मिथिला के गांवों से निकलकर अब ‘पाग’ की चर्चा देश-दुनिया तक
पटना, 22 सितम्बर (आईएएनएस)। मिथिलालोक फाउंडेशन का ‘पाग बचाऊ अभियान’ अब जोर पकड़ने लगा है। इस अभियान से अब तक एक करोड़ से ज्यादा लोग जुड़ गए हैं, बल्कि इसकी चर्चा अब मिथिला के गांवों से निकलकर देश और दुनिया में होने लगी है।
टोपी और पगड़ी का मिश्रित रूप ‘पाग’ मिथिला की सांस्कृतिक पहचान रही है लेकिन धीरे-धीरे इसका अस्तित्व समाप्त होने लगा था। मिथिला की इस सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने के लिए मिथिलालोक फाउंडेशन ने एक अभियान की पहल की, जिसे देश और दुनिया में बसे मिथिला के लोगों ने ही नहीं बल्कि अन्य लोगों की भी सराहना मिली। यही कारण है कि पाग की चर्चा अब देश-दुनिया में होने लगी है।
इस सांस्कृतिक अभियान के साथ न केवल लोग जुड़ रहे हैं बल्कि कई संगठनों द्वारा मिथिलालोक फाउंडेशन के चेयरमैन डॉ़ बीरबल झा को ‘पाग पुरूष’ के रूप में सम्मानित भी किया जा रहा है।
मैथिली संस्था ‘मिथिला दर्पण’ द्वारा मुंबई के डी. जी. खेतान इंटरनेशनल ऑडिटोरियम में 16 सितंबर को एक भव्य कार्यक्रम में मिथिलालोक फाउंडेशन के चेयरमैन डॉ. बीरबल झा को ‘पाग पुरुष’ उपाधि से सम्मानित किया गया था।
संस्था के अनुसार, डॉ. झा मिथिला की संस्कृति को देश और विदेशों में पहचान दिलाने के लिए संघर्षरत रहे हैं, इसलिए उन्हें यह सम्मान दिया गया है।
इधर, नई दिल्ली में दुर्गा पूजा समिति राणा जी एनक्लेव ने भी झा को ‘पाग संस्कृति सम्मान’ देने की घोषणा की है। इस समिति का कहना है, डॉ़ झा ने मिथिला के पाग को संजीवनी देकर जीवित करने का काम किया है, उनके सफल प्रयास के कारण ही भारत सरकार ने पाग पर डाक टिकट जारी किया है। पाग डाक टिकट से मिथिला के सिरमौर्य को राष्ट्रीय मान्यता मिली है।
इधर, मिथिला क्षेत्र का लोकसभा, बिहार विधानसभा व विधान परिषद में नेतृत्व करने वाले नेताओं ने भी विभिन्न मौकों पर पाग पहनकर पाग की महत्ता को लोगों तक पहुंचाया।
बिहार विधान पार्षद रामलषण राम रमण आईएएनएस से कहते हैं कि ‘पाग’ पहनना मिथिला की पुरानी परंपरा है। उन्होंने ‘पाग बचाउ अभियान’ की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह एक सफल अभियान है और इससे सभी वर्ग के लोग जुड़ रहे हैं।
एक लोकप्रिय दलित नेता की पहचान रखने वाले रमण ने कहा, पाग मिथिला की सांस्कृतिक पहचान है और महाकवि विद्यापति की तस्वीरों में उनके सिर पर विराजित इस पाग को देखकर ही लोग समझ जाते हैं कि यह मिथिला से संबंधित हैं। सिर पर पाग पहनना मिथिला की सदियों पुरानी परंपरा है।
मिथिलालोक फाउंडेशन के चेयरमैन डॉ़ बीरबल झा आईएएनएस से कहा कि सम्मान पाने की खुशी सभी को होती है लेकिन इससे दायित्व और भी बढ़ जाता है। उन्होंने इन सम्मानों को सभी मिथिला प्रेमियों को समर्पित करते हुए कहा कि किसी भी व्यक्ति को अपनी संस्कृति को छोड़ना सबसे बड़ी भूल है।
उन्होंने स्पष्ट कहा कि विकास का मतलब यह कतई नहीं है कि संस्कृति को भूल जाना। उन्होंने कहा कि इसी उद्देश्य को लेकर इस अभियान की शुरूआत की गई थी और आज देश-विदेश के लोग इससे जुड़ रहे हैं।
पटना विश्वविद्यालय के प्राध्यापक एऩ क़े झा बताते हैं कि बिहार उड़ीसा रिसर्च सोसाइटी के जरनल में मिथिला के सभी क्षेत्रों की प्राचीन परंपरा का उल्लेख मिलता है जिसमें मिथिला के पाग का भी उल्लेख किया गया है, लेकिन इसके प्रादुर्भाव के बारे में स्पष्ट उल्लेख नहीं किया गया है।
तेरहवीं शताब्दी के उदभट्ट गद्यकार ज्योतिरिश्वर ठाकुर के पुस्तक वर्णरत्नाकर में पाग की चर्चा की गई है, इससे पता चलता है कि मिथिला में पाग की परंपरा काफी प्राचीन है और पाग एक मर्यादा का द्योतक परिधान है।
इसकी संरचना ऐसी थी कि इसे सिर पर धारण करने के बाद हिलने डुलने पर यह गिर जाता है इसलिए इसके स्वरूप में आज बदलाव किया गया है।
बहरहाल, इतना तय है कि मिथिला का पाग वहां के संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा है और यह वहां की परंपरा के अनुसार पवित्रता और सम्मान का सूचक भी है।