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पैरा एथलीटों के साथ देश में अभी भी किया जाता है भेदभाव : कोच कर्माकर

कोलकाता, 24 अगस्त (आईएएनएस)| रियो पैरालम्पिक में भारतीय तैराकी टीम के कोच रहे प्रशांता कर्माकर ने गुरुवार को कहा कि पिछले साल कई पदक जीतने के बाद भी देश में पैर एथलीटों के प्रति रवैये में अभी तक बदलाव नहीं आया है।

भारत ने पिछले साल रियो पैरालम्पिक में इतिहास रचते हुए चार पदक जीते थे जिनमें दो स्वर्ण, एक रजत और एक कांस्य पदक शामिल था। यह भारत का इन खेलों में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है।

खेलों के महाकुंभ के लगभग एक साल पूरा होने के बाद भी कर्माकर को शिकायत है कि पैरा एथलीटों के साथ अभी भी भेदभाव किया जाता है।

उन्होंने कहा, पैराएथलीटों को लेकर नजरिया अभी तक बदला नहीं है। 2010 राष्ट्रमंडल खेलों में विश्व ने हमें बताया था कि वे एथलीट हैं, पैराएथलीट नहीं हैं।

पैरालम्पिक खिलाड़ियों के लिए नागरिक कल्याण संगठन द्वारा 28 अगस्त को आयोजित की जाने वाली वॉक की घोषणा के कार्यक्रम पर पहुंचे कर्माकर (36) ने कार्यक्रम से इतर संवाददाताओं से कहा, (राष्ट्रमंडल खेलों में) कोई भेदभाव नहीं था, लेकिन यहां आप पैरा एथलीट हैं। आपको अलग तरीके से देखा जाता है।

भारतीय तैराकी टीम को प्रशिक्षण देने के अलावा कर्माकर ने 2003 में विश्व तैराकी चैम्पियनशिप में और 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों में पदक जीते थे।

2006 में बेहतर भविष्य के लिए पश्चिम बंगाल से हरियाणा पहुंचे कर्माकर ने कहा, पश्चिम बंगाल में योजनाओं की भी कमी है।

उन्होंने कहा, इसीलिए मुझे 2006 में हरियाणा आना पड़ा। एक निश्चित उम्र के बाद कोई प्रेरणा होनी चाहिए।

सात साल की उम्र में कर्माकर ने सड़क दुर्घटना में दाहिना हाथ खो दिया था।

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