कश्मीर में हिंसक घटनाओं में आई कमी
श्रीनगर, 23 सितम्बर (आईएएनएस)| पिछले वर्ष के मुकाबले इस वर्ष कश्मीर की सड़कों पर होने वाली हिंसक घटनाओं की तीव्रता और व्यापकता में काफी कमी आई है।
पिछले वर्ष 8 जुलाई को सुरक्षा बलों के साथ हुई मुठभेड़ में हिजबुल कमांडर बुरहान वानी की मौत के बाद घाटी में हिंसा और तनाव बढ़ गया था।
आधिकारिक आकड़ों के मुताबिक घाटी में फैली अशांति के कारण 96 नागरिक और 2 पुलिसकर्मी मारे गए और नागरिकों एवं सुरक्षा कर्मियों सहित करीब 2,000 लोग घायल हो गए।
हालांकि, अलगाववादियों हिंसा में 155 नागरिक मारे गए और 15,000 अन्य घायल हुए।
हालांकि, कोई भी इस तथ्य को नकार नहीं सकता कि भीड़ पर काबू पाने के लिए सुरक्षा बलों द्वारा इस्तमाल किए गए पेलेट गन के कारण लगभग 200 नागरिकों की ष्टि को स्थायी या आंशिक नुकसान पहुंचा है।
पिछले साल जुलाई के बाद व्याप्त हुई अशांति के दौरान राज्य सरकार की शासन व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई थी, जिसके कारण सुरक्षा बल दक्षिण कश्मीर जिलों विशेष रूप से अनंतनाग, कुलगाम, पुलवामा और शोपियां में कोई आतंकवाद रोधी आपरेशन नहीं चला पा रहे थे।
इससे आतंकवादियों की निडर होकर कहीं भी आने जाने की हिम्मत बढ़ गई और दक्षिण कश्मीर के इलाकों में दर्जनों स्थनीय युवा आतंकवादी संगठनों से जुड़ गए।
सुरक्षा के मामले में इस अशांति का सबसे गंभीर नतीजा आतंकवाद रोधी अभियानों के दौरान जन विरोध के रूप में देखने को मिला।
नाम न जाहिर करने की शर्त पर एक वरिष्ठ खुफिया अधिकारी ने कहा, इस वर्ष की शुरुआत में नागरिकों की जान की सुरक्षा के मद्देनजर दो दर्जन से अधिक आतंकवाद रोधी अभियानों को रोकना पड़ा।
अधिकारी ने बताया कि जमीनी स्तर पर राज्य प्रशासन और सुरक्षा बलों की पकड़ पुन: स्थापित कर ली गई है। हालांकि अभी भी आतंकवाद रोधी अभियानों के दौरान सार्वजनिक विरोध प्रदर्शन होते हैं, लेकिन इन विरोध प्रदर्शनों की तीव्रता में कमी आई है।
अधिकारियों का मानना है कि कश्मीर में आतंकवाद के वित्तपोषण के कथित लाभार्थियों के विरुद्ध राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा चलाए गए अभियान से घाटी में पत्थरबाजी और अन्य भारत विरोधों प्रदर्शनों पर काफी प्रभाव पड़ा है।
एक अन्य खुफिया अधिकारी ने कहा, इसमें कोई संदेह नहीं है पथराव की इन घटनाओं के पीछे छिपी हुई ताकतों का हाथ है, जो ऐसी हिंसा को समर्थन देती हैं और इनके लिए उकसाती हैं।
उन्होंने कहा, स्थानीय युवाओं के आतंकवादियों के साथ मिले होने की वजह से भी आतंकवाद रोधी प्रदर्शनों को बल मिलता है।
उन्होंने आगे कहा, यह मान लेना भ्रामक होगा कि सभी प्रदर्शनों को वित्तपोषण द्वारा समर्थन दिया जाता है। यही कारण है कि बेरोजगारों को गरिमा और आत्मविश्वास के साथ जीवन जीने के लिए रोजगार के अवसर देने के साथ ही हमें स्थानीय युवाओं को खेल जैसी स्वस्थ गतिविधियों और सामाजिक संबंधों में शामिल करने के प्रयास करने की आवश्यकता है।
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया, जमीनी स्थिति, खासतौर से दक्षिण कश्मीर के इलाकों में 1990 के शुरुआती वर्षो जैसी भयावह न हो जाए इसलिए सेना के परामर्श से केंद्रीय गृह मंत्रालय के आदेश के बाद घाटी में ‘ऑपरेशन ऑल आउट’ अभियान चलाया गया।
उन्होंने कहा, इस वर्ष जनवरी से अब तक कुछ शीर्ष कमांडरों सहित 147 आतंकवादी मारे जा चुके हैं।
उन्होंने कहा, हम आतंकवादियों को घनी आबादी वाले इलाकों से ऊपरी इलाकों में खदेड़ने में कामयाब रहे हैं और खुफिया तंत्र को इतना मजबूत किया गया है कि आतंकवादियों के गांवों और शहरों में घुसते ही उनका पता लगा लिया जाता है।
हालांकि वह सुरक्षा स्थिति में इस सुधार का श्रेय कई कारकों को देते हैं।
अधिकारी ने आगे कहा, यह एनआईए के छापों, सुरक्षा बलों के अभियान एवं बच्चों को लेकर अभिभावकों की चिंता इन सभी का समग्र प्रभाव है।
एनआईए के छापों का अलगाववादियों के मनोबल पर असर पड़ा है या नहीं, यह हमेशा चर्चा का विषय रह सकता है। लेकिन तथ्य यही है कि इन छापों के बाद घाटी की सुरक्षा स्थिति में निश्चित रूप से सुधार हुआ है।
विडंबना यह है कि घाटी में सुरक्षा की स्थिति में सुधार होने के बावजूद पर्यटकों का प्रवाह इस वर्ष निराशाजनक रहा है।
राज्य के पर्यटन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, पिछले साल जुलाई तक राज्य में पर्यटन की स्थिति बेहतर थी। अशांति के बावजूद जुलाई 2016 के अंत तक राज्य में 0.11 करोड़ पर्यटक आए थे। सितंबर समाप्त होने वाला है, लेकिन इस वर्ष अब तक पर्यटकों की संख्या पिछले वर्ष के मुकाबले 50 प्रतिशत से भी कम है।
राज्य सरकार ने कश्मीर की छवि खराब करने के लिए घाटी से बाहर की मीडिया को दोषी ठहराया है।
पर्यटन विभाग के अधिकारी ने कहा, कश्मीर आज देश के किसी भी अन्य पर्यटन स्थल जितना ही सुरक्षित है। हम इन सर्दियों में और अगले वर्ष बड़ी संख्या में पर्यटकों के आने की उम्मीद कर रहे हैं।