राष्ट्रीय

संविधान और विधान से बड़े क्यों बाबा?

अदालत के इस निर्णय के बाद अब दोनों राज्यों के पास सबसे बड़ा सवाल कानून व्यवस्था का खड़ा हो गया है। इस निर्णय से यह बात साफ हो चली है कि कोई कितना बड़ा क्यों न हो वह कानून और संविधान के अलावा न्याय व्यवस्था से अलग नहीं है। यह न्याय प्रणाली की बड़ी जीत है।

गुमनाम शिकायत पर जिस तरह सीबीआई अदालत ने काम किया है, वह लोकतांत्रिक व्यवस्था की जीत है, लेकिन सवाल कई हैं।

सबसे खास बात है कि क्या धर्म और आस्था की आड़ में संविधान और कानून बौना साबित हो गया है? राजनीति क्या संविधान और विधान का गलाघोंट रही है? धर्म, जाति, संप्रदाय पर सरकारों का लचीला रुख, कई सवाल खड़े करता है।

राष्ट्रीय मीडिया में डेरा सच्चा प्रमुख संत गुरमीत राम रहीम छाए हुए हैं। हरियाणा की पंचकूला स्थित सीबीआई अदालत की तरफ से शुक्रवार को 15 साल पुराने एक यौन शोषण मामले में फैसला आया, जिसके बाद हरियाणा और पंजाब में कानून-व्यवस्था का सवाल खड़ा हो गया है। हरियाणा के पंचकूला और दूसरी जगहों पर धारा 144 व कर्फ्यू लगा दिया गया। इसके बावजूद बाबा के समर्थक तीन दिन से पंचकूला पहुंच कर डेढ़ लाख से अधिक की संख्या में सड़कों पर अपना डेरा जमाए हैं।

हाईकोर्ट को कड़ी टिप्पणी करनी पड़ी। अदालत ने यहां तक कहा कि क्यों न राज्य के डीजीपी को हटा दिया जाए? राज्य में धारा 144 लागू होने के बाद इतनी संख्या में लोग कहां से पहुंच गए? देश में पहली बार ऐसा हुआ जब किसी भी अदालत के फैसला सुनाने के पहले सेना बुलाई गई हो और ड्रोन, हेलीकॉप्टर के अलावा कमांडो तैनात किए गए हों।

एक बाबा ने दो राज्यों की पूरी व्यवस्था ठप कर दी है। सुरक्षा की इतनी अभूतपूर्व किलेबंदी से साफ हो गया था कि फैसला डेरा सच्चा सौदा प्रमुख संत गुरमीत रामरहीम के खिलाफ जा सकता है। इस वजह से पंजाब और हरियाणा की सरकारों को सतर्क रहना पड़ा, क्योंकि जाट आंदोलन के दौरान खट्टर सरकार की ढिलाई से काफी नुकसान उठाना पड़ा था, लिहाजा सरकार वह स्थिति पैदा नहीं होने देना चाहती। दोनों राज्यों की राजनीति में बाबा की अच्छी पकड़ है।

सवाल उठता है कि बाबाओं पर सरकारें क्यों इतनी मेहरबान रहती हैं? उन्हें आस्था की आड़ में संविधान और विधान से खेलने की आजादी क्यों दी जाती है? बाबा हैं तो उन्हें सब कुछ करने की खुली छूट कैसे मिल जाती है? जिस संत पर देश की सबसे प्रतिष्ठित सुरक्षा एजेंसी फैसला सुना रही हो, वह अदालत किस लाव लश्कर के साथ पहुंचता है यह कैसी बिडंबना है!

क्या एक आम आदमी के साथ भी ऐसी स्थियां बनती हैं? बाबाओं का रुतबा, उनकी आजादी क्या हमारे संविधान और कानून से बड़ी क्यों हैं?

महिलाओं और आश्रम की साध्वियों के यौन शोषण को लेकर बाबाओं, संतों और मठाधीशों का इतिहास कलंकित रहा है। हम यह कत्तई नहीं कहते कि यह बात सभी धार्मिक संस्थाओं और पीठाधीश्वरों पर लागू होती है, लेकिन अपवाद को भी खारिज नहीं किया जा सकता।

देश में ऐसी स्थितियां क्यों पैदा हुई? इसका जिम्मेदार कौन है? हरियाणा और पंजाब में लाखों की संख्या में सेना और अर्धसैनिक बल के जवान और सिविल फोर्स के जवान तैनात हैं। सुरक्षा को लेकर सरकार की नींद उड़ी हुई है। उपद्रवियों से निबटने को सेना तक बुला ली गई, लेकिन बाबा के अनुयायी ईंट से ईंट बजाने को तैयार हैं। वह राज्य सरकार और पुलिस की तरफ से जारी आदेश को कत्तई मानने को तैयार नहीं हैं।

