सर्वोच्च न्यायालय का वारंट असंवैधानिक : न्यायमूर्ति कर्नन
कोलकाता | कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सी.एस.कर्नन ने अपने खिलाफ अवमानना के मामले में सर्वोच्च न्यायालय से जारी जमानती वारंट को ‘असंवैधानिक’ करार दिया है। साथ ही यह भी कहा कि यह सब जानबूझकर उनकी ‘जिंदगी बर्बाद’ करने के लिए किया गया है, क्योंकि वह एक दलित हैं। सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद उन्होंने यहां संवाददाताओं से कहा, “आज जमानती वारंट जारी किया गया.. इस पर रोक लगाई जाएगी। इनके पास मेरे खिलाफ वारंट जारी करने का अधिकार नहीं है। यह असंवैधानिक है।” न्यायमूर्ति कर्नन के खिलाफ जमानती वारंट सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति जगदीश सिंह केहर की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय संविधान पीठ ने जारी किया। इसमें न्यायमूर्ति कर्नन से 31 मार्च तक शीर्ष अदालत के समक्ष पेश होने के लिए कहा गया है। साथ ही पश्चिम बंगाल के पुलिस प्रमुख से न्यायमूर्ति कर्नन को वारंट देने के लिए कहा गया है।
न्यायमूर्ति कर्नन ने इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, “यह आदेश जानबूझकर मेरे जीवन को बर्बाद करने के लिए दिया गया है। एक दलित न्यायाधीश को सार्वजनिक पद पर काम करने से रोका जा रहा है। यह अत्याचार है।” उन्होंने आरोप लगाया कि उनके द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कुछ न्यायाधीशों की ‘गैर-कानूनी गतिविधियों’ से अवगत कराए जाने के बाद उन्हें निशाना बनाया जा रहा है। न्यायमूर्ति कर्नन ने जनवरी में 20 ‘भ्रष्ट न्यायाधीशों’ का नाम लेते हुए भारतीय न्यायपालिका में ‘उच्च स्तरीय भ्रष्टाचार’ पर लगाम लगाने के लिए उनके खिलाफ जांच की मांग की थी।
उन्होंने कहा, “एक अलग संवैधानिक पद पर होने के नाते.. मैं केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के निदेशक को दोषी न्यायाधीशों के खिलाफ अपने आदेश के आधार पर विस्तृत जांच के आदेश देता हूं।”
सर्वोच्च न्यायालय ने महान्यायवादी मुकुल रोहतगी द्वारा यह बताए जाने के बाद न्यायमूर्ति कर्नन के खिलाफ वारंट जारी किया कि उन्होंने अवमानना के मामले में अदालत में पेश होने से इनकार कर दिया है।
अदालत ने यह भी कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के पंजीयन को आठ मार्च को न्यायमूर्ति कर्नन से एक संदेश मिला था, जिसमें लिखा था कि ‘प्रधान न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीशों से मिलना चाहता हूं, ताकि कुछ चुनिंदा प्रशासनिक मुद्दों पर चर्चा कर सकूं।’ न्यायालय ने कहा, “इस पत्र को अवमानना याचिका का जवाब नहीं माना जा सकता। जमानती वारंट जारी कर उन्हें अदालत के समक्ष पेश करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।”