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मणिपुर में आर्थिक नाकेबंदी अवैध : उच्च न्यायालय

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इंफाल | मणिपुर उच्च न्यायालय की एक पूर्ण पीठ ने राज्य में चार महीने से चली आ रही ‘आर्थिक नाकेबंदी’ को ‘अवैध’ करार दिया। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राकेश रंजन प्रसाद, न्यायमूर्ति एन. कोटेश्वर तथा के.नोबिन की पूर्ण पीठ ने इस संबंध में तीन मार्च को आदेश पारित किया। आर. के. ज्योसाना ने नाकेबंदी के परिणामस्वरूप पैदा हुए हालात पर चिंता जताते हुए एक जनहित याचिका दायर की है, जिस पर उच्च न्यायालय सुनवाई कर रहा है। नाकेबंदी करने वाले युनाइटेड नागा काउंसिल (यूएनसी) के अध्यक्ष गैडोन कमेई तथा सूचना सचिव स्टीफन लामकांग उच्च न्यायालय के समक्ष पेश हुए।
न्यायालय के समक्ष पेश होने में विफल रहे यूएनसी के छह अन्य अधिकारियों को पेशी के लिए 23 मार्च तक का वक्त दिया गया है। तब तक कमेई तथा लामकांग, न्यायिक हिरासत में रहेंगे।
उच्च न्यायालय के फैसले के मुताबिक, नाकेबंदी करने वाले लोग और संगठन ‘लोगों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन कर रहे हैं।’ न्यायालय ने कहा, “कुछ राजनीतिक हितों की पूर्ति के लिए ऐसा किया जाता है। सरकारी काम में बाधा पहुंचाई जाती है।”
पीठ ने फैसला देते हुए कहा, “सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश के मुताबिक, यूएनसी द्वारा लगाई गई नाकेबंदी को अवैध घोषित किया जाता है।” यूएनसी द्वारा थोपी गई आर्थिक नाकेबंदी से मणिपुर में तनाव का माहौल है। बीते एक नवंबर को यह नाकेबंदी शुरू हुई थी और इससे राष्ट्रीय राजमार्ग 37 तथा राष्ट्रीय राजमार्ग दो बुरी तरह प्रभावित हैं।
राज्य में नागा बहुल इलाके को काटकर नए जिलों के गठन की सरकार की योजना के खिलाफ एक नवंबर को नाकेबंदी शुरू हुई थी। सरकार द्वारा इसे नजरअंदाज करने और जिरिबामा को जिला घोषित करने के बाद आंदोलन और तेज हो गया। राज्य सरकार ने कांगपोकपी, तेंगौपाल, फारजोल, काकचिंग, नोने तथा कामजोनगिन जिलों का गठन किया है।  यूएनसी के मुताबिक, नागा लोगों के अधिकारों को दबाने के लिए जानबूझकर कर बिना उनकी मंजूरी लिए नागा इलाकों को काटकर नए जिलों का गठन किया गया है।

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