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उप्र चुनाव : पश्चिम में बड़े चेहरों की साख दांव पर

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लखनऊ | उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का सियासी घमासान पश्चिमी उप्र से शुरू होने जा रहा है। प्रथम चरण में इन इलाकों में मतदान होगा। पश्चिमी उप्र में कई ऐसे दिग्गज हैं, जिन पर अपनी साख बचाने का दबाव है। कुछ नेताओं पर अपनी सीट निकालने का दबाव है, तो कुछ पर अपने करीबियों को जिताने का। यह चुनाव पश्चिमी उप्र में राजीनीतिक दलों के कई दिग्गजों का राजनीतिक कद तय करेगा।
लोकसभा चुनाव के बाद संजीव बालियान को कैबिनेट में इसीलिए जगह मिली थी, क्योंकि चुनाव के दौरान जाट समुदाय ने दिल खोलकर भाजपा के पक्ष में मतदान किया था। भाजपा अजित सिंह के मुकाबले बालियान को बड़ा चेहरा पेश करने में जुटी हुई है।
पश्चिमी उप्र में पिछले दिनों चली परिवर्तन यात्रा की अगुवाई भी स्वयं बालियान ने की। इसीलिए अब सिर्फ मुजफ्फनगर ही नहीं, राज्य के पूरे पश्चिमी हिस्से में पिछला प्रदर्शन दोहराने का दबाव उन्हीं पर होगा। बालियान के अलावा मुजफ्फरनगर के ही थाना भवन विधानसभा सीट से विधायक सुरेश राणा के सामने भी ‘करो या मरो’ वाली स्थिति है। थानाभवन सीट से दूसरी बार विधायक बनने के लिए उन्हें कड़ा संघर्ष करना होगा। हुकुम सिंह, संगीत सोम और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी पर भी अपनी सीट के साथ ही अन्य सीटों पर पार्टी को जिताने का दारोमदार होगा।
पश्चिम की राजनीति को लेकर पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने कहा, “भाजपा एक बार फिर 2014 वाला प्रदर्शन पश्चिमी उप्र में ही नहीं, पूरे राज्य में दोहराएगी।” राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय भाजपा के युवा चेहरे श्रीकांत शर्मा पर भी खुद की सीट से जीत पक्की करने का दबाव होगा। वह पहली बार मथुरा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। जीत के बाद ही उनकी आगे की राजनीतिक दिशा तय होगी। इनका मुकाबला कांग्रेस के विधानमंडल दल के नेता प्रदीप माथुर से है।
पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के पोते संदीप उर्फ संजदू पर भी चुनावी पारी का आगाज जीत के साथ करने की चुनौती होगी। कल्याण की बदौलत वह विधानसभा का टिकट पाने में तो कामयाब हो गए, लेकिन उनकी साख भी दांव पर है। भाजपा के अतिरिक्त अन्य पार्टियों के दिग्गजों पर भी जीतकर साख बचाने का दबाव है। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के जमाने में किसान और मुसलमान का समीकरण पश्चिमी उप्र में चलता था। हालांकि वर्ष 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद रालोद के मुखिया चौधरी अजित सिंह और उनके पुत्र जयंत सिंह की ताकत बिखर गई।
दरअसल, प्रथम चरण के तहत 15 जिलों की 73 सीटों पर चुनाव होना है। इनमें से 51 सीटें सीधे तौर पर जाट मतदाता प्रभावित करने का दम रखते हैं। इन सभी सीटों पर 22 हजार से लेकर एक लाख 28 हजार तक मतदाता हैं। लेकिन कांग्रेस और सपा के बीच गठबंधन के कारण इन इलाकों में जीत हासिल करने का दबाव भी काफी बढ़ जाएगा।
रालोद के महासचिव त्रिलोक त्यागी भी इस चुनौती को स्वीकार करते हैं। उन्होंने कहा, “चुनौती तो है, लेकिन हम जीत को लेकर आश्वस्त हैं। किसानों की समस्याओं को लेकर पार्टी हमेशा से आवाज उठाती रही है। कुछ दल सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति कर माहौल खराब करना चाहते हैं।” समाजवादी पार्टी की बात करें तो राज्य के कैबिनेट मंत्री शाहिद मंजूर के सामने अपनी किठौर सीट बचाने की चुनौती है। अमरोहा से मंत्री महबूब अली पर भी जीतने का दबाव है। सपा के दिग्गज मंत्री आजम खां के सामने इस बार अपनी जीत के साथ ही बेटे अब्दुल्ला आजम को भी जिताने का दबाव होगा। आजम को सूबे में मुस्लिम चेहरा माना जाता है। उनके बेटे को स्वार विधानसभा सीट का टिकट मिला है।  सपा प्रवक्ता डॉ. सी.पी. राय ने कहा, “न सिर्फ आजम, बल्कि पूरे पश्चिमी उप्र में सपा अच्छा प्रदर्शन करेगी। जो लोग नफरत की राजनीति करते हैं, उन्हें जनता सबक जरूर सिखाएगी।”

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