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पीरियड्स में महिलाएं करती हैं घास, पुआल, राख और लकड़ी के टुकड़ों का इस्‍तेमाल  

नई दिल्ली। मासिक धर्म या पीरियड्स जिस पर लोग खुलकर बात करने से कतराते हैं वो महिलाओं के लिए बेहद कष्टदायक होते हैं। शहरों में तो जागरूकता ने जोर पकड़ा है, लेकिन आज भी कई गांव ऐसे हैं, जहां पीरियड्स के दौरान महिलाओं को अछूत समझा जाता है। उन्हें घर के किसी कमरे या कोने में कैदियों या अछूत की तरह उन तीन चार दिनों तक रहना पड़ा है।

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मासिक धर्म से निपटने के लिए ऐसी महिलाओं के पास सैनेट्री पैड या कपड़ा नहीं बल्कि वे घास, पुआल, राख और बालू जैसी चीजों का भी इस्तेमाल करती हैं। 15 सितंबर को प्रसारि‍त हुए सोनी टीवी के कार्यक्रम कौन बनेगा करोड़पति टीवी शो के दौरान गूंज फाउंडेशन के संस्थापक अंशु गुप्ता ने भी इस बारे में कई ऐसी बातें बताई, जिसके बारे में सुनने पर अजीब से लगता है।
बीते समय में दुनिया की कई जगहों पर महिलाएं माहवारी रोकने के लिए लकड़ी के टुकड़ों से लेकर जानवर की खाल तक का इस्तेमाल किया करती थीं। आपको बता दें कि मिस्र में महिलाएं पीरियड के फ्लो को रोकने के लिए ‘पेपरिस’ का इस्तेमाल करती थीं। ‘पेपरिस’ एक प्रकार का मोटा कागज होता था जिसपर उस दौरान लिखने का काम किया जाता था। महिलाएं उसे भिगोकर नैपकीन की तरह इस्तेमाल करती थीं।

अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में महिलाएं मासिक धर्म के दौरान रक्त स्त्राव रोकने के लिए घास का इस्तेमाल करती थीं। भले ही ये घास महिलाओं को नुकसान पहुंचाता था, लेकिन उनके पास इसके अलावा कोई दूसरा ऑप्‍शन भी नहीं था। भारत में भी कई गांवों में महिलाएं धान के सूखे पुआल का इस्तेमाल पीरियड के दौरान करती थीं।

पुराने समय में ठंडी जलवायु वाले क्षेत्र में रहने वाली महिलाएं जानवरों की खालों का इस्तेमाल सैनेट्री नैपकिन की तरह करती थीं। यह खाल खून के धब्‍बों से बचाने में मदद करती थीं।

सैनेट्री पैड के आने से पहले तक महिलाएं पुराने कपड़ों का इस्तेमाल बतौर सैनेटेरी पैड करती थी। अभी भारत के कई गांवों में पुराने कपड़ों का इस्तेमाल महिलाएं पीरियड्स के दौरान करती हैं। एक बार ये कपड़े गंदे हो जाएं तो इन्हें धोकर दोबारा इस्तेमाल में लाया जाता है। ये उनके स्वास्थ्य के लिए बेहद
खतरनाक है।

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