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मप्र में एक और ‘व्यापम घोटाला’ होने से बचा!

भोपाल, 30 अगस्त (आईएएनएस)| मध्य प्रदेश की पीठ पर व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) घोटाले का बदनुमा दाग अभी बना हुआ है और राज्य में एक और ‘व्यापमं घोटाले’ की तैयारी हो चुकी थी।

लेकिन व्हिसल ब्लोअर की याचिकाओं पर न्यायालयों ने काउंसलिंग निरस्त कर दी, और राज्य के मूल निवास प्रमाण पत्र की अनिवार्यता बनाए रखने के निर्देश दे दिए।

पहली बार केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने देशव्यापी चिकित्सा और दंत चिकित्सा महाविद्यालयों में दाखिले के लिए राष्ट्रीय पात्रता एवं प्रवेश परीक्षा (नीट) 2017 का आयोजन किया। इसका मकसद राज्य स्तर पर प्रवेश परीक्षा को बंद कर तमाम घपलों-घोटालों को रोकना था। इस परीक्षा में शर्त थी कि जो विद्यार्थी जिस राज्य का मूल निवास प्रमाण पत्र देगा, उसे उसी राज्य के महाविद्यालय में दाखिला मिलेगा।

सीबीएसई ने परीक्षा आयोजित कर प्रावीण्य सूची (मेरिट लिस्ट) जारी कर दी। उसके बाद काम सौंपा गया भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) को। एमसीआई ने एक राष्ट्रीय स्तर की और दूसरी राज्यवार सूची जारी की। क्योंकि 15 प्रतिशत राष्ट्रीय और 85 प्रतिशत राज्य का कोटा है। इससे एक बात साफ होती है कि राज्यों को अपने स्तर पर तमाम कागजातों का परीक्षण करने के साथ मूल निवास प्रमाण पत्र देखते हुए रैंकिंग के आधार पर कॉलेजों में दाखिला देना चाहिए।

जबलपुर उच्च न्यायालय के याचिकाकर्ता विनायक परिहार ने आईएएनएस को बताया, मध्य प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा विभाग ने परीक्षा परिणाम आने के बाद विद्यार्थियों को कागजात में हुई त्रुटि को सुधारने का मौका दिया। जिसका दूसरे राज्यों के छात्रों ने लाभ उठाया। ये वे छात्र थे, जिनकी अपने राज्य में रैंक काफी नीचे थी और उन्होंने एक दिन में मध्यप्रदेश के मूल निवासी का प्रमाण पत्र बनवाकर पेश कर दिया।

याचिकाकर्ता तरिशी वर्मा के पिता और अधिवक्ता सतीश वर्मा ने बताया कि उन्होंने जब चिकित्सा शिक्षा विभाग के पोर्टल पर जाकर देखा तो वह दंग रहे गए, क्योंकि कई विद्यार्थियों के बिहार, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ के मूल निवास प्रमाण पत्र होने के बावजूद मध्यप्रदेश के चिकित्सा महाविद्यालयों में दाखिला दे दिया गया। इसकी शिकायत उन्होंने तथ्यों के साथ प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) गौरी सिंह से की, मगर प्रमुख सचिव ने कानूनी सलाह लेने की बात कहकर कुछ नहीं किया।

वर्मा आगे कहते हैं, जब प्रमुख सचिव से कुछ नहीं किया तो मैं उच्च न्यायालय चला गया। न्यायमूर्ति आर. के. झा व न्यायमूर्ति नंदिता दुबे की युगलपीठ ने पिछले गुरुवार (24 अगस्त) को आदेश दिया कि शासकीय स्वशासी चिकित्सा एव दंत चिकित्सा महाविद्यालयों के पाठयक्रमों में प्रवेश नियम 2017 के अनुसार प्रदेश के मूल निवासी विद्यार्थियों को ही प्रवेश दिया जाए।

वर्मा ने कहा, सवाल उठता है कि यह फैसला जब राज्य के विद्यार्थियों के हित में था तो सरकार सर्वोच्च न्यायालय क्यों गई? सरकार किसे लाभ पहुंचाना चाहती थी। वहां भी उसे मुंह की खानी पड़ी है। अब सरकार और विभाग से जुड़े लोग दाखिला ले चुके दूसरे राज्यों के विद्यार्थियों को न्यायालय में याचिका लगाने को भड़का रहे हैं।

सूचना प्रौद्योगिकी के जानकार कहते हैं कि ऑनलाइन फार्म भरते समय एक भी स्थान रिक्त रह जाने पर प्रक्रिया पूरी नहीं होती, मगर चिकित्सा शिक्षा विभाग के पोर्टल पर परीक्षा परिणाम आने पर यह निर्देश जारी किए गए कि जिन विद्यार्थियों ने निवास स्थान या राज्य का ब्योरा न दिया हो, वे उसे भर सकते हैं। इसका अर्थ यह होता है कि इसे योजनाबद्घ तरीके से किया गया। पोर्टल को दो दिन के लिए खोला गया था। इसी का बाहरी राज्यों के विद्यार्थियों ने लाभ उठाया। बिहार, उत्तर प्रदेश में उनकी रैंक नीचे थी और मध्यप्रदेश में उपर हो गई।

सामाजिक संगठन विचार मध्य प्रदेश के अक्षय हुंका कहते हैं, मध्य प्रदेश में दूसरे राज्यों के विद्यार्थियों को मौका देने के पीछे एक बड़ी और गहरी साजिश है, जिसमें एक नहीं अनेक सरकारी अफसर और सरकार के लोग शामिल हैं। यह ऐसी साजिश है, जो राज्य की प्रतिभाओं को दबाना चाह रही है। यह पूरी तरह प्राकृतिक न्याय के खिलाफ है। व्हिसल ब्लोअर की पहल और न्यायालय के फैसले से राज्य में होने वाला एक और व्यापमं घोटाला रुक गया है।

विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने इसे व्यापमं से बड़ा घोटाला करने की कोशिश बताया, जिसमें राज्य की भाजपा सरकार शामिल है।

उच्च न्यायालय जबलपुर और फिर सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद चिकित्सा शिक्षा राज्य मंत्री शरद जैन (स्वतंत्र प्रभार) ने संवाददाताओं से कहा, अगर प्रवेश व काउंसिलिंग में कहीं कोई गड़बड़ी हुई है तो उस पर सरकार कार्रवाई करेगी।

मध्य प्रदेश वह राज्य है, जो व्यापमं घोटाले के कारण पहले से बदनाम है। यह ऐसा घोटाला था, जिसमें 2500 से ज्यादा लोगों पर मामले दर्ज हुए, 2100 से ज्यादा लोग जेल गए, सैकड़ों छात्रों के प्रवेश निरस्त हुए, 50 से ज्यादा लोगों की जानें गईं। इसमें राज्य के एक पूर्व मंत्री से लेकर आईपीएस अफसर, भाजपा के नेता तक को जेल जाना पड़ा। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पदाधिकारियों पर भी उंगली उठी। यह बात अलग है कि मामला एसटीएफ, एसआईटी से होता हुआ सीबीआई के पास है, मगर अधिकांश लोग जमानत पर जेल से बाहर हैं।

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