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जीडीपी बढ़ी, लेकिन नौकरियां घटीं

19 वर्षीय दिनेश मांझी अपने घर का इकलौता कमाऊ सदस्य है और अपनी 55 वर्षीय मां और तीन भाई-बहनों का पेट पाल रहा है। हालांकि परिवार की जिम्मेदारियां उसके कंधों पर 12 वर्ष की उम्र में ही आ गई थीं, जब उसके पिता बिहार से 1,500 किलोमीटर दूर पंजाब के खेतों में अपने साथ हाथ बंटाने के लिए लेते आए थे। दिनेश के पिता 2013 में बीमारी के चलते चल बसे और उनका अंतिम संस्कार ही करने में परिवार कर्ज तले दब गया। दिनेश अगले एक साल तक नौकरी की तलाश में भटकता रहा। बिहार के बक्सर जिले में डुमरी गांव का रहने वाला दिनेश इस बीच बगल के राज्य मुजफ्फरपुर में दिहाड़ी मजदूरी करने लगा। इस काम से उसे रोज के 100-150 रुपये मिलते हैं।
सज्जाद हुसैन ने अपने इंडिया एक्स्लूजन रिपोर्ट (2013-14) में दिनेश की व्यथा का जिक्र किया है, जिनका वर्णन नीदरलैंड्स के समाजशास्त्री जैन ब्रेमन ‘आजीविका के शिकारी’ कहकर करते हैं। देश में रोजगार के हालात पर उपलब्ध ताजा आंकड़े ‘वार्षिक रोजगार एवं बेरोजगारी रिपोर्ट’ (2013-14) के अनुसार, देश में 16.5 फीसदी से अधिक मजदूरों को नियमित काम नहीं मिला।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि प्रत्येक चार में से तीन परिवार ऐसे रहे, जिनमें एक भी सदस्य ऐसा नहीं था, जिसे नियमित तौर पर काम मिला हो। दूसरी ओर देश के कुल श्रमिकों में अनियमित तौर पर मजदूरी करने वाले लोगों की संख्या (30.9 फीसदी) अच्छी खासी है और यह संख्या बढ़ती ही जा रही है। नियमित वेतनभोगियों की जगह ठेके पर या अनियमित तौर पर काम करने वाले कामगारों की संख्या में इजाफा हो रहा है।
1999 से 2010 के बीच के एक दशक से अधिक समय में संगठित रोजगार के क्षेत्र में ठेके पर काम करने वाले कामगार 10.5 फीसदी से बढ़कर 25.6 फीसदी हो गए, जबकि सीधे तौर पर नौकरी पाने वाले लोगों की संख्या गिरकर 68.3 फीसदी से 52.4 फीसदी हो गई। देश में अनौपचारिक अर्थव्यवस्था सकल घरेलू उत्पाद में 50 फीसदी योगदान देती है और रोजगार का सृजन भी करती है। अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के तहत देश के कुल कार्यबल का 90 फीसदी रोजगार पाता है।
देश का कुल अनुमानित कार्यबल 47.5 करोड़ है, जिसमें से 40 करोड़ कामगारों को श्रम कानूनों के तहत मामूली सुरक्षा मिलती है या बिल्कुल नहीं मिलती। यह आबादी अमेरिका की कुल आबादी से भी अधिक है। देश की सत्ता में आने वाली सरकारें रोजगार सृजन का वादा तो करती हैं, लेकिन वास्तविकता उसके बिल्कुल उलट है। लगातार रोजगार सृजन घट रहा है और सुरक्षा भी कम होती जा रही है। 1999-2000 से 2009-2010 के दशक में जहां सकल घरेलू उत्पाद औसतन 7.52 फीसदी की तेजी से बढ़ा, वहीं रोजगार सृजन की वृद्धि दर 1.5 फीसदी रही है। यह 1972-73 के बाद के चार दशकों में सबसे कम है।

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