अ से अपराध अ से अतीक, खून से भरा है माफिया का अतीत
देश की सियासत में कई ऐसे नेता हैं, जिन्होंने जुर्म की दुनिया से निकलकर राजनीति की गलियों में कदम रखा. और वे राजनीति में आकर भी अपनी माफिया वाली छवि से बाहर नहीं निकल पाए. उनके कारनामों ने हमेशा उन लोगों को सुर्खियों में बनाए रखा. यूपी की सियासत में अतीक अहमद ने उड़ान तो भरी लेकिन बहुत दूर तक जा नहीं सकें। कानपुर से इस बार किस्मत आजमाने को तैयार हैं.
धन उगाही में नाम सामने आया
अतीक अहमद का जन्म 10 अगस्त 1962 को हुआ था. मूलत वह उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती जनपद के रहने वाले है. पढ़ाई लिखाई में उनकी कोई खास रूचि नहीं थी. इसलिये उन्होंने हाई स्कूल में फेल हो जाने के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी. कई माफियाओं की तरह ही अतीक अहमद ने भी जुर्म की दुनिया से सियासत की दुनिया का रुख किया था. पूर्वांचल और इलाहाबाद में सरकारी ठेकेदारी, खनन और उगाही के कई मामलों में उनका नाम आया. 17 साल की उम्र में अतीक अहमद पर कत्ल का इल्जाम लगा था. उसके बाद अतीक ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. साल दर साल उनके जुर्म की किताब के पन्ने भरते जा रहे थे.
अतीक के खिलाफ दर्ज हैं 44 मामले
1992 में इलाहाबाद पुलिस ने अतीक अहमद का कच्चा चिट्ठा जारी किया था. जिसमें बताया गया था कि अतीक अहमद के खिलाफ उत्तर प्रदेश के लखनऊ, कौशाम्बी, चित्रकूट, इलाहाबाद ही नहीं बल्कि बिहार राज्य में भी हत्या, अपहरण, जबरन वसूली आदि के मामले दर्ज हैं. अतीक के खिलाफ सबसे ज्यादा मामले इलाहाबाद जिले में ही दर्ज हुए. उपलब्ध आकड़ों के अनुसार वर्ष 1986 से 2007 तक ही उसके खिलाफ एक दर्जन से ज्यादा मामले केवल गैंगस्टर एक्ट के तहत दर्ज किए गए.
लगा राजनीति का चस्का
अपराध की दुनिया में नाम कमा चुके अतीक अहमद को समझ आ चुका था कि सत्ता की ताकत कितनी अहम होती है. इसके बाद अतीक ने राजनीति का रुख कर लिया. वर्ष 1989 में पहली बार इलाहाबाद (पश्चिमी) विधानसभा सीट से विधायक बने अतीक अहमद ने 1991 और 1993 का चुनाव निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लड़ा और विधायक भी बने. 1996 में इसी सीट पर अतीक को समाजवादी पार्टी ने टिकट दिया और वह फिर से विधायक चुने गए.
पल पल दल बदलते रहे अतीक
अतीक अहमद ने 1999 में अपना दल का दामन थाम लिया. वह प्रतापगढ़ से चुनाव लड़े पर हार गए. और 2002 में इसी पार्टी से वह फिर विधायक बन गए. 2003 में जब यूपी में सपा सरकार बनी तो अतीक ने फिर से मुलायम सिंह का हाथ पकड़ लिया. 2004 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने अतीक को फूलपुर संसदीय क्षेत्र से टिकट दिया और वह सांसद बन गए. उत्तर प्रदेश की सत्ता मई, 2007 में मायावती के हाथ आ गई. अतीक अहमद के हौसलें पस्त होने लगे. उनके खिलाफ एक के बाद एक मुकदमे दर्ज हो रहे थे. इसी दौरान अतीक अहमद भूमिगत हो गए.
बसपा विधायक राजू पाल की हत्या का आरोप
2004 के आम चुनाव में फूलपुर से सपा के टिकट पर अतीक अहमद सांसद बन गए थे. इसके बाद इलाहाबाद पश्चिम विधानसभा सीट खाली हो गई थी. इस सीट पर उपचुनाव हुआ. सपा ने अतीक के छोटे भाई अशरफ को टिकट दिया था. मगर बसपा ने उसके सामने राजू पाल को खड़ा किया. और राजू ने अशरफ को हरा दिया. उपचुनाव में जीत दर्ज कर पहली बार विधायक बने राजू पाल की कुछ महीने बाद 25 जनवरी, 2005 को दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. इस हत्याकांड में सीधे तौर पर सांसद अतीक अहमद और उनके भाई अशरफ को आरोपी बनाया गया था.
सपा ने पार्टी से निकाल दिया था
अतीक अहमद ने राजू पाल हत्याकांड के गवाहों को डराने धमाके की कोशिश की. लेकिन मुलायम सिंह के सत्ता से जाने और मायावती के कुर्सी पर आ जाने की वजह से वह कामयाब नहीं हो सके. गिरफ्तारी के डर से बाहुबली सांसद अतीक फरार थे. उनके घर, कार्यालय सहित पांच स्थानों की सम्पत्ति न्यायालय के आदेश पर कुर्क की जा चुकी थी. पांच मामलों में उनकी सम्पत्ति कुर्क करने का आदेश दिए गए थे. अतीक अहमद की गिरफ्तारी पर पुलिस ने बीस हजार रुपये क इनाम रखा था. इनामी सांसद की गिरफ्तारी के लिए पूरे देश में अलर्ट जारी किया गया था. सांसद अतीक की गिरफ्तारी के लिए परिपत्र जारी किये गये थे. लेकिन मायावती के डर से अतीक अहमद ने दिल्ली में समर्पण करना बेहतर समझा.