देहरादून। पूरे भारत में चारधाम यात्रा का जितना महम्त्व है उस्सेन ज्याुदा उत्तराखंड इसको लेकर उत्सा ह रहता। श्री बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री चार तीर्थस्थल करोड़ों लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र हैं। इनमें से गंगोत्री धाम भी एक है। हर साल यहां यहां गंगा मैया के दर्शन के लिए लाखों लोग आते हैं। आपको बता दें की हर वर्ष दीपावली के दिल गंगोत्री धाम के कपाट बंद कर दिये जाते हैं। ऐसा मान्या ता है कि यहां से देवी गंगा अपने निवास स्थान मुखबा गांव चली जाती है।
लगभग छह महीने शीतकाल प्रवास के बाद अक्षय तृतीया के दिन मंदिर के कपाट खुलते हैं। इससे एक दिन पहले मां गंगा की उत्सव डोली गंगोत्री धाम के लिए निकलती है। देवी गंगा के गंगोत्री लौटने की यात्रा बेहद उल्लास पूर्ण होती है। पारम्परिक रीति-रिवाजों के अनुसार बाजे-गाजे, नृत्य, जुलूस और पूजा-पाठ के साथ मां गंगा की डोली मुखबा से गंगोत्री धाम पहुंचती है।
धाम पहुंचने से पहले मां गंगा की बाकायदा डोली के साथ मुखबा से गंगोत्री के लिए रवाना होती है। डोली को बेटी की तरह से बिदा किया जाता है बाकायदा इसके लिए पूरी तैयारी की जाती हैं। गंगा की मूत्र्ति को ले जाने वाली पालकी को रंगीन कपड़ों से सजाया जाता है। जेवरातों से सुसज्जित कर गंगा की मूत्र्ति को पालकी के सिंहासन पर विराजमान करते हैं। मुखबा गांव के घर-घर में बेटी को विदा करने के लिए कंडा सजाया जाता है।
सूत्रों के मुताबिक इस बिदाई समारोह में आर्मी बैंड भी शामिल होता है। बिदाई के समय उपहार स्वाारूप लोग अनेक प्रकार के दान देते है। जैसे वो अपनी बेटी को भेजने में रश्में करते पूरी तरह से यहां के लोग वैसे मां गंगा की डोली को बिदा करते है।