मुख्यमंत्री साहब जरा यहां भी देख लीजिए कैसे जी रहे हैं लोग!
देहरादून। सरकारें किसी की भी हों वह अपनी वाहवाही करने में पीछे नहीं रहती हैं। तरीफ करते थकती नहीं हैं। जबकि सच्चाई कुछ और ही होती है।
आज चाहे आप यूपी की बात करें या उत्तराखंड की। उत्तराखंड में आज भी कई गांव ऐसे हैं जहां रहने वाले लोग नर्क जैसी जिंदगी जी रहे हैं। ये हकीकत है उत्तरकाशी के उन गांवों की जहां के लोग आज भी रोज मौत से दो चार हो रहे हैं।
खतरे में जी रहे लोग
ऐ ऐसे गांव हैं न इन गांवों में सडक़ें हैं, न पुल, न कोई कोई इनकी सुनने वाला व देखने वाला। यहां सिर्फ बरसातों में ही नहीं, साल के 365 दिन लोग खतरनाक रास्तों पर चलने के लिए मजबूर हैं लेकिन हैरान कर देने वाली बात ये है कि सब कुछ जान कर भी प्रदेश के अधिकारी और सरकार अनजान बनी रहती है।
उत्तरकाशी के सीमान्त गांवों की स्थिति 2013 की आपदा के बाद से आज भी बदहाल बनी हुई है। उत्तरकाशी के मोरी ब्लॉक का गंगाड़ पर्वत क्षेत्र हो या पुरोला ब्लॉक का सरबडियार या भटवाड़ी का टकनोर क्षेत्र, लगभग आठ गांवों के ग्रामीण कैसे जी रहे हैं, ये देखने वाला सिर्फ भगवान है।
इन लोगों की नरक से कम नहीं जिन्दगी
इन गांवों के लोग साल के साल सरकारी राहत और अधिकारियों के इंतजार में बिता रहे हैं। लेकिन सबसे बुरा हाल होता है बरसात में, इस वक्त नदी पूरे उफान पर होती है और लोगों को उन नदियों के किनारों से ही जाना और आना पड़ता है। नदियां उनका रास्ता बन गयी हैं और कई दिनों तक तो वो भारी बरसात में घरों में ही कैद रहते हैं।
ऐसा नहीं है कि ये चंद गांव ही ऐसे हैं बल्कि आज भी डिंगाड़ी गांव, छानिका गांव, लेवटाड़ी, गौल, कसलौ, किमडार, पोन्टी गांवों के ग्रामीण अपने क्षेत्र की बदहाल स्थिति पर खून के आंसू रोने को मजबूर हैं। इन गांवों को मोटर रोड़ तो छोडिय़े पैदल आने जाने तक के रास्ते नहीं हैं। गांव के बच्चे स्कूल तक नहीं पहुंच पाते और जब कोई बीमार हो जाये तो उसे स्वास्थ्य सुविधा न मिलने से दम तोडऩा पड़ता है। बदहाल व्यवस्थाओं के चलते दो से तीन प्राथमिक व जूनियर स्कूल बंद हो चुके हैं।
आश्वासन के सिवा कुछ नहीं जिलाधिकारी के पास
हैरानी की बात ये है कि जिलाधिकारी आशीष श्रीवास्तव का कहना है कि वो पिछले दिनों इन इलाकों का दौरा करके आये थे और वो भी मानते हैं कि कई गांवों के हालात ठीक नहीं हैं। कहने तो उन्होंने जरूर कह दिया कि जल्द इस स्थिति को ठीक किया जायेगा। लेकिन कब तक इसका जवाब शायद उनके पास भी नहीं है।