शुरू हुआ अशिवन मास में चलने वाला 16 दिन का महालय श्राद्ध, जानें कैसे होगा दोषों का निवारण
देहरादून। श्राद्ध कर्म का वैज्ञानिक आधार पं. नटवर बी. लाल जोशी वदिक परंपरानुसार पुत्र का पुत्रत्व तभी सार्थक होता है, जब वह अपने माता-पिता की सेवा करे व उनके मरणोपरांत उनकी मृत्यु तिथि व महालय (पितृपक्ष) में विधिवत श्राद्ध करे।
श्रद्धापूर्वक किये जाने वाले सभी कार्य जो पितरों के लिए किये जाते है, श्राद्ध कहलाते है। श्राद्ध को ही पितरों का यज्ञ कहते है। मनुष्य मात्र के लिए शास्त्रों में तीन ऋण विशेष बताये गये है।
जिनमें से पहले देव ऋण , ऋषि ऋण फिर पितृ ऋण है।
प्रत्येक मानव पर जन्म से ही तीन ऋण होते हैं – देव, ऋषि व पितृ। श्राद्ध की मूल संकल्पना वैदिक दर्शन के कर्मवाद व पुनर्जन्मवाद पर आधारित है।
मनु व याज्ञवल्क्य ऋषियों ने धर्मशास्त्र में नित्य व नैमित्तिक श्राद्धों की अनिवार्यता को रेखांकित करते हुए कहा कि श्राद्ध करने से कर्ता पितृ ऋण से मुक्त हो जाता है तथा पितर संतुष्ट रहते हैं जिससे श्राद्धकर्ता व उसके परिवार का कल्याण होता है।
श्राद्ध महिमा में कहा गया है – आयुः पूजां धनं विद्यां स्वर्ग मोक्ष सुखानि च। प्रयच्छति तथा राज्यं पितरः श्राद्ध तर्पिता।। जो लोग अपने पितरों का श्राद्ध श्रद्धापूर्वक करते हैं, उनके पितर संतुष्ट होकर उन्हें आयु, संतान, धन, स्वर्ग, राज्य मोक्ष व अन्य सौभाग्य प्रदान करते हैं।
बता दें कि, प्रतिदिन पितरों के निमित्त ब्राह्मणों को भोजन कराया जाएगा और गंगा तट पर श्राद्ध तर्पण होंगे। श्राद्धों का समापन पितृ अमावस्या के दिन 20 सितंबर को होगा।
श्राद्ध पक्ष में दोपहर का समय लिया जाता है। पितृ पक्ष का समापन 20 सितंबर को करना चाहिए। इसी दिन नाना- नानी का श्राद्ध भी किया जा सकता । डा. मिश्रपुरी ने बताया कि इस बार तिथियों में विवाद है, फिर भी सभी 16 श्राद्ध पूरे होंगे।
पितृदोष निवारण हेतु उपाय-