आम लोगों की बस की बात नहीं है यहां खेती कर पाना
पाकिस्तान के सिंध प्रांत में अमीर व राजनीतिक रूप से प्रभावशाली किसानों को ही सिंचाई के लिए पानी मिलता है। गरीब किसानों को पानी या तो मिलता नहीं या उसकी मात्रा इतनी कम है कि इससे उनकी जरूरतें पूरी नहीं हो पातीं।
सन् 1990 के अंत में जब हम पाकिस्तान के सिंध में एक सिंचाई सुधार परियोजना पर काम कर रहे थे, तो करीब 70 वर्ष के एक बुजुर्ग कार्यालय आए और नहर के पानी के असमान बंटवारे की अपनी पीड़ा बयां की। दो दशक बाद भी मुझे वह कहानी याद है, और आज स्थिति और बिगड़ी हुई है।
वह नोटकानी जाति से ताल्लुक रखता था और जमाराव नहर के अंतिम मुहाने पर रहता था, जिसे सिंध के झूडो कस्बे के निकट स्थित नारा नहर से पानी मिलता था।
अपनी पीड़ा बयां करते वक्त वह अपने आंसुओं पर काबू नहीं रख पाया। किसान ने कहा, “200 एकड़ जमीन होने के बावजूद मेरे बेटे लकड़ियां काटने और जलावन बेचने का काम करते हैं, क्योंकि नहर का पानी हमारे खेतों तक नहीं पहुंच पाता। हम भी आपकी तरह जी सकते थे, अगर हम अपनी जमीन के एक चौथाई हिस्से पर भी खेती कर पाते।”
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इन कृषि इलाकों में पानी हमेशा संपदा रहा है। सिंध में नहरों का विस्तृत नेटवर्क है, जिसमें 14 मुख्य नहरें तथा 40,000 से अधिक फील्ड चैनल हैं। इस एकीकृत सिंचाई जल वितरण प्रणाली के बावजूद इस इलाके में ग्रामीण निर्धनता, भूख तथा कुपोषण की समस्या प्रबल है।
थिंक टैंक सोशल पॉलिसी एंड डेवलपमेंट सेंटर (एसपीडीसी) की साल 2010-11 की एक रपट के मुताबिक, सिंध की 45.34 फीसदी आबादी गरीबी रेखा के नीचे है। यह आंकड़ा चार प्रांतों की तुलना में सर्वाधिक है। बलूचिस्तान तथा खैबर पख्तूनख्वा में सिंचाई का बेहतर नेटवर्क नहीं है, लेकिन इस मामले में वहां के हालत सिंध से बेहतर हैं।
इसी तरह, सिंध में प्रति व्यक्ति कैलोरी की खपत 2,490 है, जबकि पंजाब के लिए यह आंकड़ा 2,636 तथा खैबर पख्तूनख्वा व बलूचिस्तान के लिए 2,700 है। पाकिस्तान डेमोग्राफिक एंड हेल्थ सर्वे (2013) के अनुमान के मुताबिक, सिंध प्रांत में पांच साल से कम उम्र के 63 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं, जो अन्य प्रांतों की तुलना में सर्वाधिक है।
नियमित तौर पर सिंचाई जल आपूर्ति तथा सुदूरवर्ती इलाकों तक इसकी पहुंच के बावजूद सिंध में आखिर इतनी गरीबी, भूख व कुपोषण क्यों है? इसके कई कारण हैं, लेकिन जमीनों का असमान बंटवारा तथा सिंचाई का जल सबसे ऊपर है।
सिंध में 71 फीसदी परिवारों के पास जमीन नहीं है और यह आंकड़ा अन्य सभी प्रांतों की तुलना में सर्वाधिक है। बाकी बचे 29 फीसदी परिवारों के पास एक एकड़ से लेकर 25 एकड़ तक कृषि भूमि है।
साजन शेख के पास तटीय क्षेत्र बादिन जिले में मीरवाह नहर के अंतिम मुहाने पर खेती की जमीन है। उन्हें दो समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अधिकांश बार उनके खेतों तक नहर का पानी नहीं पहुंच पाता, हां कभी-कभी समुद्र का पानी जरूर पहुंच जाता है।
पानी के असमान बंटवारे के कई कारण हैं। पानी की राजनीतिक अर्थव्यवस्था की मौजूदा वितरण व्यवस्था में बड़ी भूमिका है। कुछ लोगों के पास काफी जमीनें हैं और इसलिए वे प्रभावशाली हो गए हैं। अपने राजनीतिक संपर्को की बदौलत उन्होंने धीरे-धीरे सिंचाई विभाग पर नियंत्रण कर लिया, नहर से अपने जमीन की तरफ ज्यादा से ज्यादा पानी को मोड़ने के लिए वे मौजूदा कानूनों से छेड़छाड़ करते हैं, जिसकी पहले अनुमति नहीं थी।
जिन किसानों की जमीनें नहर के मुहाने के करीब हैं, इसका भी उन किसानों को लाभ मिलता है। वे लिफ्ट मशीन का इस्तेमाल कर आवंटित पानी से ज्यादा पानी निकाल लेते हैं। यह सिंचाई विभाग के कर्मचारियों की मिलीभगत से होता है।
राजनीतिक प्रभाव ने सिंचाई विभाग को कमजोर कर दिया है। जिस विभाग को समान मात्रा में पानी के वितरण की जिम्मेदारी दी गई थी, वह कुछ लोगों के हितों को साधने तथा कमाई करने में लगा है।
दूसरा कारण, पानी की आपूर्ति की तुलना में मांग का अधिक होना है। इसकी वजह से पानी की चोरी शुरू हो गई है, जिसने एक परोक्ष पानी बाजार को जन्म दिया है। जो किसान सक्षम हैं, वे अनौपचारिक बाजार से पानी खरीदते हैं।
नहर के अंतिम मुहाने पर जिन किसानों के खेत हैं, उनपर प्रणाली की भौतिक सीमा की भी मार पड़ती है। अधिकांश सिंचाई सुविधाएं जर्जर हो चुकी हैं और इसलिए उन्हें देखभाल व मरम्मत की जरूरत है। लेकिन अपर्याप्त मरम्मत के कारण प्रणाली अपनी क्षमता के हिसाब से काम करने में सक्षम नहीं है।
(थर्डपोल डाट नेट के साथ व्यवस्था के तहत। मुस्तफा तालपुर विकास अर्थशास्त्री हैं। लेख में व्यक्त विचार थर्डपोल डाट नेट के हैं)