सवाल है कि धर्म और आस्था पर सरकारें पकड़ ढीली क्यों रखती हैं? भीड़ को खुद फैसला लेने का अधिकार क्यों दिया जाता है? देश, संविधान और उसका विधान बाबाओं, राजनेताओं, धर्म, जाति, समूहों से परे क्यों है? भारत की सांस्कृतिक विभिन्नताओं में यानी अनेकता में एकता की है।

यहां हजारों जातीय, धार्मिक, आदिवासीय समूह, धार्मिक संस्थाएं, मठ, मंदिर, गुरुद्वारे, मकबरे हैं। देश के संविधान और कानून के मुताबिक सभी को संवैधानिक दायरे में पूरी आजादी है। वह चाहे जीने की आजादी हो या फिर धार्मिक स्वत्रंता की, लेकिन हाल के कुछ सालों में भीड़, आस्था और धार्मिक आजादी संविधान और कानून को निगलने में लगी है।

गुरुमीत राम रहीम एक विशेष समुदाय के संत हैं और दुनिया में उनके पांच करोड़ से अधिक भक्त हैं। राजनेता चुनाव जीतने के लिए उनकी दुआ और आशीर्वाद लेते हैं। क्या इस लिहाज से वह न्याय व्यवस्था से परे हैं? वह कुछ भी करने को आजाद हैं? वह यौन शोषण करें या फिर जमीनों पर अतिक्रमण, धर्म के नाम पर इस तरफ के बाबाओं को खुली छूट कब तक मिलती रहेगी? संविधान और कानून से वह खिलवाड़ कब तक करते रहेंगे। संत आशाराम बाबू, रामपाल सिंह, चंद्रास्वामी और न जाने कितने बाबाओं और राजनेताओं का संबंध जग जाहिर है।

हमारी धार्मिक आस्था और अधिकार इतने अनैतिक क्यों हो चले हैं? एक बाबा पर यौन शोषण का आरोप लगता है। जांच के बाद देश की सबसे विश्वसनीय संस्था सीबीआई उस पर फैसला सुनाती है और संत के समर्थक हिंसा करने तथा मरने-मारने पर उतारू हैं, यह सब क्यों? क्या आपका यह दायित्व नहीं बनता है कि जिसे आप भगवान मान रहे हैं, उसकी नैतिकता कितनी अनैतिक हो चली है, इसे परखें और समझे।

आप देश की संविधान, काननू और व्यवस्था पर विश्वास नहीं जता रहे हैं, आस्था के नाम पर आप मोहरे बने हैं। खुलेआम सड़कों पर नंगा प्रदर्शन कर रहे हैं। फिर देश, संविधान, कानून और व्यवस्था का मतलब ही क्या रह जाता है? इस तरह की अनैतिक भक्ति किस काम की? जिस बाबा और संत से आप सदाचार की उम्मीद करते हैं, क्या वह आपके विश्वास पर खरा उतरता है? फिर बगैर जांच परख के गुरु बनाना क्या हमारी मूर्खता नहीं है?

बाबाओं और संतों के नाम पर अगर इसी तरह लोगों को धार्मिक स्वतंत्रता की आजादी मिलती रहेगी तो फिर देश और उसके संविधान का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। उस स्थिति में हम एक राष्ट्र के निर्माण के बजाए ऐसे समाज का निर्माण कर रहे, होंगे जहां सदाचार की बजाय कदाचार अधिक होगा।

अगर यह सिलसिला बंद नहीं हुआ तो लोकतांत्रिक व्यस्था भीड़ के हवाले होगी। जहां किसी भी तंत्र का कोई कानून लागू नहीं होता है। उस स्थिति से हमें बचना होगा। देश जनादेश से चलता है, जनादेश आम जनता देती है बाबा नहीं देता है। राजनेताओं और राजनीति को यह बात भी समझनी होगी। सिफ नारों से देश नहीं बदल सकता है। उसके लिए जमीन तैयार करनी होगी। हम संत राम रहीम, आसाराम, रामपाल सिंह और दूसरे बाबाओं से किस चरित्र निर्माण की उम्मीद कर सकते हैं।

बाबाओं को हम आस्था के प्रतिबिंब कब तक मानते रहेंगे? सेना तैनात कर, बिजली काटकर और कर्फ्यू लगा कर कब तक व्यवस्था और संविधान की रक्षा की जाएगी। अब वक्त आ गया है, जब धर्म के ढोंगियों का संरक्षण और रक्षण बंद होना चाहिए। (आईएएनएस/आईपीएन)

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

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