चुनाव प्रचार पर शीर्ष अदालत के फैसले को राजनीतिक दलों ने सराहा
नई दिल्ली | राजनीतिक दलों ने धर्म, जाति, समुदाय, नस्ल या भाषा के नाम पर वोट मांगने को ‘अवैध’ घोषित किए जाने के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत किया है। यह फैसला प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति टी.एस.ठाकुर के नेतृत्व वाली सात न्यायमूर्तियों की संवैधानिक पीठ ने चुनावी कदाचारों से संबंधित कई याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान दिया। याचिकाओं में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता अभिराम सिंह की अर्जी भी शामिल थी। सन् 1990 में महाराष्ट्र विधानसभा के लिए अभिराम के चुनाव को बंबई उच्च न्यायालय ने इस आधार पर रद्द कर दिया था कि उन्होंने हिंदू धर्म के नाम पर वोट देने की मतदाताओं से अपील की थी।
फैसले का स्वागत करते हुए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) नेता डी.राजा ने कहा कि न्यायालय ने कड़ा संदेश दिया है। राजा ने कहा, “यह एक कड़ा संदेश है, लेकिन हमें इसका इंतजार करना होगा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) व संघ परिवार के अन्य संगठन तथा विभिन्न कट्टरवादी संगठन इस फैसले का पालन करते हैं या नहीं।” मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) नेता बृंदा करात ने कहा कि इस फैसले का असर अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के मुद्दों को उठाने पर नहीं पड़ना चाहिए।
बृंदा ने कहा, “यह महत्वपूर्ण है कि सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात को दोहराया है कि चुनाव एक धर्मनिरपेक्ष गतिविधि है। जहां तक जाति की बात है, तो हमें लगता है कि इसकी बराबरी धर्म से नहीं करनी चाहिए।” तृणमूल कांग्रेस के सांसद सुखेंदु शेखर रॉय ने कहा कि फैसले से अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के मुद्दों पर विपरीत असर नहीं पड़ेगा।
रॉय ने कहा, “हम सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हैं, जो चुनाव को धर्मनिरपेक्ष बनाता है। हमारी पार्टी मानती है कि धर्म-जाति को राजनीति का विषय नहीं बनाना चाहिए।” कांग्रेस प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि यह फैसला धर्म व जाति आधारित राजनीति के मद्देनजर बेहद अहम है।
उन्होंने कहा, “भारतीय राजनीति में आगे बढ़ने के लिए कुछ पार्टियों ने धर्म व जाति को अपनी विचारधारा का हिस्सा बना लिया है, जिसे हतोत्साहित करने की जरूरत है।”
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय का फैसला उसके पिछले फैसले की विसंगतियों को दूर करेगा।