बिहार में बाढ़ पीड़ितों के लिए देवदूत बनीं सरपंच रितू,जहां अफसर न गए वहां नाव से गईं
सीतामढ़ी। बिहार में आई बाढ़ के बाद पीड़ितों को सुविधा मुहैया कराने को लेकर एक ओर जहां सभी राजनीतिक दल राजनीतिक बयानबाजी कर रहे हैं, वहीं सीतामढ़ी जिले की सिंहवाहिनी पंचायत की महिला मुखिया इस पंचायत के लोगों की जिंदगी को एकबार फिर से पटरी पर लाने की जद्दोजहद में
जुटी हैं।
बिहार में सीतामढ़ी जिले की सिंहवाहिनी पंचायत में अधवारा और मरहा नदी में आए उफान से जब यहां के लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया, तब यहां के लोगों के लिए किसी मसीहा की तरह अपनों के बीच से चुनी गईं मुखिया रितु जायसवाल सामने आ गईं।
रितू के पति आईएएस (अलायड) अधिकारी हैं और वर्तमान समय में दिल्ली में केंद्रीय सतर्कता आयोग में पदस्थापित हैं। बाढ़ का कहर थमने के बाद सिंहवाहिनी पंचायत के लोग अपने घरों को लौट रहे हैं। लेकिन जिंदगी जीने की जद्दोजहद बाकी है।
इन बाढ़ पीड़ितों के सामने यह सवाल है कि इन्हें अपने घर की रोटी कब नसीब होगी? बाढ़ ने इन लोगों के आशियाने ही नहीं छीने, बल्कि घर का तिनका-तिनका भी बहा ले गया।
मुखिया रितू जायसवाल चर्चा करते हुए व्यथित होकर कहती हैं, “विनाशकारी बाढ़ हम सिंहवाहिनी पंचायत के लोगों के जीवन में दुख, पीड़ा, हताशा छोड़ गई है।
हम लोग पिछले एक साल में काफी तेजी से बढ़े थे। यहां पक्की सड़कें आ गई थीं, बिजली से बल्ब जलने लगे थे, लेकिन शायद प्रकृति को यह मंजूर नहीं था। अधवारा और मरहा नदी में आई बाढ़ ने स्थिति को पहले से भी बदतर कर दिया है।
हालांकि रितू हिम्मत नहीं हारी हैं। वे आम लोगों से लेकर सरकार और जनप्रतिनिधियों से लगातार मदद की गुहार लगा रही हैं। उन्होंने बताया कि 16 हजार की आबादी वाली इस पंचायत में 50 घर तो पूरी तरह बह गए और सौ घरों को आंशिक क्षति पहुंची है। पंचायत के बड़ी सिंहवाहिनी, करहरवा और खुटहां गांव की स्थिति एकदम भयावह है।
रितू ने बताया कि बाढ़ किसी भी क्षेत्र के लिए एक त्रासदी है। बाढ़ के बाद किसी के पास कुछ नहीं बचता। कई बाढ़ पीड़ितों के पास अनाज को खरीदने के लिए भी पैसे नहीं होते।
ऐसे में एक जनप्रतिनिधि होने के नाते यह मेरा दायित्व ही नहीं कर्तव्य भी है कि इन्हें जीने के लिए सुविधा और खाने को अनाज मुहैया हो सके।
वह कहती हैं, “मैं पूरे राज्य के लिए तो बहुत कुछ नहीं कर सकती, लेकिन जिन्होंने मुझे मुखिया बनाया है, उनकी अच्छी जिंदगी और इस त्रासदी से उबरने के लिए उनके साथ तो हाथ बंटा ही सकती हूं।”
वैसे रितू के मुखिया बनने की कहानी भी कम रोचक नहीं है। अपनी चमक-दमक की जिंदगी छोड़कर रितू ने इस पंचायत के विकास की जिम्मेदारी उठाई है। रितु ने बताया कि 1996 में उनकी शादी 1995 बैच के आईएएस (अलायड) अरुण कुमार से हुई है।
उन्होंने बताया, “शादी के 15 साल तक जहां पति की पोस्टिंग होती थी, मैं उनके साथ रहती थी। एक बार मैंने पति से कहा कि शादी के इतने साल हो गए हैं। आज तक ससुराल नहीं गई हूं।
एक बार चलना चाहिए। मेरी बात सुन घर से सभी लोग नरकटिया गांव जाने को तैयार हो गए। गांव पहुंचने से कुछ दूर पहले ही कार कीचड़ में फंस गई। इसके बाद किसी तरह ससुराल पहुंचे।” इसके बाद ही रितू ने इस क्षेत्र की तस्वीर बदलने की ठान ली।
रितु ने बताया कि इसके बाद से वह यहीं रहने लगी। सबसे पहले उन्होंने गांव की लड़कियों को पढ़ाना शुरू किया। 2015 में नरकटिया गांव की 12 लड़कियों ने पहली बार मैट्रिक की परीक्षा पास की। 2016 में सिंहवाहिनी पंचायत से मुखिया पद के लिए रितु चुनाव लड़ीं।
इस चुनाव में वह जीत गईं। इसके बाद वह लगातार यहां के विकास को लेकर काम कर रही हैं। इस बाढ़ में जहां अधिकारी नहीं पहुंचे, वहां रितू नाव पर खुद गईं। रितू को इस साल का उच्च शिक्षित आदर्श युवा सरपंच, मुखिया पुरस्कार से भी नवाजा गया है।
इधर, रितू के इन कामों से ग्रामीण भी खुश हैं। सिंहवाहिनी के ही रहने वाले महेश्वर कहते हैं कि देश के किसी भी जनप्रतिनिघि के लिए रितू आदर्श हैं।