नक्सलियों की लेवी वसूली पर गंभीर नहीं सरकार
जगदलपुर । बस्तर की जनता के लिए नश्तर बन चुके नक्सलवाद की आय का मुख्य स्रोत तेंदूपत्ते से होने वाली कमाई को स्थानीय भाषा में लेवी कहा जाता है। जैसे ही तेंदूपत्तों की तोड़ाई का समय आता है, तो आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, झारखंड और ओडिशा जैसे राज्यों के नक्सली छत्तीसगढ़ में सक्रिय हो जाते हैं। इसके बाद कोई न कोई बड़ी वारदात कर अपनी आमद का संकेत देते हैं और फिर उसी की दहशत के नीचे होती है धुआंधार पैसों की वसूली। शासन प्रशासन भी इसको रोकने को लेकर गंभीर दिखाई नहीं देता।
गर्मी में नक्सल आंदोलन में आई तेजी का यही मूलभूत कारण है। एएसपी नक्सल ऑपरेशन महेश्वर नाग ने बताया कि क्षेत्र में नक्सलियों की हलचल बढ़ी है। सूत्रों से पता चला है कि नक्सली तेंदूपत्ता ठेकेदारों से लेवी वसूली करते हैं पर किसी ठेकेदार ने इसकी शिकायत दर्ज नहीं कराई है तो डीएफओ रमेश चंद्र दुग्गा ने भी वही पुराना रटारटाया बयान दोबारा सुना दिया कि नक्सलियों के लेवी वसूली की कोई अधिकारिक शिकायत नहीं आई है।
सब कुछ अब तक ठीकठाक चल रहा है। तेंदूपत्तों के संग्रहण का कार्य तेजी से जारी है। तेंदूपत्ता की लेवी के करोड़ों की वसूली का मार्ग प्रशस्त हो गया है। इसको रोकने की कोई कार्य योजना न तो शासन के पास है और न ही बीएसएफ के पास।
फरसपाल निवासी सोमारू हिडमा (परिवर्तित नाम) ने बताया, “केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले के बाद नक्सलियों की आर्थिक रीढ़ को तोड़ कर रख दिया था, जिसके बाद यह सबसे अच्छा सुअवसर था कि नक्सलियों की आर्थिक नाकेबंदी पर पुख्ता और कारगर कदम शासन को उठाना चाहिए था। इसके साथ ही साथ अगर बीएसएफ के जवान और पुलिस मिलकर इनकी आपूर्ति की लाइन को काट देते तो ये हमारी दूसरी बड़ी जीत होती, जिससे बस्तर की नक्सलवाद के सफाए का मार्ग प्रशस्त होता, लेकिन ऐसा हो नहीं सका।”