनिश्चित करते हैं कि भोग की कमी न रहें। आखिरकार यह कश्मीरी गेट दुर्गा पूजा का एक मुख्य आर्कषण है।

इसलिए, इस बार कश्मीरी गेट पूजा देखने जरूर जाएं।

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