मप्र में नेताओं की नर्मदा यात्राएं आखिर किसके लिए!
भोपाल, 10 सितंबर (आईएएनएस)| मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बाद अब कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह नर्मदा यात्रा पर निकलने की तैयारी में है। इन यात्राओं से नर्मदा नदी का कितना भला होगा ये तो कोई नहीं जानता, मगर नेताओं व राजनीतिक दलों को फायदे की आस जरूर है। इसके बावजूद सवाल उठते हैं कि आखिर जिनके कार्यकालों में नर्मदा का दोहन और शोषण हुआ, वहीं नर्मदा की यात्रा क्यों कर रहे हैं।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 11 दिसंबर, 2016 को उद्गम स्थल अमरकंटक से नमामि देवी नर्मदे सेवा यात्रा शुरू की थी, जो 15 मई को अमरकंटक पहुंचकर खत्म हुई थ्ीा। इस यात्रा का मकसद नदी को अविरल, प्रवाहमान और प्रदूषण मुक्त करना था। इस यात्रा का नदी को कितना लाभ मिला, इसका ब्यौरा किसी के पास नहीं है। हां, इस यात्रा के जरिए मुख्यमंत्री चौहान की ब्रांडिंग में जरूर कोई कोर कसर नहीं रही। करोड़ों रुपये के विज्ञापन अखबारों में छपे, चैनलों पर दिखाए गए।
चौहान के बाद पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह जिनके हाथ में इस प्रदेश की 10 साल बागडोर रही है, अब वे नर्मदा परिक्रमा यात्रा पर 30 सितंबर से निकलने वाले है। उन्होंने इसे गैर राजनीतिक यात्रा करार दिया है। सवाल है कि एक राजनीतिक व्यक्ति के लिए गैर राजनीतिक यात्रा करना कैसे संभव होगा और वह नेता जो 10 साल तक राज्य का मुख्यमंत्री रहा हो। लिहाजा उनकी यह गैर राजनीतिक यात्रा कैसी होती है, क्या स्वरूप होगा, इसका खुलासा नहीं हुआ है। यह यात्रा लगभग छह माह की होगी।
इन नर्मदा यात्राओं को राजनीतिक दलों से जुड़े लोग सिर्फ राजनीतिक लाभ पाने की कोशिश मान रहे हैं। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव बादल सरोज का कहना है कि शिवराज ने अपनी यात्रा पर लगभग दो हजार करोड़ रुपये खर्च किए। इससे आधी राशि भी नर्मदा घाटी क्षेत्र या डूब प्रभावितों पर खर्च कर दी जाती तो हजारों परिवारों का जीवन संवर जाता। जनता का पैसा खर्च करके यात्रा करना शर्मनाक है। वही दिग्विजय सिंह भी पूरी तरह राजनीतिक लाभ के लिए यात्रा पर निकल रहे हैं, नर्मदा के हाल की किसी को चिंता नहीं है।
वहीं भाजपा की प्रदेश इकाई के मुख्य प्रवक्ता दीपक विजयवर्गीय का कहना है, दिग्विजय सिंह जनता और कांग्रेस से खारिज कर दिए गए हैं। लिहाजा उन्हें सुर्खियों में बने रहने के लिए कुछ तो करना है, वास्तव में उनकी जीवनशैली और भाषा ऐसी नहीं है कि वे नर्मदा नदी की परिक्रमा के लायक हों।
दिग्विजय सिंह की नर्मदा यात्रा को लेकर कांग्रेस के कई नेताओं से संपर्क किया गया, मगर कोई भी अपनी बात कहने को तैयार नहीं हुआ। हर किसी का यही कहना था कि पार्टी ने यह यात्रा तय नहीं की है, आगे कुछ होगा तो देखा जाएगा।
राजनीति के जानकारों की मानें तो दिग्विजय की यात्रा के दौरान शिवराज सरकार और भाजपा संगठन को लगातार कांग्रेस पर हमले का मौका आसानी से मिलता रहेगा, क्योंकि सत्ता में आने के 14 वर्ष बाद भी भाजपा कांग्रेस काल और खासकर दिग्विजय सिंह के कार्यकाल की सड़क, बिजली के बुरे हाल की याद दिलाकर जनता के मन में डर पैदा करती रहती है।
पिछले दिनों ही भोपाल की सड़क खराब होने पर लोक निर्माण मंत्री रामपाल सिंह ने कहा भी था कि उन्होंने गड्ढे वाली सड़कें इसलिए छोड़ी हैं ताकि लोगों को दिग्विजय सिंह के शासनकाल की याद आती रहे।
वरिष्ठ पत्रकार साजी थॉमस का कहना है, राज्य में विधानसभा चुनाव के लिए लगभग एक साल बचा है, भाजपा और कांग्रेस अपने-अपने तरह से मतदाताओं को लुभाने के प्रयास में है। जहां तक नर्मदा यात्राओं का सवाल है तो एक बात साफ है कि नर्मदा जिन क्षेत्रों से गुजरती है, उसका अधिकांश हिस्सा आदिवासी बाहुल्य है। ये लोग नर्मदा को मां मानते है, उनकी भावनाएं इससे जुड़ी हुई है। लिहाजा दोनों दलों के नेता अपने को एक-दूसरे से बड़ा नर्मदा भक्त बताकर भोले-भाले आदिवासियों को लुभाना चाहते हैं। जबकि हकीकत में दोनों नेताओं के काल में नर्मदा का क्या हाल हुआ है, यह किसी से छुपा नहीं है।
भाजपा सत्ता में है और शिवराज की नर्मदा यात्रा को हर स्तर पर सफल बनाने के प्रयास हुए। जनता को भी नौकरशाही पर दबाव बनाकर जोड़ा गया। उसके पास जन अभियान परिषद जैसा संगठन था, जिसके कार्यकर्ता गांव-गांव में है, मगर दिग्विजय सिंह के साथ ऐसा कुछ नहीं है। पार्टी कार्यकर्ताओं का जरूर उन्हें कुछ साथ मिल सकता है। परंतु मीडिया की सुर्खियां बनने में दिग्विजय माहिर है। अब देखना यही होगा कि नर्मदा यात्रा किसके उद्धार का कारण बनती है।