नई दिल्ली | एचआईवी अब मातृत्व के लिए श्राप नहीं रह गया है। बशर्ते महिलाओं को यह पता हो कि वे इससे संक्रमित हैं। आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों ने मां के एचआईवी संक्रमण से उसके गर्भ में पल रहे बच्चे का बचाव करना मुमकिन कर दिया है। इसलिए एक गर्भवती महिला को मातृत्व का आनंद लेने के लिए एचआईवी की जांच भी जरूर करवा लेनी चाहिए।
स्त्री रोग विषेषज्ञ यह सुझाव देते हैं कि प्रत्येक गर्भवती महिला को एचआईवी की जांच करानी चाहिए, ताकि खुशियों भरे इन पलों में संक्रमण फैलने से रोका जा सके। गर्भावस्था हर महिला के लिए एक सुंदर समय है। हर गर्भवती महिला चाहती है कि उसका बच्चा पूर्णत: स्वस्थ रूप और रोगमुक्त जन्म ले। इसके लिए हमेशा यह सुझाव दिया जाता है कि सभी महिलाएं, जो गर्भवती हैं या गर्भवती होने की कोशिश कर रही हैं, उन्हें अपने साथियों को भी एचआईवी का परीक्षण कराने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
एचआईवी से संक्रमित मां से उसके बच्चे में एचआईवी तीन प्रकार से स्थानांतरित हो सकता है – गर्भावस्था के दौरान, योनि से बच्चे के जन्म के दौरान, स्तनपान के माध्यम से। आशान्वित मांएं गर्भावस्था, प्रसूति पीड़ा और प्रसव के दौरान एंटीर्रिटोवायरल ट्रीटमेंट (एआरटी) लेकर अपने बच्चे व अपनी सेहत की रक्षा कर सकती हैं।
रप्चर ऑफ मेम्ब्रेन (आरओएम या रोम) भी मातृत्व रक्त व योनि द्रव भी भ्रूण के जोखिम को बढ़ाता है और बहुत ज्यादा समय तक रोम रहने को वर्टिकल ट्रांसमिशन के लिए काफी जोखिमभरा कारक बनते भी देखा गया है। ऐसे प्रमाण हैं कि रोम के चार घंटे के बाद मां से बच्चे में एचआईवी फैलने का जोखिम बढ़ जाता है और सीजेरियन क्षेत्र का रक्षात्मक प्रभाव खो जाता है।
प्रसव के पहले और उसके बाद की दवाएं और निदान को केवल स्त्री रोग विशेषज्ञ की निगरानी में किया जाना चाहिए। साथ ही, अपने हेल्थकेयर प्रदाता से डिलिवरी के विकल्पों पर बात करें। जैसे कि ज्यादा या अज्ञात एचआईवी वाइरस वाली महिलाओं के लिए मां से बच्चे में इसके प्रसारित होने के जोखिम को कम करने के लिए सीजेरियन (सी-सेक्शन) डिलिवरी का सुझाव दिया जाता है