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2 साल पहले मिलना चाहिए था खेल रत्न : झाझरिया

नई दिल्ली| देश का सर्वोच्च खेल सम्मान खेल रत्न के लिए नामांकित किए जाने वाले पैरालिम्पक खिलाड़ी देवेंद्र झाझरिया ने गुरुवार को कहा कि उन्हें तकरीबन एक दशक पहले एथेंस पैरालिम्पक 2004 में विश्व रिकार्ड के साथ स्वर्ण पदक जीतने के मौके पर यह पुरस्कार हासिल करना चाहिए था।

36 साल के झाझरिया दो स्वर्ण पदक जीतने वाले भारत के पहले पैरालम्पिक खिलाड़ी हैं। उन्होंने पिछले साल ही रियो पैरालम्पिक खेलों में भी सोने का तमगा जीता था।

झाझरिया खेल रत्न चुनने वाली न्यायाधीश सी.के. ठक्कर की अध्यक्षता वाली समिति की पहली पसंद थे। उनके अलावा भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान सरदार सिंह को खेल रत्न के लिए समिति ने नामित किया है।

सर्वोच्च खेल सम्मान के लिए नामित होने से बेहद खुश झाझरिया ने कहा, “इस सफर में जिन्होंने मेरा साथ दिया, सबसे पहले मैं उन्हें शुक्रिया कहना चाहता हूं। इतने बड़े सम्मान के लिए नामित होना मेरे लिए खुशी की बात है, लेकिन यह 12 साल पहले होना चाहिए था।”

झाझरिया ने कहा, “अगर यह अवार्ड 12 साल पहले, जब मैंने अपना पहला पैरालिम्पक स्वर्ण पदक विश्व रिकार्ड के साथ जीता था, तब मिलता तो मैं ज्यादा खुश और प्रोत्साहित होता। लेकिन, फिर भी वो कहते हैं न कि देर आय दुरुस्त आए।”

2004 में झाझरिया ने पुरुषों की भालाफेंक स्पर्धा में एफ-46 श्रेणी में 62.15 मीटर की दूरी तय करते हुए नया विश्व रिकार्ड बनाया था और सोना जीता था। वह पैरालम्पिक में स्वर्ण जीतने वाले पहले भारतीय थे। बीजिंग-2008 और लंदन-2012 पैरालम्पिक खेलों में एफ-46 श्रेणी को रखा नहीं गया था, इसलिए झाझरिया को अपना ही रिकार्ड तोड़ने का मौका नहीं मिला था।

पिछले साल रियो में एक बार फिर एफ-46 श्रेणी को शामिल किया गया और इस बार भारतीय खिलाड़ी ने मौका हाथ से जाने नहीं दिया। इस बार दूरी थी, 63.7 मीटर, झाझरिया ने अपना ही विश्व रिकार्ड तोड़ दिया था और एक बार फिर स्वर्ण के साथ देश लौटे थे।

प्रधानमंत्री का टारगेट फॉर पोडियम (टीओपी) योजना के लिए शुक्रिया अदा करते हुए झाझरिया ने अपनी सफलता का श्रेय भी इस योजना को दिया।

उन्होंने कहा, “2014-15 के बाद, पैरा खेल धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगे। मैं इसके लिए प्रधानमंत्री का शुक्रिया अदा करता हूं जिन्होंने विशेष तौर से योग्य खिलाड़ियों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना सपना सच करने के लिए प्रोत्साहित किया।”

राजस्थान के इस खिलाड़ी ने कहा, “मैं अपने दूसरे पैरालम्पिक स्वर्ण का पूरा श्रेय टीओपी योजना को देता हूं, जिसने सभी पैरालम्पिक खिलाड़ियों को बेहतर सुविधाएं, विदेशी कोच प्रदान करने के लिए फंड दिलाने में मदद की।”

जब झाझरिया से पूछा गया कि उन्हें इस पुरस्कार के लिए नामित होने में जो देर लगी उसके पीछे वह क्या कारण देखते हैं? इस पर झाझरिया ने कहा कि एक खिलाड़ी के तौर पर वह सिर्फ अपने खेल पर ध्यान देने चाहते हैं और मेहनत कर पदक जीतने की कोशिश में रहते हैं।

उन्होंने कहा, “एक एथलीट के तौर पर मेरा काम मेहनत करना और अपने देश के लिए पदक जीतना है। मैंने 2004 में भी इस पदक के लिए नामांकन दाखिल किया था, लेकिन कुछ चीजें मेरे हाथ में नहीं हैं।”

झाझरिया का मानना है कि इस तरह के पुरस्कार बड़ी जिम्मेदारी लेकर आते हैं। उन्होंने कहा, “यह मेरे और मेरे परिवार के लिए सिर्फ गर्व की बात नहीं है। इस तरह के प्रतिष्ठित अवार्ड अपने साथ जिम्मेदारी लेकर भी आते हैं।

इससे मुझे युवा खिलाड़ियों को खेल को एक करियर के तौर पर लेने के लिए प्रेरित करने में मदद मिलेगी।” झाझरिया को अपने नामित होने के बाद उम्मीद है कि उनका यह नामांकन बाकी पैरालम्पिक खिलाड़ियों के लिए रास्ते खोल देगा।

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