टॉर्च की रोशनी में होती है डिलीवरी और इलाज
रायपुर/जशपुर। छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले का फरसाबहार विकासखंड का अस्पताल रामभरोसे चल रहा है। जिले में सांपों की भरमार होने की वजह से यह ‘नागलोक’ के नाम से मशहूर है। यहां बिजली नहीं के बराबर रहती है। इमरजेंसी लाइट और सोलर लाइट दोनों महीनों से खराब हैं।
आदिवासी बहुल क्षेत्र होने के नाते यहां ज्यादातर सर्पदंश और डिलीवरी के मरीज आते हैं। बिजली गुल होने पर ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर और नर्स गांव वालों की टॉर्च के भरोसे ही जिंदगी बचाने में लग जाते हैं। अस्पताल की वॉयरिंग भी जहां तहां झूल रही है।
एक और मरीज खोरबहारिन बाई ने कहा, “रोशनी नहीं होने की बात सही है, यहां तो दवाइयां भी नहीं मिलतीं। दवाइयां बाहर से खरीदकर लानी पड़ती है।” अस्पताल की बीएमओ डॉ. सुषमा कुजूर का कहना है, “हमने जनरेटर के मिस्त्री को सूचना दे दी है, वो आकर ठीक कर देगा।”
सवाल तो यह है कि सारी व्यवस्थाएं ठीक करवाने की सूचना संबंधित व्यक्तियों को दे देना क्या काफी है? ऐसे में अगर किसी की मौत हो जाती है, तो इसका जिम्मेदार कौन होगा? बीएमओ, सीएमओ या फिर अस्पताल प्रशासन? अलग राज्य बने 25 साल हुए, डॉ. रमन सिंह चौथी बार मुख्यमंत्री बनने का दावा कर रहे हैं।