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नये नोटों पर देवनागरी अंक की संसद में निंदा

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नई दिल्ली | 500 और 2000 रुपये के नए नोटों पर देवनागरी अंकों का प्रयोग ‘संविधान का उल्लंघन’ है और ‘बेहद निंदनीय’ है। एडीएमके के सांसद तिरुचि शिवा ने ये बातें राज्यसभा में कही। प्रश्नकाल के दौरान इस मामले को उठाते हुए शिवा ने कहा कि मुद्रा पर देवनागरी लिपि का प्रयोग सरकार द्वारा किसी एक भाषा या भाषिक समूह को तवज्जो देना दिखता है, जिससे अन्य अलग-थलग महसूस कर सकते हैं।  उन्होंने नई मुद्रा पर स्वच्छ भारत के लोगो के इस्तेमाल पर भी आपत्ति जताई कहा कि सरकार नोटों के माध्यम से अपनी योजनाओं का प्रचार नहीं कर सकती।
शिवा ने कहा, “नए नोटों पर हिन्दी लिपि और यह संविधान के अनुच्छेद 343(1) का उल्लंघन है, जिसके तहत केंद्र सरकार आधिकारिक उद्देश्यों के लिए भारतीय अंकों के अंतर्राष्ट्रीय रूप का ही प्रयोग करेगी।”\ हालांकि 1960 में राष्ट्रपति के एक आदेश में कहा गया है कि केंद्रीय मंत्रालयों के हिन्दी प्रकाशनों में देवनागरी अंकों के प्रयोग के लेकर एकसमान बुनियादी नीति अपनाई जानी चाहिए। शिवा ने कहा कि “नोट कोई केंद्रीय मंत्रालय का हिन्दी प्रकाशन नहीं है और न हीं वे केवल एक वर्ग की जरूरतों को पूरा करते हैं।”
उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 343(3) के अनुसार कानून के तहत संसद देवनागरी अंकों के प्रयोग का फैसला कर सकती है, लेकिन ऐसा नहीं किया गया।  शिवा ने कहा, “अगर सभी नोटों पर देवनागरी अंकों का प्रयोग किया जाता है तो ऐसा केवल संसद से कानून को पारित करके ही किया जा सकता है। लेकिन ऐसा किया गया।” उन्होंने कहा कि विभिन्नता से भरपूर देश में सरकार का यह फैसला दिखाता है कि वह “एक खास भाषा.. हिन्दी बोलने वाले समूहों को प्राथमिकता देती है।” जबकि नोटों को देश के सभी भाषाई समूह और वर्गो के प्रयोग के लिए बनाया गया है।
उन्होंने कहा, “इससे वो लोग और समूह पृथक हो सकते हैं जो सरकार के प्राथमिकता वाले समूह का हिस्सा नहीं हैं।” शिवा ने इसके अलावा सरकार द्वारा नोटों पर स्वच्छ भारत के लोगों के प्रयोग को ‘बेहूदा’ बताया और कहा कि सरकारी योजनाओं का इस तरीके से प्रचार नहीं हो सकता।

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