मद्रास उच्च न्यायालय ने जयललिता की अचानक मौत पर जताया संदेह
चेन्नई | मद्रास उच्च न्यायालय ने जे.जयललिता की अचानक हुई मौत पर गुरुवार को संदेह जताया और पूछा कि तमिलनाडु की दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री के शव को कब्र से निकाला क्यों नहीं जा सकता। ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) के एक सदस्य द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने मीडिया की उन खबरों का संदर्भ दिया, जिसमें अपोलो अस्पताल में भर्ती जयललिता के स्वास्थ्य से संबंधित जानकारियों को गुप्त रखने की बात कही गई है। न्यायालय ने कहा कि यह भी संदेहास्पद है।
उच्च न्यायालय ने कहा कि जयललिता के स्वास्थ्य में सुधार की खबरों के बाद अचानक खबर आती है कि उनका निधन हो गया है। न्यायालय इस संबंध में प्रधानमंत्री, केंद्र व राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर चुकी है। न्यायालय ने यह भी कहा है कि किसी भी राजस्व संभाग अधिकारी ने शव को न तो देखा और न ही स्वास्थ्य से संबंधित कोई रिपोर्ट दी गई।
उच्च न्यायालय ने यह भी पूछा कि जयललिता के मामले में नेताजी सुभाष चंद्र बोस मामले में दिए गए दिशा-निर्देशों का पालन किया गया या नहीं। जयललिता अपोलो अस्पताल में 75 दिनों तक भर्ती रहीं। संक्रमण के कारण का बहाना बनाकर किसी को भी अस्पताल में उन्हें देखने नहीं दिया गया।
न्यायालय की टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पत्ताली मक्कल काची (पीएमके) के संस्थापक एस.रामदॉस ने एक बयान में जयललिता की मौत की केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से जांच की मांग की।
जयललिता के पैरों को काटने की रिपोर्ट का हवाला देते हुए रामदॉस ने कहा कि अगर यह सही है, तो यह ज्ञात नहीं है कि उनकी सर्जरी के लिए उनके सगे संबंधियों या राज्य सरकार से इजाजत ली गई या नहीं। उन्होंने कहा कि जब किसी व्यक्ति को अस्पताल में भर्ती कराया जाता है, उसके वजन में कमी आती है, लेकिन जयललिता के वजन में लगता नहीं कोई कमी आई।